क्या आपकी कोई बेटी है ?
चलो थोड़ी देर के लिए उसका नाम सोनी सोरी रख देते हैं !
उसे पुलिस वाले बाँध कर घसीट रहे हैं , और वो रोते रोते आपको पुकार रही है ,
पापा मुझे बचा लो !
आप खड़े होकर देख रहे हैं , आपकी मासूम लाडली बेटी को पुलिस वाले घसीटते हुए ले जा रहे हैं !
इस समय आप विवश होंगे या क्रोधित ?
क्या करने का ख्याल आएगा आपके मन में ?
और उन्ही पलों में जब आपकी मासूम बेटी को पुलिस वाले घसीट रहे हैं ,
मैं उसी मनः स्तिथी में आपके विचार जानना चाहता हूँ ,
"भारतीय लोकतंत्र " "संविधान" , "महान भारतीय संस्कृतिक परम्पराओं" के बारे में ?
चेहरा उधर मत घुमाइए !
मुझसे आँख मिला कर उत्तर दीजिये !
आपकी बेटी अभी भी चीख कर आपकी ओर आशा से देख रही है !
और आप उसकी चीखों का जवाब नहीं दे रहे हैं ?
सोनी सोरी की चीखें इतिहास हो जायेंगी !
पर हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी !
हमें माफ़ कर देना सोनी सोरी ,
हमारा लोकतंत्र तुम्हारे लिए नहीं है ,
न संसद , न हमारी दिखावटी नैतिकता और धार्मिकता , ये सब हमारे लिए हैं !
तुम आदिवासी हो , इसलिए तुम्हारे लिए है ,पिटाई , खुरदुरी ज़मीन पर पशु की तरह घसीटे जाना ,
ज़िंदगी भर जेल में बैठकर ,अपने तीन बच्चों को याद कर रोना ,
और फिर एक दिन चुपचाप एक गुमनाम मौत म़र जाना !
"सोनी सोरी मेरी बच्ची"
मैं तुम्हे भारतीय राष्ट्र की ओर से अंतिम विदाई देता हूँ !
आदिवासियों के सम्पूर्ण संहार के बाद जब हमारा प्रधान मंत्री,
लाल किले से इस एतिहासिक अपराध के लिए क्षमा मांगेगा ,
तब तुम हमें स्वर्ग से क्षमा कर देना ,सोनी सोरी !
अलविदा अलविदा
चलो थोड़ी देर के लिए उसका नाम सोनी सोरी रख देते हैं !
उसे पुलिस वाले बाँध कर घसीट रहे हैं , और वो रोते रोते आपको पुकार रही है ,
पापा मुझे बचा लो !
आप खड़े होकर देख रहे हैं , आपकी मासूम लाडली बेटी को पुलिस वाले घसीटते हुए ले जा रहे हैं !
इस समय आप विवश होंगे या क्रोधित ?
क्या करने का ख्याल आएगा आपके मन में ?
और उन्ही पलों में जब आपकी मासूम बेटी को पुलिस वाले घसीट रहे हैं ,
मैं उसी मनः स्तिथी में आपके विचार जानना चाहता हूँ ,
"भारतीय लोकतंत्र " "संविधान" , "महान भारतीय संस्कृतिक परम्पराओं" के बारे में ?
चेहरा उधर मत घुमाइए !
मुझसे आँख मिला कर उत्तर दीजिये !
आपकी बेटी अभी भी चीख कर आपकी ओर आशा से देख रही है !
और आप उसकी चीखों का जवाब नहीं दे रहे हैं ?
सोनी सोरी की चीखें इतिहास हो जायेंगी !
पर हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी !
हमें माफ़ कर देना सोनी सोरी ,
हमारा लोकतंत्र तुम्हारे लिए नहीं है ,
न संसद , न हमारी दिखावटी नैतिकता और धार्मिकता , ये सब हमारे लिए हैं !
तुम आदिवासी हो , इसलिए तुम्हारे लिए है ,पिटाई , खुरदुरी ज़मीन पर पशु की तरह घसीटे जाना ,
ज़िंदगी भर जेल में बैठकर ,अपने तीन बच्चों को याद कर रोना ,
और फिर एक दिन चुपचाप एक गुमनाम मौत म़र जाना !
"सोनी सोरी मेरी बच्ची"
मैं तुम्हे भारतीय राष्ट्र की ओर से अंतिम विदाई देता हूँ !
आदिवासियों के सम्पूर्ण संहार के बाद जब हमारा प्रधान मंत्री,
लाल किले से इस एतिहासिक अपराध के लिए क्षमा मांगेगा ,
तब तुम हमें स्वर्ग से क्षमा कर देना ,सोनी सोरी !
अलविदा अलविदा
सवाल तो गम्भीर है और हर भारतीय से पूछने लायक है…
ReplyDelete'मैं उसी मनः स्तिथी में आपके विचार जानना चाहता हूँ ,
"भारतीय लोकतंत्र " "संविधान" , "महान भारतीय संस्कृतिक परम्पराओं" के बारे में ?
चेहरा उधर मत घुमाइए !
मुझसे आँख मिला कर उत्तर दीजिये !'
क्या कहें इसपर…इस देश पर…
I agree with you and it put a pressure on us to think, Is India really a democracy? Or just a holding property in the hand of some people with money, muscles and equations.
Deleteपुलिसिया जुल्म की शिकार: सोनी सोरी
ReplyDeleteफिर भी खामोश हैं जनता के पहरेदार
मैं बड़े उधेड़बुन में हूँ. जब लिख रहा हूँ तो तय नहीं कर पा रहा की क्या लिखू? कौन शब्द कठोर है और कौन शब्द कोमल? ऐसा नहीं कि मुझे शब्दों के अर्थ नहीं मालूम. ऐसा भी नहीं है कि मुझे पता नहीं है कि मुझे क्या लिखना है. पर फिर भी हाथ थरथरा रहे हैं. मैं भयभीत भी नहीं हूँ, पर एक भूचाल-सा है मनो-मस्तिष्क में.
बचपन से विश्वास करता आया कि भारत में जनता का शासन है. जनता ही प्रधान है और लोकसेवक हमारी आकांक्षाओं के प्रितिनिधि. पर यह भरोसा धीरे-धीरे टूट रहा है. कारन बहुत से हैं, पर एक मनो-मस्तिष्क पर हावी है.
सोनी सोरी ! हाँ, उसका यही नाम है. 8 अक्तूबर, 2011 की रात दंतेवाडा पुलिस-स्टेशन में इसके साथ जो हुआ वह दिल दहलाने वाला जघन्य अपराध ही नहीं, मानवता के नाम को कलंकित करने वाला भी है. इस रात पुलिस स्टेशन में ही एक स्कूल में पढ़ाने वाली इस आदिवासी महिला के कपडे उतर दिए गए. नंगा कर के पीटा गया. बिजली के झटके दिए गए. भद्दी-भद्दी गलियां दी गयी. उसके यौननांग में गिट्टी-पत्थर डाला गया. आप पूछेंगे कि ऐसा घृणित काम किसने किया? वहां के पुलिस के मुलाजिमो ने. जिनपर हमारी माँ-बहनों कि ईज्जत बचने का उत्तरदायित्व होता है. वही लोगों ने इसकी ईज्जत लूट ली और हैवानियत की हद तक जलील किया. और वो भी वहां के सुप्रीटेंडेंट ऑफ़ पुलिस की उपस्थिथि में, उसके दिशा-निर्देश पर. गुनाह? गुनाह यह था कि उसने एक व्यक्ति को बचाने की कोशिश की थी, जिसे नक्सलवादी कहकर झूठा फंसाया जा रहा था.
आप जानना चाहेंगे कि इस घोर अपराध के लिए दोषियों पर क्या कार्यवाही हुई? आप यह जानकार हैरत में आ जायेंगे कि उस आरक्षी अधीक्षक, अंकित गर्ग को इस वर्ष वीरता के राष्ट्रपति सम्मान के लिए चूना गया है, जिसपर इतना घृणित मामला है और जिसकी पुष्टि मेडिकल रिपोर्ट भी कर चुकी है. इस आदिवासी महिला के लगातार सुप्रीम-कोर्ट को चिठ्ठियाँ लिखने और फरियाद करने के बावजूद भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अंकित गर्ग को राष्ट्रपति के हाथों वीरता का मेडल देना सुनिश्चित किया है. जब यह खबर फ़ैल गयी और सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने सोनी सोरी के हक में न्याय की मांग की. तब भी सरकार ने अंकित गर्ग के इस कार्य पर चुप्पी साध ली है और मार्च में राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार देना सुनिश्चित किया है.
ऐसा नहीं कि यह सब सिर्फ कोरा आरोप हैं. सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश पर जांच कर रही कोलकाता के एनआरएस सरकारी अस्पताल की मेडिकल टीम ने अपनी जांच में पाया कि सोनी सोरी के गुप्तांग में गिट्टी-पत्थर डाला गया. उसे बुरी तरह टॉर्चर किया गया. क्या अब भी जनता के तथाकथित पहरुआ जनता का हितैषी होने का दावा करते हैं?
अब भी आप कहेंगे कि भारत में जनता का शासन है. लोकतंत्र है. हम अपने स्कूली दिनों में रटते थे कि लोकतंत्र का मतलब - जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन है. हमें बड़ा गर्व होता रहा है यह सब सुन-पढ़कर कि भारत में लोकतंत्र है. पर धीरे-धीरे संशय बढ़ रहा. शक होने लगा है अपने लोकतंत्र पर. महात्मा गाँधी के इस देश में आदिवासी, दलित, हरिजन, पिछड़े, गरीब आज सभी पीड़ित हैं. यदि आप ऐसा महसूस नहीं कर रहे, तो आप भाग्यशाली हैं. पर सभी लोग आपकी तरह भाग्यशाली नहीं होते.
आप जानना चाहेंगे कि न्यायालय क्या कर रही? यह सवाल आप हमसे नहीं, न्यायालय और सरकार से पूछिये और वह भी तब जब आपको लगे की यह अन्याय है. न्यायालय, राज्य सरकार, केंद्र सरकार सबकी जानकारी के बावजूद भी मानवता को शर्मसार करने वाले दोषी लोग बेख़ौफ़ है. उन्हें पता है कि सरकार में बैठे लोग भी उन्ही की तरह हैं - भ्रष्ट और मानवता विरोधी. क्या अब भी आप इसे लोकतंत्र कहेंगे या पुलिस और नौकरशाही का बढ़ता एकतंत्र.
ऐसा सोचने की भूल मत कीजियेगा कि ऐसी यह अकेली घटना है. ऐसी सैकड़ों सोनी सोरी जेलों में बंद हैं. न्याय की बात जोहते-जोहते कितनों ने दम तोड़ दिया. जो बचे हैं वो भी देर-सबेर शारीरिक और मानसिक वेदना झेलते-झेलते एक दिन चल बसेंगे.
याद है आपको विनायक सेन, इरोम शर्मीला, जीतन मरांडी. ये गिने चुने लोग हैं जो हमें याद हो सकते हैं. ये बहादुर हैं इसलिए ये अपनी लडाई लड़ रहे हैं और कुछ लोग इनका साथ दे रहे हैं. पर सभी लोग इतने बहादुर नहीं होते. आज आम-आदमी अन्याय और भ्रष्टाचार से पीड़ित है और सरकार में बैठे लोग बेखबर-बेख़ौफ़ हैं. क्या जनता जागेगी? आप जागेंगे?