आजकल सरकार की कृपा से दिल्ली में रहने को मजबूर हूँ. कल रात द्वारका के नज़दीकी बाज़ार में गया. हमारी छोटी बेटी ने गैस का गुब्बारा लेने की जिद की. गुब्बारे वाला रोज़ जहां खड़ा होता था वहां नहीं मिला, बेटी की नज़र पडी कि वो बाज़ार के बाहर अँधेरे में लगभग छिपकर खड़ा था. वो एक बूढा है. हमने पूछा आज यहाँ क्यों खड़े हो? बोला पुलिस वाले ने इतना मारा की मेरी उंगलियों से खून निकलने लगा. आज तीन दिन के बाद दुबारा गुब्बारे बेचने आया हूँ. अभी तक बस दस रुपये की बोहनी हुई है , यहाँ अँधेरे में कौन गुब्बारे खरीदने आएगा? दो दिन से कुछ भी नहीं खाया. अब तो बाबूजी मैं इतना बूढा हो गया हूँ की दिहाड़ी मजदूरी भी नहीं कर पाऊंगा.
वो बोलता जा रहा था , और में सोच रहा था इसे किस अपराध के लिए मार खानी पडी? इसकी गरीबी ही इसका अपराध है ना. अगर हम ऐसा देश बनायेंगे जिसमे करोड़ों लोगों को गरीब होने की सज़ा दी जायेगी, कहीं एक रूप में कहीं दूसरी तरह की, तो ये समाज कितने दिन चलेगा? वो बूढा गुब्बारे वाला बता रहा था की सारे पटरी वालों को मार मार कर भगाया जा रहा है, सब छिप छिप कर सामान बेच रहे हैं. मेरे मन में प्रश्न उठ रहा था की अगर इन्हें मेहनत कर के गुज़ारा चलाने की इजाज़त भी इस देश का क़ानून नहीं देगा तो इनके सामने चोरी और लूटपाट कर पेट भरने के अलावा क्या रास्ता बचेगा? और अगर इत्तिफाक से नक्सली अपनी योजना और इस देश के गृह सचिव श्री पिल्लै की भविष्यवाणी के मुताबिक शहरों में आयेंगे तो उनके सिपाही यही आपकी रोज़ाना की मार खाते लोग नहीं बनेंगे क्या ? तब शहरों के लोग नक्सलवाद के लिए नक्सलियों को कोसेंगे और मैं उसके लिए फिर से नक्सलियों को नहीं इस देश के गरीब विरोधी क़ानून क्रूर पुलिस और अंधी बहरी सरकार और अपनी मौज मस्ती में डूबे आस पास से बेखबर मिडिल क्लास को उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराउंगा. और आप मुझे फिर नक्सली समर्थक और देशद्रोही कहेंगे और फिर यहाँ की पुलिस भी मुझे यहाँ से कहीं और भगा देगी
No comments:
Post a Comment