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Sunday, April 8, 2012

आरती मांझी


       आरती मांझी के परिवार के लिये  दण्डपाणी महन्ती  की पुकार ३ जुलाई २०११ को आयी थी !उसमे लिखा था कि आरती मांझी के पिता और भाई को आज पुलिस वाले उठा कर ले गये हैं ! आरती मांन्झी को तो दो साल पहले से ही जेल में डाल दिया था ! पुलिस ने सामूहिक बलात्कार कर आरती का मुंह बंद करने के लिये उसे जेल में डाल दिया था ! अब पुलिस अधिकारी आरती मांझी के पिता दशरथ मांझी और भाइयों को मार पीट रहे हैं और उनसे थाने में कोरे कागजों पर दस्तखत कराये गये हैं !

         दण्डपाणी महन्ती की इस करुण पुकार पर इस देश के क़ानून की इज्जत करने वाले हम जैसे लोग कुछ भी नहीं कर पाए थे ! बस फेसबुक पर लिख दिया गया ! एक दो लोगों ने ई मेल को आगे बढ़ा दिया ! लेकिन उससे थाने के पुलिस वालों पर या आदेश देने वाले तंत्र के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री पर ना कोई फर्क पड़ना था ना पड़ा ! आरती मांजी अपनी निर्दोषता और सरकार की सारी बदमाशियों को चुपचाप सहते हुए जेल में पडी रही !हम सभी लोग भी हार कर चुपचाप बैठ गये ! दण्डपाणी महन्ती का नाम गुम हो गया !
    लेकिन अचानक दण्डपाणी महन्ती का नाम  रेडियो पर आने लगा ! वो अचानक महत्वपूर्ण हो गये ! फिर आरती मांझी का नाम भी रेडियो पर आने लगा ! फिर खबर आयी कि सरकार आरती मांझी को रिहा कर रही है ! पता चला कि जंगलों में रहने वाले और इस देश के पवित्र संविधान को ना मानने वाले कुछ देशद्रोहियों को इस आदिवासी लड़की की परवाह है ! उन लोगों ने सरकार चला रही पार्टी के एक एम् एल ए को और नहाती हुई आदिवासी औरतों के फोटो खींच रहे दो विदेशियों को पकड लिया है !फिर पता चला कि जिस  दण्डपाणी महन्ती की चीख कोई नहीं सुन रहा था ! उन्हें सरकार ने सादर घर से बुलाया है और उन्हें इस एम् एल ए और विदेशियों को छुड़ाने के लिये सरकार और नक्सलियों के बीच मध्यस्थता करने के लिये कहा गया है !

     आज खबर आ रही है कि सरकार आरती मांझी को छोड़ देगी ! हम सब खुश हैं बच्ची अपने घर पहुँच जायेगी ! 
   हम दुखी भी हैं कि अब देश में क़ानून खत्म हुआ ! पुलिस हमारी बेटियों से बलात्कार करती है ! हम कुछ नहीं कर पाते ! हम दुखी हैं अदालतों का इकबाल खत्म हुआ ! मामला अदालत में था फिर भी पुलिस आरती के पिता और भाई को घर से उठा कर ले गयी और थाने में ले जाकर पीटा और अदालत कुछ नहीं कर पायी ! हम उदास हैं की हम अपनी बेटी को बचाने लायक नहीं रहे ! हमे डर है कि अब अपनी बेटी के घर आ जाने के बाद उससे नज़र कैसे मिला पायेंगे ? वो हमसे पूछेगी कि हमारी राष्ट्रभक्ति, कानून को पवित्र मानने की हमारी आस्था किस काम की अगर वो उसे उस नरक से और गैरकानूनी हिरासत से मुक्त नहीं करा सकती ? 

     हम शर्मिंदा हैं ! लेकिन हम मन ही में अपने  नालायक बेटों को आशीर्वाद दे रहे हैं ! हम मन ही मन में अपनी पुलिस और सरकार के हार जाने की खुशी मना रहे हैं ! हम क्या कर सकते हैं इस हालत में इसके अलावा ? आजादी के बाद ये हालत इतनी जल्दी आ जायेगी हमने कभी सोचा भी नहीं था ! अभी कल तक ही तो मैं इस तिरंगे को और अपनी संसद को प्राणों से भी अधिक प्यारा मानता था ! अपने पिता से आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनते ही बचपन बीता ! गांधी की जीवनी पढते हुए गाँव को पूर्ण स्वराज्य की इकाई बनाने की पुलक के साथ जवानी में भारत को आदर्श राष्ट्र बनाने का सपना लेकर अपना घर छोड़ कर गावों में चला गया था ! 
   
          ये क्या भयानक हालत है !मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को ना मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं ? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं ! इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है ! वो जंगल में रहने वाले बागी इस हालत के ज़िम्मेदार हैं ? या सरकार में बैठे लोग ज़िम्मेदार हैं ! या हमारा समाज ही हार गया है अपने लालच के सामने ! हमने कुछ सामान्य से सुखों के लिये धनपतियों को सब कुछ बेच दिया ! अपनी आज़ादी , अपना संविधान , अपनी संसद , अपनी सरकार , अपनी पुलिस , सब रख दिया धन के चरणों में ! अब जिसके पास धन उसके चाकर सब कुछ ! अब क्या राष्ट्र क्या राष्ट्र का गर्व ? सब नष्ट हुआ ! सारे हसीं सपने चूर चूर हुए ! अब आँख के आंसू सूखेंगे तो आगे देखूँगा किधर जाना है ! अभी तो नजर डबडबाई हुई है !
     

3 comments:

  1. कोई शब्द नहीं है हिमाशु जी बोलने को ....!

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  2. क्‍या सरकार की हार वह सम्‍मान वापस लौटा पायेगी शायद नहीं, संविधान को न मानना और उसकी अवहेलना भी समस्‍या का समाधान नहीं, परन्‍तु हां कुछ ठोस किए जाने की आवश्‍यक्‍ता अवश्‍य है

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  3. दांतेवाडा में आखिर ये क्या हो रहा है ?

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