काश कि मैंने बस्तर ना देखा होता
तो मैं भी राष्ट्र की मुख्य धारा का एक विश्वसनीय नागरिक होता ,
फिर मैं भी क्रिकेट की ये वाली, या वो वाली टीम के जीतने या हारने की राष्ट्रीय समस्या पर शर्तें लगाता हुआ पूरी शाम ऐश से बिताता ,
और चर्चा करता टी वी सिरिअलों की सास बहु की शह और मात के गंभीर मुद्दे पर ,
शर्त लगाता अपनी पत्नी से कि देख लेना इस बार बहू ही जीतेगी ,
लेकिन बस्तर से लौटने के बाद मैं अजीब और खतरनाक बातें करने लगा हूँ ,
मेरे रिश्तेदार मेरे पहुंचते ही आपस में इशारे कर के बारी बारी से उठ कर चले जाते हैं ,
क्यों कि मेरी बातों में होते हैं आदिवासियों के जले हुए घर ,
अपमानित आदिवासी बच्चियां ,
"देश का विकास कर रही अच्छी सरकार" के भयानक क्रूर कर्म,
मेरी बातों में होते हैं करतम जोगा, सुखनाथ ओयामी , मदकम हिडमे,
और पोंजेर गाँव में कुल्हाड़ी से काट दिए गए महुआ बीनते छह आदिवासियों के खून से लथपथ शव ,
क्या कोई मुझे फिर से मुझे कोई फिर से एक अच्छा नागरिक बना सकता है ?
जो टी वी , क्रिकेट और फिल्मो जैसी सभ्य बातें करे ,
असभ्य आदिवासियों, बराबरी, विकास के समान बंटवारे जैसी बातें बिलकुल ना करे ,
काश मैं बस्तर देख पाता…देखूंगा…और तब कहूंगा कि सभ्य कैसे बनेंगे आप…
ReplyDeletechndan ji apne ass pass hi jara dhyan se najren ghuma ke dekh lije bastar nahi to navjat baster to najar aa hi jayega.
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