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Monday, February 6, 2012
सोनी सोरी का हिमाँशु कुमार को पत्र ,3 फरवरी 2012
पूजनीय मेरे पिता मेरे गुरु
चरण स्पर्श
आप सब कैसे हैं| दीदीजी कैसी हैं| हरिप्रिया की याद् हम बहुत करते हैं| उसकी चंचलतापन अब भी ऐसी होगा जैसे पहले करती थी हमे एक बार आप सब परिवार से मिलना है| गुरूजी आप सामाजिक कार्यकर्ताओ, वकीलों, बुद्धिजीवियों के बारे में हमे लोग बहुत कुछ कहते हैं सुनाते हैं हम तो यही जवाब देते हैं| कि अच्छा करे या बूरा जो भी करेंगे सभी पीड़ित लोगों के भलाई के लिये करेंगे| गुरूजी मैंने अपनी जन्मभूमि पर सब कुछ खो चुकी हूँ| आज मेरे पास कुछ भी नहीं सिवाय आपकी दी हुई शिक्षा को छोडकर आपने तो कहा था कि बेटा सच को कोई नहीं हरा सकता| इसी विश्वास के साथ जिन्दा हूँ| यदि मेरी मौत भी होती है तो मेरी सच्चाई की जंग को हारने मत दीजियेगा| मेरे पिता ये कैसा कानून है ऐसा कानून किसने बनाया पुलिस आफिसर, पुलिसकर्मी हमें इतना अत्याचार किया अनेक तरह कि गन्दी गाली दिया पूरी जख्म देकर न्यायालय को सौपा न्यायालय ने हमारी दर्द अत्याचार को बगैर देखे सुने जेल भेज दिया| मेरी गुनाह क्या है मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया जो कि अपने ही शरीर की कुर्बानी देनी पड़ी आपको तो बहुत कुछ नहीं पता होगा, आपकी शिष्या के साथ क्या-क्या हुआ कैसे-कैसे हरकते किये है| जो सबूत न्यायालय में पेश किये है उस सबूत से महसूस किये होंगे की कितनी बेदर्दी के साथ किया गया होगा| खास हम दिल्ली से ना आते आपने हमे रोका क्यों नहीं| दिल्ली के न्यायालय में चिल्लाई, गिडगिडाई, रोई फिर भी मेरी अन्दर की पीड़ा लाचारता को क्यों नहीं समझा गया| जब मुझे लाया जा रहा था मेरी आत्मा तो गवाह दे चुकी थी कि तुम्हें मार दिया जायेगा या अंदरूनी रूप से मौत देगे वही हुआ ! आज आपकी शिष्या जिन्दा लाश बनकर रह रही है| इस वक्त भी उन गुंडों के बीच रहकर संघर्ष करना पड़ रहा है| कब तक इन लोगों का सामना करू आप तो अच्छी तरह से वाकिफ हो यहाँ की परिस्थिति जुल्म से अब और सहने की क्षमता मुझमे नही है| मैं मानती हूँ सुप्रीम कोर्ट न्यायालय के आदेश से मेरी इलाज हुई जिससे मेरी जान बच गई| आप सब लोग ने हमारे लिये बहुत कुछ किया फिर भी मैं सुरक्षित नहीं हूँ| ना ही महसूस कर सकती हूँ| आप लोग समझने की कोशिश कीजियेगा| एक तो अपनी अंदरूनी पीड़ा से गुजर रही हूँ| दूसरी तरफ यहा की रणनीति से परेशान हूँ| जो पुलिसकर्मी दिल्ली न्यायालय ने दिया आदेश का पालन नहीं किया, ना ही डरा है| इन पर मैं कैसे विश्वास कर सकती हूँ| साकेत न्यायालय में तो अपनी बहन बनकर जायेगी इसपर एक भी खरोच नहीं आएगा| ये वादा न्यायालय में पुलिस अफसर ने किया था फिर निभाया क्यों नहीं ये तो न्यायालय के नजर में एक अपराधी है| इसके लिये कोई सजा नहीं आखिर क्यों| गुरूजी मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हूँ| कलकता का डाक्टर कहा था जबतक दर्द कम ना हो दवा लेते रहना एक महीने का दवा दिये थे दवा खत्म हो चुका है| एक बार जानकारी दी थी पर दवा नहीं मिला अब जानकारी भी देना उचित नहीं समझती धीरे-धीरे दर्द बढते जा रहा है| कभी-कभी ऐसा लगता है| इनका दिया हुआ जख्म है फिर मैं इन्ही लोगों से मदद ले रही हूँ | इसका मतलब इन लोगों के सामने झुक रही हूँ| ये सब सोचने के लिये हमे मजबूर करते हैं| छत्तीसगढ़ की पुलिस तो हमे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा जब हमको कलकता ले गये तो नक्सलवाद का नाम देकर इलाज करवाया जिससे अनगिनत गार्ड लगाया गया फिर भी कलकता की डाक्टरों की टीम अच्छी थी, एक ऐसी मानवता था जो कि अपनापन लगा| छत्तीसगढ़ पुलिस प्रशासन के लिये ऐसा कोई कानून नहीं है| जिससे एक अच्छी मानवता ला सके| यदि आगामी में हमे कुछ हो भी जाता है तो इसके जिम्मेदार छत्तीसगढ़ सरकार, पुलिस प्रशासन है| क्योंकि जब से पुलिस वाले ने हमपर ऐसी प्रताड़ना किया जिससे अंदरूनी रूप से घायल हो चुके हैं| और सुरक्षित नही है मेरे तीनों बच्चे बहुत परेशान हैं इन बच्चो के लिये चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही हूँ| हमे कुछ हो गया तो इनका सहारा कौन बनेगा आप लोग को ही तय करना है| अब हमसे भी ज्यादा लिंगा को परेशान कर रहे हैं| भूख से पीड़ित रखना अनेक तरह का गन्दी गाली देना बहुत परेशान कर रहे हैं| अंकित गर्ग एस.पी. तो ये भी कहा था लिंगाराम को मरना बहुत जरुरी है| हम मार तो नहीं पाये पर जेल में मरेगा जरुर हमने व्यवस्था कर लिया है| अपने आप को बहुत बड़ा तोप समझता है चार गांव का सी.डी. कैसट बनाकर कौन सा पद हासिल करेगा हम पुलिसवालों से टक्कर लेने की सोच रखता है अब उसको सब समझ में आ जायेगा| देखता हूँ अब स्वामी अग्निवेश कैसे बचाता है| इस बार उसे भी नहीं छोडेगे वो तो एक नक्सली है| इसलिए नक्सली का साथ देता है| गुरूजी लिंगा कह रहा था थाने में रखकर डेढ़ साल पहले जो परेशानी दिये थे अब भी वैसी कर रहे हैं| हमेशा ये कहते हैं तुमको तो मरना ही होगा| इसका मतलब ये लोग मुझे मार देंगे फिर मौत होने के बाद कोई भी वजह बताएंगे| न्यायालय भी सच मानकर इस केस का सुनवाई कर देगी| आधा पेट खाना देना पेपर ना पढ़ने देना टी.वी समाचार ना देखने देना हमेशा गंदी गाली देना ये सब क्या है बुआ| कब तक सहन करू मेरी कोई गलती भी नहीं है| बेवजह जेल में रखा गया ये सब सोचते हुए मैंने सोच लिया है क्यों न हड़ताल में बैठ जाऊ| लिंगा को बचा लों गुरूजी लिंगा को कुछ हो गया तो पुलिस प्रशासन का बहुत बड़ी जीत है| मैं जानती हूँ क्योंकि जब मुझे थाने में रखकर अनगिनत बाते कहा गया है जो पूरी बाते आप लोग को बताना चाहती हूँ और सुप्रीम कोर्ट में भी| यदि मैं दिल्ली में अरेस्ट ना होती तो इन लोग लिंगा और हमें मार देते हमारी किस्मत च्छी थी कि हम वहा से अरेस्ट हुए| खत बड़ी मुश्किल से लिखती हूँ करंट सार्ट से मेरी हाथ भी कापता है आँखों में तकलीफ है| बहुत ही कमजोरी आई है| खून की मात्रा 10 ग्राम था प्रताड़ना के बाद 7.8 पॉइंट हो गया है| रायपुर आने के बाद खून की मात्रा को बढाने के लिये टेबलेट दे रहे हैं| गुरूजी एस्सार नोट कांड में अंकित गर्ग एस.पी.हमे मोहरा बनाने की पूरी ताकत लगाया पर कामयाब नहीं हो सका आपकी दी हुई सच्चाई शिक्षा की ताकत जो मेरे साथ है| दुःख सिर्फ इस बात की है कि मेरी शरीर को घायल करने में सफल हो गया है| जीवित रही तो भाजपा सरकार, एस्सार से मुझपर किये गये अत्याचार का जवाब मांगने की पूरी कोशिश है| ये बहुत बड़ा साजिश था है| क्योंकि अंकित गर्ग ये भी कहा है ये प्लान हमारा बनाया हुआ था मदर सोद गोड जो तुम, लिंगा और कुछ लोग फंस गये अब मेरा प्लान कामयाब होते दिख रहा है| गुरूजी आपसे मेरी एक निवेदन है| आप हमे एक बार एस्सार कंपनी मालिक से मिलवाने की कोशिश कीजियेगा मेरे अन्दर कुछ प्रश्न है| जिसका जवाब उनके द्वारा सुनना जानना चाहती हूँ एस्सार नोट कांड केस ने तो मेरी इज्जत जीवन को ही दाव पर लगा दिया| जो भूल नहीं सकती| गुरूजी गुनाह की होती तो यहा रहने में कोई दिक्कत नहीं| मैंने कोई गुनाह ही नहीं किया फिर क्यों रखा जा रहा है| कुछ तो बताईये ऊपर से मुझपर इतना अत्याचार किया गया| जो लोग मेरे साथ किये वो मजे में घूम रहे हैं| जब दंतेवाड़ा न्यायालय जाती हूँ तो ऐसा लगता है उनकी बंदूक छीनकर उन्हें मौत दूँ| फिर अपने आपको समझाती हूँ वो जो किये हैं मैं वो नहीं करुँगी| अंतिम विश्वास सुप्रीम कोर्ट न्यायालय है जो कुछ भी करेगा, न्यायालय करेगा| मुझे अपनी लड़ाई अपनी शिक्षा कलम की ताकत से लड़ना होगा| गुरूजी मैं कितनी खुशनसीब हूँ| अपने आप में गर्व होती है| कि हर पल मेरे गुरु का साथ मिलता है| गुरूजी 26 जनवरी में मेरे कार्यरत संस्था आश्रम में तिरंगा झंडा ही फहराने की कोशिश करियेगा इसकी शिकयत यहाँ पर करने से भी कोई फायदा नहीं| क्योंकि तिरंगा झंडा के लिये थाने में बहुत बड़ा मजाक उड़ाया गया है| इस झंडे की मोल को ये गुन्डे क्या समझेंगे| आपने हर बार हमारी अच्छाइयों पर साथ दिया इस बार भी दीजियेगा यदि आश्रम में तिरंगा झंडा के जगह और कोई झंडा फहराया गया तो मैं अपनी इच्छा मृत्यु की गुहार करूंगी लाऊंगी राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट न्यायालय से| क्योंकि ऐसी बुजदिल कायर देशवासियों के साथ क्या जीना है| गुरूजी हम आपका याद बहुत करते हैं| इन्ही यादो के साथ सोचती रहती हूँ| हम अपने गुरु से कब मिलेंगे|
आपकी शिष्या
स्व हस्ताक्षरित
श्रीमती सोनी सोरी (सोढी)
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