कम उपभोग करने वाला विकसित या ज्यादा उपभोग करने वाला विकसित
ज्यादा उपभोग करने वाला
कम पैसे कमाने वाला विकसित या ज्यादा पैसे कमाने वाला विकसित
ज्यादा पैसे कमाने वाला
मशीन से ज्यादा उत्पादन होता है या हाथ से
मशीन से
मशीन का मालिक कौन होता है अमीर या गरीब
अमीर
मशीन प्राकृतिक साधनों में से उत्पादन करती है या खुद कुछ बना सकती है ?
प्राकृतिक साधनों से
एक पहाड़ के नीचे खनिज हैं तो उस पहाड़ को खोदने वाली मशीन का मालिक ही उस पहाड़ के खनिज को निकालेगा
तो उस पहाड़ के नीचे के खनिज का मालिक कौन ?
जिसके पास मशीन है
अब पहाड़ का मालिक कौन
अब मशीन का मालिक ही पहाड़ का मालिक
यानि पहाड़ पर रहने वाले उस पहाड़ के मालिक नहीं हैं
अब उस पहाड़ पर रहने वाले मूल निवासी अगर मशीन के मालिक को पहाड़ ना खोदने दें तो सरकार किसका साथ देगी ?
मशीन के मालिक का या पहाड़ के निवासियों का ?
मशीन के मालिक का
पुलिस किसकी मदद करेगी
मशीन के मालिक की या पहाड़ के मूल निवासियों की
मशीन के मालिक की
विकसित समाज किसकी तरफ है
मशीन के मालिक की तरफ या पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ
मशीन के मालिक की तरफ
हिसाब किताब , बैंक , कम्प्यूटर , बीमा , यातायात किसके लिये चलते हैं ?
मशीन वाले के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
मशीन के मालिक के लिये !
सारे आफिस, जहाज, कारें , कालेज , किसके लिये काम करते हैं
मशीन के मालिक के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
मशीन के मालिक के लिये !
यानि सारे पढ़े लिखे , विकसित लोग , सरकार , पुलिस सब मशीन के मालिक की तरफ हैं !
और कोई भी प्रकृति के मालिक उस पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ नहीं है !
यही विकास की दुःख भरी कहानी है !
यह प्रकृति पर समाज के अधिकार को नकारती है !
यह पैसे को हर चीज़ का मालिक स्वीकार करती है !
यह हमारे ज्यादा उपभोग के अपराध को जायज़ बना देती है !
यह हमें प्रकृति का अंग नहीं बल्कि प्रकृति का मालिक मानने को जायज़ करार देती है !
इस से हम संसाधनों का बराबर बंटवारा
अगली पीढी के लिये संसाधनों की रक्षा
सुख का बराबर वितरण जैसे
सारे सामजिक नियमों को मानने से बच जाते हैं
यह विकास
असामाजिक
असभ्य
क्रूर
और
अतार्किक है
इसे आप किसी भी तर्क से सही सिद्ध कर ही नहीं सकते
एकदम सहमति!
ReplyDeleteFor first time you have cited out the practical thing. Congratulations.
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