Sunday, April 29, 2012

वो अदालतों के पार हैं



21 अप्रैल, दिन के ढाई बजे, दिल्ली की गहमा-गहमी भरी तीस हजारी अदालत, जहां
पत्रकार एसएमए काजमी को पेष करना था पर एकाएक पता चलता है कि आज उनकी तारीख
नहीं है पर थोड़ी ही देर में पता चलता है उन्हें दिन के बारह बजे वीडियो लिंक
के जरिए पेष कर दिया गया, जिसका कोई स्पश्ट उत्तर उस वक्त नहीं मिला। पत्रकार
काजमी के वकील ने चीफ मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट विनोद यादव से इसका विरोध करते
हुए उनकी गैरहाजिरी में हुई प्रोसीडिंग की मांग की। पर दूसरे दिन के अखबारों
में रहा कि ऐसा ‘सुरक्षा करणों से’ हुआ? आखिर वो कौन से ‘सुरक्षा कारण’ हैं जो
हमारे न्यायिक तंत्र को इतना मजबूर कर दे रहे हैं कि वो एक लोकतांत्रिक ढांचे
के अंदर एक पुलिस तंत्र के डंडे से राश्ट्रहित के नाम पर हमें हांक रही है।
पत्रकार काजमी के बेटे तोराब और षोजेब अपने पिता के न्यायालय आने के इंतजार
में अपने वकील महमूद पारचा के साथ न्यायालय परिसर में मौजूद थे। बारह बजे जिस
तरह से वीडियो लिंक द्वारा काजमी को न्यायालय में पेष किया उसके पीछे कई बड़े
और अहम सवाल थे इसीलिए उनके एडवोकेट महमूद पारचा को भी कोई सूचना नहीं दी गई।
दरअसल आतंकवाद के नाम पर निर्दोशों को झूठ के सहारे फसाए रखने के साथ ही एक
ऐसा जनमत भी लम्बे समय से तैयार करने की कोषिष हो रही है कि आतंकवाद के
आरोपियों को न्यायालय लाना खतरे से खाली नहीं है। इसके लिए दो तरीके इजाद किए
हैं या तो विडियो लिंक द्वारा या फिर जेल में ही न्यायिक कार्यवाई को करने की
कोषिष की जा रही है। इसकी षुरुआत संकट मोचन के धमाकों के आरोपी वलीउल्ला से
हुई। जिस पर न्यायाल में वकीलों द्वारा हमला करवाया गया और एक जनमत तैयार किया
गया कि वो एक खतरनाक आतंकवादी है। जबकि वलीउल्ला पर लगाए गए सभी आरोप झूठे
साबित हुए और उस पर मात्र आम्र्स एक्ट का मुकदमा है, ‘न्यायालय की भाशा में
सुबूत के आभाव में’।
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका 23 नवम्बर को यूपी की लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी की
कचहरियों में हुए धमाकों के बाद बार एसोसिएषनों ने फतवे जारी कर दिए कि हम केस
नहीं लड़ने देंगे। इन कठिन परिस्थितियों में लखनऊ के वकील मो0 षुएब ने केस
लड़ने का निर्णय लिया और मात्र 22 दिनों में कचहरी धमाकों का जिसे पुलिस
मास्टर माइंड बता रही थी उसे बरी करवाया। इसके बाद क्या था जैसे ही मो0 षुएब
ने तारिक कासमी, खालिदं, सज्जादुर्रहमान और अख्तर का मुकदमा लड़ने लगे उन पर
कचहरियों में हमले होने लगे। लखनऊ कचहरी में उन्हें चेम्बर से घसीटते हुए पूरे
कपड़े फाड़कर पूरी कचहरी में ‘हिन्दुस्तान जिन्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का
नारा लगवाया गया और उसके ऊपर से उन पर मुकदमा भी किया गया जो आज भी है।
बहरहाल, अन्ततः ‘न्याय के पहरेदार’ होने का दंभ भरने वाले अपने मंसूबे में
कामयाब हो गए और कहा कि ‘सुरक्षा करणों’ से मुकदमा ‘जेल की चहरदीवारी’ में
चलेगा। इस मुकदमें में आज जहां दो लड़कों की फर्जी गिरफ्तारी पर पिछली मायावती
सरकार को जन आन्दोलनों के दबाव में आरडी निमेश जांच आयोग बैठाना पड़ा तो वहीं
वर्तमान सपा सरकार ने इन्हीं दोनों को छोड़ने का विचार मीडिया माध्यमों के
जरिए व्यक्त किया है, वहीं सज्जादुर्रहमान लखनऊ केस में बरी हो गया है। पर एक
बड़ा और अहम सवाल है कि ‘यह कैसा न्याय’ जो जेल की चहरदीवारी में हो रहा है
तर्क ‘सुरक्षा करणों से’? यूपी में जेलों में हो रही सुनवाईयों का लंबे समय से
विरोध हो रहा है। क्योंकि ऐसा करके पुलिस अपने पक्ष में दबाव व अनुकूल माहौल
बना लेती है।
पत्रकार काजमी प्रकरण की गम्भीरता इसलिए भी बढ़ जाती है कि इसे ईरान से
जोड़कार एक अन्तराश्ट्रीय आतंकवाद के नेटवर्क का हौव्वा खड़ा किया गया है।
हमारे प्रधानमंत्री भी जब बड़े ‘चिंतित भाव’ में बोलने लगे हैं कि अब पढ़े
लिखे लोग भी ऐसा कर रहे हंै तो वहीं चिदम्बरम देष के सामने आतंकवाद-माओवाद के
साथ धार्मिक कट्रता को खतरा बताते हुए मानवाधिकार आंदोलनों पर निषाना साध रहे
हों तो ऐसे में सतर्क होना लाजिमी हो जाता है।
पत्रकार काजमी के अन्तराश्ट्रीय लिंक जोड़ने की जो मुहीम पुलिस ने चलाई वो फेल
होती जा रही है इसलिए वो वीडियो लिंक के जरिए इस पूरे मामले को चलाना चाहती
है। जिस मीडिया को उसने काजमी के बैंक खाते में ‘विदेषी रुपए’, बाहरी खूफिया
एजेंसियों से पूछताछ और ईरान से उनके संबन्धों के नाम पर एक हाई प्रोफाइल
आतंकवादी होने का दावा किया था वो सभी दावे झूठे होते जा रहे हैं। इसीलिए
पुलिस ने न्यायालय परिसर में इस झूठ के पुलिदें के चष्मदीद मीडिया वालों को भी
वहां से हटाने की कोषिष की। मानवाधिकार नेता महताब आलम बताते हैं कि इससे पहले
भी पुलिस वालों ने रिमांड की अवधि से तीन दिन पहले बिना बचाव पक्ष के वकील को
सूचित किए पत्रकार काजमी को न्यायालय में पेषकर जेल भेज दिया था।
जहां तक बाहरी खूफिया एजेंसियों द्वारा जो पूछताछ का सवाल था उसके बारे में
कहा गया है कि ऐसी कोई पूछताछ नहीं हुई। काजमी ने कोर्ट को लिखित षिकायत दी थी
कि बिना पढ़े उनसे सादे कागजों पर दस्तखत करवाई गई और ऐसा न करने पर परिवार को
गंभीर परिणाम भुगतने होंगे की धमकी दी गई। इस बात से दिल्ली पुलिस ने अपना
पल्ला झाड़ लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
आज मीडिया पर भी सवाल है कि इसी तरह उसने इसके पहले पत्रकार इफ्तेखार गिलानी
को लेकर जिस तरह रिपोर्टिंग कर दोशी ठहराया वो अपने बर्ताव को पुलिस के बर्ताव
से अलग करे। आज भी पत्रकार काजमी से सम्बन्धित जो भी खबरें आ रही हैं उसमें
देखा जा रहा है कि कुछ मीडिया संस्थान उनकी पुलिस की गिरफ्त वाली मुंह पर
कपड़ा बांधी गई तस्वीरें बराबर परोस रहे हैं। इसके पहले भी एक प्रचार तंत्र के
बतौर पुलिस के पक्ष में प्रचार किया कि बैंकाक विस्फोटों में षामिल सईद मोरादी
ने जिन लोगों से फोन पर बात की उनमें पत्रकार काजमी थे पर बाद में बात झूठी
साबित हुई। वहीं आज इजराइल की खूफिया एजेन्सी मोसाद व अन्य खूफिया एजेंसियों
से पूछताछ के नाम पर जिस तरह से बदनाम करने का खेल किया गया उसका सच भी सामने
आ गया है।
दरअसल, पुलिस ने पत्रकार काजमी की पत्नी के बैंक खाते में विदेष सेे जिस 18.78
लाख व काजमी के खाते में 3.8 लाख रुपए होेने के नाम पर जो हो हल्ला मचाया उसकी
भी असलियत सामने आ गई है। यह पैसा पत्रकार काजमी के बेटे ने चार वर्शों के
दौरान दुबई से भेजा था। अब खुली अदालत में हो रही जिरह से पुलिस खुद को बचाने
के लिए सुरक्षा के नाम पर वीडियो लिंक द्वारा पेषी करने की कोषिष कर रही है।
अब आने वाली पांच मई को देखना होगा कि किस तरह वो नया पैतरा चलती है और क्या
लोकतांत्रिक ढांचे के न्यायिक परिसर में ही न्याय की प्रक्रिया चलेगी?

राजीव यादव
 प्रदेश संगठन सचिव पीयूसीएल, उप्र
द्वारा- मो शोएब,
एडवोकेट
                                                    एसी मेडिसिन मार्केट
                                                    प्रथम तल, दुकान नं-2
                                                    लाटूश रोड, नया गांव-
ईस्ट
                                                    लखनउ, उत्तर प्रदेश
                                         मो0- 09452800752
                                               09415254919

वे जो कलेक्टर नहीं बन सके


एलेक्स मेनन 

-चन्द्रिका ( लेखक शोध स्कालर हैं )
      कलेक्टर मेनन के लिए दुवाएं की जा रही हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता उन्हें निःशर्त रिहा किए जाने की मांग कर रहे हैं. कलेक्टर के दोस्त उनसे जुड़ी पुरानी यादें सुना रहे हैं. मुख्यमंत्री ‘बेहद चिंतित’ हैं और गृहमंत्री लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाओं से ‘परेशान’. अखबारों के सम्पादक और पत्रकारों के शब्द उलझन भरे ज़ेहन से निकले हुए लगते हैं. प्रधानमंत्री के ६ साल पहले रटे-रटाए वाक्य को दुहराना वाजिब नहीं;[1] पर यह देश की जो आंतरिक असुरक्षा है वह लगातार बढ़ती जा रही है और अब देश और सुरक्षा के मायने समझ से परे हो गए हैं.[2]
      आखिर एक कलेक्टर जो ‘सुराज’ लाना चाहता है, उसे बंधक बनाया जाना कितना उचित है के जवाब में; एक बूढ़ा कलेक्टर जिसने सरकार की नीतियों से तंग आकर वर्षों पहले कलेक्टरी से इस्तीफा दे दिया है, कहता है- ‘युद्ध में सही और गलत को नहीं आंका जा सकता’.[3] तो क्या सुराज=युद्ध?[4] किसी डिक्सनरी के पन्नों में ऐसे मायने नहीं जोड़े गए हैं.[5] पिछले दो-तीन दशकों में छत्तीसगढ़ के इतिहास में ऐसे कई शब्द हैं जिनके अर्थ खोजना व्यर्थ है; पर जिनका जिक्र करना यहां बेहद जरूरी. कि अखबारों में कलेक्टर की रिहाई के लिए उलझन भरे, दुखी और चिंतित लोगों के शब्द जो काले अक्षरों में छप रहे हैं, वह बेहद स्याह पक्ष है, ‘सभ्य’ और अभिजात्यों का पक्ष.
      यह अखबारों और किताबों के पन्ने से अलग एक पन्ना हैं ‘पन्ना लाल’ जो छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ तब मध्यप्रदेश का हिस्सा था) में उस इलाके के पूर्व डी.आई.जी रह चुके हैं, जिन इलाकों में ये घटनाएं घटित हो रही हैं. १९९२ में जब ‘जन जागरण’ अभियान इन क्षेत्रों में चलाया गया. मकसद था नक्सलियों की सत्ता को खत्म ‘करना’. उसी वर्ष गृह राज्यमंत्री गौरीशंकर शेजवार ने कुछ दिनों बाद नक्सलियों के ‘खात्मे’ की घोषणा कर दी. अयोध्यानाथ पाठक और दिनेश जुगरान महानिरीक्षक के तौर पर नियुक्त किए गए थे. जन-जागरण के इस अभियान में ‘जन-प्रताड़ना’ के आंकड़े जुटाना मुश्किल है. पर करीगुंडम, एलमागुडा, पालोड़ी, पोटऊ पाली, दुगमरका, सल्लातोंग, टुडनमरका, साकलेयर गावों के लोगों की यादों में आंकड़े नहीं, वृतांत और कहानियां पड़ी हुई हैं. सोड़ी गंगा जो दूसरी कक्षा तक पढ़े हैं और एक गांव के अध्यापक हैं उनके पास जन-जागरण की प्रताड़ना के कई किस्से हैं. तो क्या जन-जागरण=प्रताड़ना? शायद शब्दकोष के मायने समाज की अर्थवत्ता से अलग है. यह अभियान कुछ वर्षों तक चलता रहा और पुलिस माओवादियों की वर्दी पहनकर घूमती रही...घूमती रही कि माओवादियों जितनी स्वीकार्यता पुलिस को भी मिल जाए. गांवों में नक्सली बनकर पुलिस जाती और गांव वालों के साथ जमीन पर बैठती, उनसे बातचीत करती. पर यह हकीकत के एक हिस्से का नाट्यरूपांतरण था. माओवादियों ने आदिवासियों के लिए तेंदू पत्ते के कीमत की लड़ाई, जंगल में हक की लड़ाई और १५,००० एकड़ जमीन के बंट्वारे तालाबों के निर्माण जैसे कई काम करवाए थे. तब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश था. यह समय था जब पुराने आरोप ध्वस्त हो रहे थे और नक्सली आंध्र के इलाकों से नहीं आते थे. बल्कि आदिवासी माओवादी हो रहे थे और माओवादी आदिवासी. जिसे मछली और पानी का संबंध कहा गया.[6]
      सलवा-जुडुम यानि ‘शांति अभियान’ ‘सुराज’ के ठीक पहले का अभियान है. पिछले सात वर्षों में चलाए गए इस ‘शांति-अभियान’ के सरकारी आंकड़े ६४४ गांवों के उजाड़े जाने के हैं. लगभग ३.५ लाख लोगों के विस्थापन के. घरों के जालाए जाने, लोगों के पीटे जाने, पेड़ों पर टांग के गोली मार देने और महिलाओं के बलात्कार के आंकड़े…..पिछले बरस माड़वी जोगी अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को बताते-बताते वापस घर में चली गई और हमने सैन्य बलों के उत्पात के बारे में सवाल पूछना ज्यादती समझा. माड़वी लेके नाम की एक महिला को उनके पिता और भाई माड़वी जोगा और माड़वी भीमा के सामने पुलिस ने नग्न किया और पुलिस स्टेशन से घर तक जाने को कहा…..  बीबीसी हिन्दी में अभी खबर लगी है कि कलेक्टर को कुछ कपड़े और दवाईयां पहुंचाई जा चुकी हैं और उसके साथ कुछ खाने-पीने की चीजें भी.[7]
      आंकड़ों में १६ मार्च २०११ को ताड़मेटला में ७ साल के एक बच्चे को सैन्य बलों ने पीटा, यह दर्ज नहीं है, हवाई फायरिंग सुनकर गांव के कितने लोग भागे, यह भी दर्ज नहीं है. कुछ गैर सरकारी दस्तावेजों और पत्रिका की रिपोर्टों में २०७ घरों का जलाया जाना दर्ज है. आंकड़ो में घटित हुई इन घटनाओं ने हर आदमी को क्रोधित किया, आंकड़े में हर आदमी गुस्से में है, आंकड़े में उसकी उग्रता स्वाभाविक है और इस संगठित उग्रता में हर आदमी उग्रवादी है. देश और सरकार के दस्तावेजों में इंसानी स्वभावों के आंकड़े नहीं दर्ज किए जाते. तो क्या ‘शांति अभियान’=तबाही. डिक्शनरी देख सकते हैं. राज्य सरकार ‘शांति-अभियान’ चलाती है और देश की सर्वोच्च न्यायालय एक फैसले में उसे तत्काल बंद करने का आदेश देती है. राज्य शान्ति चाहता है? न्यायालय शांति नहीं चाहता? शांति और न्याय एक दूसरे के विरुद्ध कैसे हैं? ऐसे ढेरों सवाल.
      कलेक्टर मेनन का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और माओवादी उनकी दवा को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं और उन्हें दवाईयां सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा दूसरे दिन भी भेज दी गई हैं. आज कलेक्टर को अगवा किए ६ दिन बीत चुके है. ६ बरस पहले २००६ से सैन्य बलों द्वारा गायब की गई २ लड़कियों का अभी तक कोई पता नहीं चला है जिनका नाम मडकम हूँगी और वेको बजारे है. ‘शान्ति-अभियान’ की तबाही में ऐसे कई लोग गायब हुए जिनका पता नहीं चला, पिछले बरस देवा[8] बता रहे थे कि करीगुंडम में नाले के पास दो लाशें मिली थी और कई ऐसी लाशें हैं जो किसी नाले के किनारे नहीं मिली.   

          आदिवासियों पर हुए अनगिनत जुल्म के विरुद्ध क्या माओवादियों के इस लोकतांत्रिक कार्यवाही की सराहना की जानी चाहिए? मसलन राजनैतिक कैदी के तौर पर कलेक्टर को सुविधाएं मुहैया कराना, अगवा की जिम्मेदारी लेना और बातचीत के जरिए ६ दिनों में हल करने का प्रयास करना. ६ वर्षों से और ६ वर्षों में सरकार द्वारा ….. क्या सैन्यबलों द्वारा गायब किए गए, हत्या किए गए या जाने क्या किए गए की निंदा नहीं करनी चहिए? कि वे जो गायब हुए हैं वे कलेक्टर नहीं थे आदिवासी थे बस.



[1] सरकारी दस्तावेजों में यकीन रखने वाले प्रधानमंत्री के इस बयान को नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री व डी.जी.पी. से हुई किसी बैठक के दस्तावेज में देखें या दूसरे दिन के अखबार पर भरोसा करें.
[2] विस्तार के लिए सभी के संदर्भ पुराने अखबारों मे देखें, यदि अखबारों में यकीन रखते हो तो.
[3] मेरे फेसबुक पर बी.डी. शर्मा के बयान देखें, जिसे बीबीसी हिन्दी के साइट से उठाया गया है. बीबीसी के बजाय फेसबुक पर यकीन करना सीखें या चीन के क्रान्तिकारी माओत्से तुंग के वाक्य सब पर शक करो’ में यकीन करें.
[4] सुराज के अन्य मायने समझने के लिए गांधी द्वारा लिखित पुस्तक हिन्द स्वराज भी देखें, मूल गुजराती में और अब दुनिया के तमाम भाषाओं में अनुदित. दो वर्ष पहले हिन्द स्वराज के सौ वर्ष पूरे हुए.  
[5] दुनिया के किसी भी भाषा में बनाई गयी अब तक की कोई भी  डिक्सनरी देखें. एक डिक्सनरी कुछ लोग मिलकर बनाते हैं और उसपर लोग यकीन करते हैं….इकाई व्यक्ति के तौर पर मुझ पर यकीन कर सकते हैं.
[6] माओवादी पार्टी के शीर्षस्थ नेतागणपति’ का ओपेन पत्रिका में साक्षात्कार देखें
[7] बी.बीसी. हिन्दी डॉट काम
[8] गांव के सदस्य.

Inveterate Maoists they certainly are not



                                                                      Kartam Joga

After they abducted Sukama's Collector Alex Paul Menon, the Maoists have demanded that certain people rotting in the prisons of Chhattigarh be released. Two kinds of people are mentioned in the letter listing their demands. First, activists from various political parties, and secondly, members of their own cadres. The activists of the first hue work within the democratic process, and are elected representatives hailing from Congress and CPI. As a social activist in Dantewada, I was often in touch with them, and certainly know that they have little to do with the Maoists or with violent activities of any kind. All of them have been framed in false cases by local contractors, political opponents, and corrupt police and put in prisons. Brief information about each of them follows.

1) Kartam Joga
Kartam Joga is a senior CPI leader. He is the vice president of the Konta Janapad. When he raised his voice against atrocities committed by the Salwa Judum, he was dragged to the police station, hung upside down, and mercilessly beaten. He is a co-petitioner (along with Nandini Sundar and Manish Kunjam) in a case against Salwa Judum in the Supreme Court. When he demonstrated in the Supreme Court that the reason that children are unable to go to school in Dantewada is because the schools have been occupied by security forces, the Chhattisgarh Government panicked. In a breathtaking lie, it told the Supreme Court that security forces had already vacated the premises of all the schools, and that the petitioners in the case can themselves investigate this, but just three days later, they arrested Kartam Joga who has since been languishing in a Chhattisgarh prison.

The then SSP SRP Kalluri who was instrumental in arresting him, brazenly charged that Kartam Joga was a participant in the attack on seventy six CRPF personnel, whereas Joga was at home at the time in Sukama, a hundred kilometres away from the incident site.

When a journalist from the English newspaper The Hindu asked Kalluri on what basis he had arrested Joga, Kalluri responded that two witnesses had accused Joga of being a participant in the incident. When the journalist went to their homes and related to them what Kalluri had told him, they said that they had never met the police and that they had never given any testimony against Kartam Joga. However, even after this clear case of frame up had been exposed for what it was, Joga is still languishing in a prison cell. The international human rights organization Amnesty International has also started a campaign to free Kartam Joga.

2) Vijay Sori
Vijay Sori is an activist from the Indian National Congress, and is an official of the Farmers' Congress, a subsidiary of the Congress party. He is close to Konta MLA Kovasi Lakhma Ram. Vijay Sori was also against Salwa Judum. Dantewada's SSP SRP Kalluri started harassing Vijay Sori. One day, Kovasi Lakhma and Vijay Sori decided that enough was enough and went to meet with SRP Kalluri in his Dantewada office. Kalluri threatened MLA Lakhma, asked him to get out of his office, and boasted that he would not rest until he had sent Vijay Sori to prison. Vijay Sori was later framed in a case of attack on the house of Rajput Congress leader Avadhesh Gautam. Gautam, who hails from Uttar Pradesh, is an erstwhile police officer, and currently works as a contractor. He has close links to police officials in Chhattisgarh. In a recent hearing on Vijay Sori's bail petition, the Chhattisgarh High Court observed that in order to prolong the judicial process, Gautam has deliberately failed to appear in the court, and for this reason, the Court ordered that if Gautam does not testify in the court in the next three months, the bail petition of Vijay Sori and other accused should be presented again.
3) Lala Ram KunjamLala Ram Kunjam used to work for Essar. He had also given away his land to Essar for construction of a pipeline, but later the company withheld his wages. Essar also reneged on its promise of providing employment for the local unemployed. For this reason, Lala Ram Kunjam became quite active in the movement against Essar's forcible acquisition of tribal lands. His involvement in the movement annoyed the local leaders and contractors. For this reason, Avadhesh Gautam colluded with the police in framing him in a false case and threw Kunjam in prison.
4) Sudaru Kunjam
Sudaru Kunjam hails from the Kadampal village and is a CPI member of the district Panchayat of Dantewada. He was involved in a quarrel with Avadhesh Gautam during the elections. For this reason, Gautam again colluded with the police. A false case was registered against him, and he was also thrown in prison.
5) Sannu MandaviSannu Mandavi is the erstwhile president of the Kuakonda block panchayat. Local contractor and Rajput leader Avadhesh Gautam also lives in this block. Gautam wanted a contract for all the activities of the Panchayat all to himself. However the well laid plans of this corrupt contractor were being frustrated because of fierce opposition from the charismatic young adivasi leader Sannu Mandavi. For this reason, he colluded with the then SSP SRP Kalluri and registered a false case against him, and threw him in prison. So as to prolong the case indefinitely, Gautam has consistently refused to appear and testify in court, and again with collusion of the police, he keeps on returning the summons with incredible impunity. This criminal mastermind used to be a police official, but was expelled from the police force because of a corruption case. Thereafter, he started working as a contractor and by relying on his goons and their terror, he has now become the uncrowned king of a large area. This Rajput leader brooks no challenge, no matter how remote, from any adivasi leader and frames them in false cases and in collusion with the police, throws them in prison.

It is quite clear therefore, that all the prisoners mentioned above are adivasi leaders of various political parties and are victims of a conspiracy hatched by the unholy coalition of corrupt non-indigenous leaders, and corrupt police. No policeman has ever lost their life in apprehending (or more appropriately, abducting) them. Therefore the truth is light years away from the shrill and incessant propaganda that these folks are inveterate Maoists, and that policemen have lost their lives while trying to apprehend them. ( Translation - Sanjeev Mahajan , San Fransisco USA )

Friday, April 27, 2012

" ये लोग दुर्दान्त माओवादी नहीं हैं "


करटम जोगा

सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के बाद माओवादियों ने कुछ लोगों कि छोड़ने की मांग की है | नक्सलियों के मांग पत्र में दो तरह के लोगों के नाम शामिल है | पहला, सभी पार्टियों के राजनीतिक कार्यकर्त्ता, और दूसरे, नक्सलियों की अपनी पार्टी के लोग | इनमे से नक्सलियों के अलावा जो दूसरे राजनैतिक कार्यकर्ता हैं वे सी.पी.आई. तथा कांग्रेस से सम्बन्ध रखते हैं एवं लगभग सभी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में काम करने वाले निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं | अपने दंतेवाड़ा के सामाजिक कार्य के दौरान मैं अक्सर ही इन सभी लोगों के संपर्क में आता था एवं मैं अच्छी तरह जनता हूँ कि इनमें से किसी का भी नक्सलियों से अथवा किसी भी हिंसक गतिविधी से कभी कोई संबंध नहीं रहा है | इन सभी को स्थानीय ठेकेदारों, प्रतिद्वंदी राजनैतिक नेताओं और भ्रष्ट पुलिस ने आपस में सांठगांठ करके फर्जी मामलों में फसाकर जेलों में डाला हुआ है | इन कार्यकर्ताओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी आप सभी के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ –
१.      करटम जोगा –
करटम जोगा एक वरिष्ठ सी.पी.आई. नेता हैं | वे कोंटा जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष हैं | उन्होंने सलवा जुडूम के जुल्मों का विरोध किया तो उन्हें बहाने से थाने में बुलाकर एस.पी.ओ. ने उल्टा लटकाकर पीटा |
     वे सलवा जुडूम के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे में नंदनी सुंदर व मनीष कुंजाम के साथ सह आवेदक हैं | जब सर्वोच्च न्यायालय में करटम जोगा ने यह सिद्ध कर दिया कि दंतेवाड़ा जिले में बच्चों की पढ़ाई इसलिये बंद है क्योंकि स्कूलों पर सुरक्षाबलों का कब्ज़ा है, तो छत्तीसगढ़ सरकार घबरा गई | छत्तीसगढ़ सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में झूठ बोला कि सुरक्षाबलों ने सभी स्कूलों को खाली कर दिया है एवं मुकदमे के आवेदक स्वयं जाकर इस बात की तसदीक कर सकते हैं परन्तु तीन दिन बाद ही सरकार ने घबराकर मुकदमे के आवेदक करटम जोगा को जेल में डाल दिया |
        उन्हें जेल में डालने वाले तत्कालीन एस.एस.पी. कल्लूरी ने झूठा बहाना बनाया कि करटम जोगा सी.आर.पी.एफ. के छिहतर जवानों पर हमले की घटना में शामिल थे, जबकि करटम जोगा उस दिन घटना स्थल से सौ किलीमीटर दूर सुकमा कसबे में सारे शहर के लोगों के सामने अपने घर में मौजूद थे |
     अंग्रेजी के “द हिन्दू” समाचार पत्र के पत्रकार ने एस.एस.पी. कल्लूरी से पूछा कि आपने करटम जोगा को किस आधार पर गिरफ्तार किया है तो एस.एस.पी. कल्लूरी ने कहा कि हमें दो गवाहों ने करटम जोगा का नाम बताया है | जब उस पत्रकार ने उन दोनों गवाहों के घर जाकर बात की तो उन दोनों ने कहा कि वे तो कभी पुलिस से मिले ही नहीं और ना ही उन्होंने कभी करटम जोगा के खिलाफ कोई गवाही दी है | इस पूरे फर्जी मामले का खुलासा होने के बावजूद करटम जोगा जेल में हैं |अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन अम्नेस्ती इंटरनेशनल ने भी करटम जोगा की रिहाई के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभियान चलाया था ! 
२.      विजय सोरी –
विजय सोरी कांग्रेस कार्यकर्ता हैं एवं कांग्रेस पार्टी के किसान कांग्रेस के पदाधिकारी हैं तथा कोंटा विधानसभा क्षेत्र के विधायक कोवासी लखमा राम के निकट हैं | विजय सोरी भी सलवाजुडूम के पक्ष में नहीं थे | दंतेवाड़ा के एस.एस.पी., श्री एस.आर.पी.कल्लूरी ने विजय सोरी को परेशान करना शुरू किया | एक दिन विधायक कवासी लखमा और विजय सोरी ने एस.आर.पी.कल्लूरी से बात-त चीत करने का निश्चय किया तथा विजय और लखमा एस.आर.पी.कल्लूरी से मिलने उनके ऑफिस दंतेवाड़ा गये | एस.आर.पी.कल्लूरी ने विधायक लखमा से कहा कि तुम मेरे आफिस से बाहर जाओ और मैं विजय को जेल भेजकर ही रहूँगा | बाद में विजय सोरी को उतरप्रदेश से आये एक राजपूत कांग्रेस नेता जो पहले पुलिस में था एवं ठेकेदारी करता है, जिसकी पुलिस अधिकारीयों से पक्की सांठगांठ है, एवं जिसका नाम अवधेश गौतम है, के घर पर हुए नक्सली हमले में फर्जी मुकदमा लगा दिया | अभी हाल ही में विजय सोरी की जमानत याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा है कि अवधेश गौतम इस मामले को लम्बा खीचनें के लिये अदालत में आकर अपना बयान नहीं दे रहा है इसलिये अगर अवधेश गौतम तीन महीने के अंदर अपना बयान अदालत में नहीं देता है तो विजय सोरी व अन्य आरोपियों की ज़मानत याचिका दोबारा पेश की जाए |

३.      लाला राम कुंजाम
    लाला राम कुंजाम एस्सार कंपनी में कम करते थे | उन्होंने किरंदुल में एस्सार कंपनी के पाइप लाइन के लिये जमीन भी दी थी, परन्तु बाद में एस्सार कंपनी ने लाला राम कुंजाम का वेतन का पैसा दबा लिया एवं एस्सार में स्थानीय बेरोजगारों को जितनी नौकरियाँ देने का वादा किया था वह भी झूठ साबित हुआ | इसके कारण लाला राम कुंजाम ने धुरली एवं भांसी गांव में एस्सार कंपनी द्वारा जबरन जमीन लेने के विरुद्ध आदिवासियों के आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया| इसपर नाराज होकर स्थानीय नेता व ठेकेदार लालाराम कुंजाम से चिढ़ गये एवं इन्हें भी कांग्रेस नेता अवधेश गौतम ने पुलिस के साथ साठगांठ करके फर्जी मामले में जेल में डाल दिया | लालाराम कुंजाम को भी बातचीत करने के बहाने थाने में बुलाया गया था एवं वहीं से पकडकर जेल में डाल दिया गया |
४.      सुदरू कुंजाम
सुदरू कुंजम किरंदुल के पास कड़मपाल गांव के रहने वाले हैं एवं सी.पी.आई. पार्टी से दंतेवाड़ा जिला पंचायत के सदस्य है | चुनाव के दौरान राजपूत कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम से इनका विवाद हो गया था | इस कारण पुलिस और अवधेश गौतम ने मिलकर इन्हें भी फर्जी मामले में जेल में डलवा दिया |
५.      सन्नू मंडावी –
 सन्नू मंडावी कुआकोंडा ब्लाक पंचायत के पूर्व अध्यक्ष हैं | स्थानीय ठेकेदार व राजपूत नेता अवधेश गौतम भी इस ब्लाक में रहता है | अवधेश गौतम पंचायत के समस्त कार्यों का ठेका स्वयं लेना चाहता था परन्तु सन्नू मंडावी जैसे तेजस्वी युवा आदिवासी नेता के रहते इस भ्रष्ट ठेकेदार की दाल नहीं गल रही थी इसलिये उसने भ्रष्ट पुलिस अधिकारी तत्कालीन एस.एस.पी. एस.आर.पी.कल्लूरी के साथ साठगांठ करके सन्नू मंडावी को फर्जी केस में फंसाकर जेल में डलवा दिया | मुकदमे का फ़ैसला ना हो जाये इसलिये यह राजपूत नेता कोर्ट में जाकर गत दो वर्षों से अपना बयान दर्ज नहीं करवा रहा है एवं पुलिस से साठगांठ के कारण अदालती समन को वापस भेजवा देता है | अपराधी चरित्र का यह राजपूत नेता पहले पुलिस विभाग में काम करता था परन्तु भ्रष्टाचार के मामले में इसे पुलिस विभाग से निकल दिया गया था उसके बाद इसने ठेकेदारी करनी शुरू की तथा गुंडागर्दी के बल पर एक बड़े क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर लिया है | यह राजपूत नेता अपने क्षेत्र में किसी भी आदिवासी राजनैतिक कार्यकर्त्ता को पनपने नहीं देता है व उन्हें फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में डलवा देता है |

इस प्रकार स्पष्ट है कि जेलों में बंद उपरोक्त सभी आदिवासी युवा राजनैतिक कार्यकर्त्ता हैं तथा भ्रष्ट बाहुबली बाहरी नेताओं व भ्रष्ट पुलिस के अपवित्र गठबंधन के कारण जेलों में डाल दिये गये हैं | इनमे से किसी को गिरफ्तार करते समय किसी पुलिसवाले ने जान नहीं गवाईं है | इसलिये जिस प्रकार का माहौल बनाया जा रहा है कि ये लोग दुर्दान्त नक्सली हैं तथा इन्हें पकड़ने के लिये पुलिस वालों ने अपनी जान गवाई है, सत्य से परे है |

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नाम नंदीग्राम डायरी के लेखक का खुला पत्र



सुश्री ममता बनर्जी जी,
माननीया मुख्यमंत्री,
. बंगाल .

सादर अभिवादन
मै पुष्पराज नंदीग्राम में घटित कृषक संग्राम पर केन्द्रित पुस्तक "नंदीग्राम
डायरी "का लेखक हूँ. यह पुस्तक पेगुइन इण्डिया से 2009 में प्रकाशित हुई .मै
आपको नंदीग्राम की घटनाओं का एक अधिकृत साक्षी होने के आत्म -अधिकार के साथ
पत्र लिख रहा हूँ. जब मेरी पुस्तक प्रकाशित हुई तो एक तरह का विवाद प्रचारित
किया गया कि यह पुस्तक मार्क्सवादी - कम्युनिस्ट पार्टी की विरोधी शक्तिओं का
परिणाम है. पुस्तक के लेखक के विरुद्ध कई तरह के आरोप चर्चे में आये. आरोप और
अफवाहों के दौर से गुजरते हुए इस लेखक को बेहद तनाव से गुजरना पड़ा. लेकिन सचाई है कि ये आरोप सी.पी.एम की ओ़र से नहीं लगाये गए थे. हमारे
खिलाफ दुष्प्रचार करनेवाले वे लेखक -पत्रकार थे, जिन्हें यह संदेह था कि इस
पुस्तक के लेखन के लिए तृणमूल -कांग्रेस से लेखक को काफी धन प्राप्त हुआ है. पुस्तक प्रकाशन के बाद सी .पी .एम के घटक संगठन जनवादी लेखक संघ के एक
प्रमुख राष्ट्रीय कर्ताधर्ता (नामचीन लेखक )ने मेरे साथ मेरी रचना प्रक्रिया पर संवाद किया, उनसे मेरे अच्छे लेखकीय संबंध कायम हुए. संभव है कि मेरी पुस्तक
से नंदीग्राम का सत्य उजागर होने से सी.पी.एम की छवि प्रभावित हुई हो पर सी.पी.एम ने इसे व्यक्तिगत शत्रुता का विषय नहीं बनाया. सी.पी.एम के एक
राष्ट्रीय स्तर के नेता ने कोलकाता स्थित अपने आवास पर बुलाकर मेरे साथ मेरी
पुस्तक के सन्दर्भ में सम्मानजनक संवाद किया. ऐसा क्यों हुआ कि सी.पी.एम के
किसी बड़े नेता या कामरेड कैडरों ने मेरे साथ बदले के भाव में अपमानजनक
व्यवहार नहीं किया ? मेरी समझ में ऐसा इसलिए हुआ कि सी.पी.एम विचारधारा से लैस एक राजनीतिक संगठन है और इनके भीतर अपने गुण-दोष को समझने-परखने की
राजनीतिक -वैज्ञानिक दृष्टि है. सी.पी.एम ने हमारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
पर हमला नहीं किया और संभव है, हमारे लिखे से संगठन के भीतर नंदीग्राम में हुई
गलतिओं पर विमर्श किया गया हो.
इस समय आपके बंगाल में आप मुख्यमंत्री का कार्टून
बनानेवाले प्रध्यापक अंबिकेश महापात्र पर टी.एम.सी समर्थकों का हमला और
महापात्र को जेल भेजने की कार्रवाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संविधान
प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उलंघन है. महापात्र के साथ हुई घटना के बाद
वैज्ञानिक पार्थ सारथी रॉय की गिरफ्तारी भी सभ्य लोकतान्त्रिक समाज के लिए
शर्मनाक घटना है .इन गिरफ्तारियो से आपकी छवि पूरी दुनिया में प्रभावित हुई
है. आपकी सरकार के खाद्य -आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का बयान बेहद
आपत्तिजनक है. जिसमे उन्होंने सी.पी.एम कार्यकर्ताओं के साथ तृणमूल
कार्यकर्ताओं को शादी -ब्याह ना करने और सामाजिक बहिष्कार करने का उपदेश पढाया
है .आपके दल से जुड़े मंत्री के बयान को पूरे देश में तृणमूल -कांग्रेस के बयान
की तरह प्रसारित किया गया है. अब तक आपके दल की ओ़र से इस बयान का खंडन नहीं
किया गया है. ममता जी, यह सब क्या हो रहा है? प्रो. महापात्र का कार्टून
कलात्मक अभिव्यक्ति है. आपके दल के समर्थकों और कोलकाता पुलिस की कार्रवाई
कानून का उलंघन है. उजड़ते झुग्गिओं को बचाने के पक्ष में वैज्ञानिक पार्थ
सारथी रॉय का खड़ा होना, भद्रलोक बांग्ला समाज की गौरवशाली परंपरा का हिस्सा है. आपके मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का बयान उन्हें शत्रु घोषित करता है, जो आपके
विरोधी हें. किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र में यह संभव नहीं है कि एक सत्ताधारी
राजनीतिक दल अपने राजनीतिक विरोधिओं को अपना शत्रु घोषित कर दे. मुझे आशंका है
कि आपने अगर सतर्कता नहीं बरती तो आपके मंत्री के बयान से पूरे बंगाल में
हिंसा -प्रतिहिंसा को बल मिलेगा और राज्य शासन इस संभावित अराजकता से निपटने
में नाकामयाब होगी.
मै इस पत्र के द्वारा आपको नंदीग्राम के पीड़ितों को न्याय दिलाने के
आश्वाlन का स्मरण दिलाना चाहता हूँ. शहीद सूबेदार मेजर आदित्य बेरा 10 नवम्बर
२००७ के इलाका दखल के बाद लापता हें. आपकी सरकार ने जो पुलिस सी.आई.डी जाँच
कराई, इस जाँच के बाद आदित्य बेरा अब तक सरकार के रिकॉर्ड में लापता हें. भारतीय सेना में अपनी बहादुरी के लिए सम्मानित सूबेदार मेजर का परिवार आपके
शासन काल में भुखमरी का शिकार है. आदित्य बेरा के परिवार को भुखमरी से बचाने
का जिम्मा किसका है...? आदित्य बेरा की विधवा पत्नी को भारतीय सेना से पेंशन
दिलवाने का जिम्मा किसका है ...? आदित्य बेरा के परिवार जनो ने अपनी तंगहाली से परेशान होकर मीडिया को अपने घर आने से मना कर दिया है. गोकुलनगर की तापसी दास
को 14 मार्च 2007 को गुप्तांग और जंघा में गोली लगी थी. तापसी दास विकलांगता
से अभिशप्त होकर भिक्षाटन के सहारे जिन्दा है. मातंगनी हाजरा के साथ आज़ादी का
संग्राम लड़नेवाली गोकुलनगर की 96 वर्षीया स्वतंत्रतासेनानी रशोमई दास अधिकारी का घर नंदीग्राम संग्राम के दौरान दो बार जला दिया गया. स्वतंत्रता सेनानी का
पेंशन ठुकरानेवाली रशोमई दास अधिकारी से मिलकर तब रैमसे क्लार्क का दिल दहल
उठा था. नंदीग्राम संग्राम "माँ-माटी-मानुष" की रक्षा के बुनियादी सूत्रवाक्य
से शुरू हुआ था. कालांतर में यह "माँ -माटी - मानुष" आपकी पार्टी का राजनीतिक अस्त्र हो गया और इसी अस्त्र -मंत्र से आपने बंगाल की सत्ता हासिल की. शहीद आदित्य बेरा, तापसी दास, माँ रशोमई दास अधिकारी के प्रति राज्य का सम्मानजनक रवैया स्पष्ट होना चाहिए. नंदीग्राम के पीड़ितों के जख्म को भूलना, संघर्ष और शहादत की विरासत का अपमान होगा.
माननीया ममता बनर्जी जी, आप शांत चित्त से मेरे पत्र पर विचार करें. जो आपकी पार्टी के विरोधी हें, वे राज्य के शत्रु नहीं हें. उन्हें भी आपकी पार्टी के कार्यकर्ताओं -समर्थकों के समतुल्य नागरिकीय अधिकार प्राप्त हें. वे आपके राजनीतिक उदेश्यों और विचारधारा से सहमत हो जायें तो आपके समर्थक हो सकते हें. जो आपसे सहमत ना हों, उन्हें विरोधी और शत्रु मान लेना -अविवेकपूर्ण, अलोकतांत्रिक, अराजनीतिक और मानवाधिकार विरोधी फैसला है .आपने बंगाल में गरीब, मेहनतकशों और किसानों की समृधि का वादा किया है. मेहनतकशों के बच्चे मार्क्स को पढ़कर अपनी मेहनत का दाम जानने और अपनी हकों के प्रति सचेतन होने का ज्ञान प्राप्त करेंगे. आपने सी.पी.एम विरोध को मार्क्स विरोध के रूप में मार्क्स को पाठ्यक्रम से हटाकर गरीबों का अहित किया है. नंदीग्राम संग्राम के प्रमुख कर्ताधर्ता निशिकांत मंडल संग्राम पूर्व सी.पी एम् के समर्पित नेता थे. कालांतर में तृणमूल कांग्रेस के नेता हुए. लेकिन उनके लहू में मार्क्सवाद घुला था. मार्क्सवाद के बिना आप प्रतिरोध की संस्कृति की कल्पना नहीं कर सकती हें. मार्क्स सी.पी.एम नामक किसी राजनितिक दल की स्थाई संपत्ति नहीं हो सकते हें. मार्क्सवाद एक वैज्ञानिक दृष्टि है. मार्क्स को पाठ्यक्रम से अलग करने से आनेवाली पीढ़िया दृष्टिहीन हो जाएँगी. मार्क्स से घृणा का मतलब गरीबों से घृणा मान लिया जायेगा .आपके साथ सबसे कमज़ोर, मेहनतकश वर्ग की उम्मीदें जुडी हें. अमरीका भारतीय लोकतंत्र को निगलने के लिए तैयार है. मार्क्स के बिना हम अमरीका से बचने का रास्ता नहीं जान सकते. वैश्विक पूंजी के आखेट के विरुद्ध मार्क्स वैश्विक - मानवता का सबसे उम्दा प्रतीक है. आपको फिर से मार्क्स को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
सुश्री ममता जी, नंदीग्राम में खड़े होकर बंगाल और भारत को देखने की कोशिश करिए तो आपको विराट बंगाल के भीतर विराट भारत दिखेगा. ग्रामेर मानुष, कृषक मानुष की समृद्धि के बिना बंगाल और भारत का उद्धार संभव नहीं है. नंदीग्राम में छूटी हुई आकाँक्षाओं को अंजाम दीजिये और अपनी चूकों के लिए भूल -सुधार व क्षमायाचना सार्वजनिक करिए. बंगाल के समाज में एक शहीद फौजी, एक स्वतंत्रता सेनानी माँ और एक वैज्ञानिक -प्रध्यापक की हैसियत मुख्यमंत्री से ऊपर रही है. आप इस वर्ग के प्रति राज्य सरकार की कृतज्ञता स्पष्ट करें. वरना पुलिस -प्रशासन की चूक और किसी मंत्री के बयान को संपूर्ण सरकार का दोष मान लिया जायेगा. और किसी सिंगुर-नंदीग्राम के रक्तपात के बिना भी आपकी सरकार अधोपतन की तरफ लुढ़कती जाएगी. मेरी राय पर मशविरा कर अपना पक्ष स्पष्ट करें तो नंदीग्राम के संघर्ष और शहादत की विरासत का सम्मान होगा, जिसकी ताप ने आपको सत्ता दिलाई है.
जय नंदीग्राम, जय सोनार बांग्ला, जय भारत...
सादर
 -पुष्पराज
द्वारा - प्रगतिशील साहित्य सदन,
 निकट-दूर शिक्षा निदेशालय,
 अशोक राजपथ, पटना-6
 मो. 9431862080