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Tuesday, January 25, 2011

पच्चीस करोड़ में बस्तर से नक्सलियों का सफाया

हिमांशु कुमार 21 दिसंबर 2010
केंद्र शासन और प्रधान मंत्री की ओर से चिदंबरम साहब ने घोषणा की है की नक्सल प्रभावित जिलों में विकास को बढ़ा कर नक्सलवाद को समाप्त किया जायेगा. जिसके लिए नक्सल प्रभावित, प्रत्येक जिले को पहले साल में पच्चीस करोड़ रुपिया दिया जाएगा. इन जिलों में दंतेवाड़ा भी शामिल है . अभी हम इस बात की बिलकुल चर्चा नहीं करेंगे की इसके साथ ही साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ में कितने सौ करोड़ रुपये हथियार खरीदने के लिए भी बिना किसी शोर शराबे के चुपचाप दे दिए जबकि पच्चीस करोड़ का व्यापक प्रचार किया गया.


पच्चीस करोड़ की इस घोषणा को सुनते समय मेरे मन में दंतेवाडा घूमने लगा ओर इस पैसे का वहां कैसे इस्तेमाल किया जाएगा इस की तस्वीर मेरे सामने बनने लगी. दंतेवाडा इस समय पुलिस और सुरक्षा बलों की छावनी बना हुआ है. वहां क्या काम हो सकता है ? कहाँ काम किया जायेगा ? कौन करेगा ? आदि बातें ये बंदूकधारी एजेन्सीयां तय करती हैं . अब जो गाँव नक्सल प्रभावित है , यानी जहां के लोग सलवा जुडूम केम्पों में नहीं आये या जो पुलिस के पास जाकर नक्सलियों की मुखबिरी नहीं करते वो सब नक्सल गाँव मान लिए गए हैं. इन गावों को ये सरकारी सुरक्षा बंदूकधारी एजेन्सीयां बदमाश गाँव कहती हैं और वहां कोई भी काम जो लोगों को राहत मिलने वाला हो वो नहीं होने देतीं, जैसे स्कूल, राशन दूकान,स्वास्थ्य सुविधाएं आदि. इसके पीछे वो ये तर्क भी देती हैं की ये राहत गाँव वालों के मार्फ़त नक्सलियों तक पहुँच जायेगी. तो अब पहले तो ये पच्चीस करोड़ की राशि नक्सल प्रभावित गावों में खर्च ही नहीं होगी. बल्की पहले से ही गैर नक्सल प्रभावित गावों में खर्च दिखाई जायेगी. यानी सरकार के मंसूबे पहले कदम पर ही ओंधे मुंह गिर जायेंगे. और नक्सलियों का इससे कोई नुकसान नहीं होगा. (नक्सलियों को इसके लिए सरकारी बलों का शुक्रगुजार होना चाहिए).

दूसरा ये नक्सल उन्मूलन का पैसा खर्च कौन करेगा? ये फैसला भी सुरक्षा बल ही करेंगी. और इन सुरक्षा बलों के कुछ अपने कुछ ख़ास लोग होते हैं, ये वो लोग होते हैं जिनका काम ये होता है की वो, जो सलवा जुडूम में ना जुड़े गाँव वालों , सलवा जुडूम को पसंद ना करने वाले आदिवासी जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध इन सुरक्षा बलों के कान भरते रहते हैं. इन्हीं चुगलखोर लोगों को सरकार का मित्र माना जाता है. ये लोग मुख्यतः गैर आदिवासी हैं और बस्तर में बाहर से आये हैं , सलवा जुडूम के नेता हैं , कुछ कांग्रेस में जुड़े हैं, कुछ भाजपा में, और उद्योगपतियों के लिए दलाली का भी काम करते हैं और मुख्यतः ठेकेदारी करते हैं. साइड बिजनेस के रूप में पत्रकारिता का भी काम करते हैं. और सरकार का गुणगान करते हैं और जनता की तकलीफों से जुडी खबरों को छिपाने का काम करते हैं. नक्सल उन्मूलन का ये पच्चीस करोड़ रुपिया इन्ही लोगों के मार्फ़त खर्च किया जाएगा . और इससे वास्तविकता में विकास के लिए तरसते लोग तरसते ही रह जायेंगे . ये जनता के दुश्मन लोग और पैसे वाले हो जायेंगे. लोगों का गुस्सा सरकार के प्रति और बढेगा , आदिवासी लोग और अधिक नक्सलियों की तरफ चले जायेंगे . तो सोचा तो ये गया था की इन पच्चीस करोड़ से नक्सलवाद कम होगा . लेकिन इन पच्चीस करोड़ के खर्च का परिणाम उल्टा आएगा.

अन्य आदिवासी इलाकों की तरह दंतेवाड़ा में भी सरकारी भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले गैर सरकारी संगठन योजनाबद्ध तरीके से समाप्त कर दिए गए हैं और जो भी सरकारी गड़बड़ियों के बारे में प्रश्न करता है उसे नक्सली कह कर जेलों में डाल दिया जाता है , कोपा kunjaam , करतम जोगा और बहुत सारे जन नायक जेलों में बंद कर दिए गए हैं. तो इस पच्चीस करोड़ रुपयों की बंदरबांट पर अब बोलने वाला कोई नहीं बचा. सारा पैसा पुलिस, अधिकारी और सलवा जुडूम के नेता मिल कर डकार जायेंगे और नक्सलवाद पहले ही की तरह चलता रहेगा.

इसके अलावा ये पैसा किस काम पर खर्च होगा इसका सलाह मशविरा भी किसी से नहीं किया जाएगा बल्की जो पुलिस कहेगी वही काम होगा. मुझे याद है दंतेवाड़ा में NEREGA के पैसे से पुलिस के आदेश पर सड़क किनारे का सैंकड़ों किलोमीटर जंगल साफ़ कर दिया गया था. लाखों सागौन के कीमती पेड़ काट डाले गए. उन पेड़ों की लकड़ी से सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने फर्नीचर बनवा कर ट्रकों में लाद कर अपने घर यु पी, राजस्थान, हरियाणा भिजवा दिया और कागजों में वृक्षारोपण का काम दिखा दिया गया . तो इस पच्चीस करोड़ से मुझे पूरा विश्वास है पुलिस के फायदे का काम ही किया जाएगा जनता के फायदे का तो बिलकुल नहीं. इस लिए श्रीमान चिदंबरम साहब जनता की आँखों में धूल मत झोंकिये और जनता को ये पता चलने दीजिये की जिन्हें वो अपना रक्षक मानती है वही उसकी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.

अभी तो विकास का पैसा डकारने का एक नया तरीका दंतेवाडा में इजाद किया गया है. अब वहां विकास के काम क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी पुलिस का एस पी खुद ही ले लेता है और आदिवासी विकास का पैसा एस पी को दे दिया जाता है. जो निश्चित न्यूनतम मजदूरी एक सौ के बजाय बीस रूपये रोज में सलवा जुडूम कैम्प में रहने वाले आदिवासियों से काम करवा कर देता है. उदहारण के लिए ,बीजापुर से गंगालूर की सी सी रोड बनाने की एजेंसी बीजापुर का एस पी था. और ये वही लायक एसपी था जिस ने १२ महूआ बीनते हुए लोगों को कुल्हाडी से काट दिया था , और जो कांड संतसपुर- पोंजेर नरसंहार के नाम से मशहूर हुआ था , पहले तो इन एस पी साहब ने सरकार की पालतू मीडिया के मार्फ़त प्रचार किया था की पुलिस ने १२ नक्सलियों को मार दिया पर लाशें नक्सली उठा कर ले गए . हमारी संस्था के कार्यकर्ताओं ने जाकर जाँच की और एक मित्र पत्रकार को भी ले गए जिसके वीडियो में सलवा जुडूम से जुड़ा सरपंच जो इस हत्याकांड में शामिल था सब सच बयान कर रहा है उसके बाद जब और ज्यादा शोर हुआ तो कांग्रेस ने भी अपना जाँच दल वहां भेजा था, अंत में राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर इन्ही एस पी साहब को गाँव में जाकर वही लाशें खोदनी पडीं जिसे वो नक्सलियों द्वारा ले जाया गया बता चुके थे, और जब गाँव वालों ने साफ़ साफ़ बयान दिया की उनके रिश्तेदारों को पुलिस ने मारा है तो इन्ही एस पी साहब ने ऍफ़ आई आर में लिख दिया की गाँव वालों का कहना है कि अज्ञात वर्दीधारियों द्वारा हमारे रिश्तेदारों की हत्या की गयी है. और वो मामला आज तक दबा ही हुआ है, और पुरस्कार स्वरुप इन एस पी साहब को राज्य मानवाधिकार आयोग का सचिव बना दिया गया था . इन्ही एस पी साहब ने सलवा जुडूम के एक नेता मधुकर राव को आदिवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता कोपा कुंजाम को मारने की सुपारी दी थी और कोपा ने इस पर इन्ही एस पी साहब के खिलाफ एक ऍफ़ आई आर भी दर्ज कराई थी और जिसके परिणाम स्वरुप कोपा जेल में है

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