आदरणीय रमन सिंह जी ,
मैने इससे पिछले पत्र में आपको बताया ही था कि हमारी संस्था के साथियों ने सलवा जुडुम द्वारा जलाकर नष्ट कर दिये गये सैकड़ो गांवों में से दो को फिर से बसाने का काम शुरु किया है ।
दिनांक 05.07.2008 को इनमें से एक नेन्ड्रा गांव में अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ गया था मेरे सामने लगभग डेढ़ सौ आदिवासी स्त्री-पुरुष और बच्चे बैठे थे उनके कपड़े तार - तार हो चुके थे क्यों कि उन्हें बाज़ार आने की अनुमति नहीं है वहां उनका कत्ल कर दिया जायेगा । ज्यादातर लोग कुपोषित थे क्यों कि तीन वर्षो से उनके खेत जला दिये जा रहे हैं ।
मैंने उन लोगों से पूछा हम आपके लिये सबसे पहले क्या कर सकते हैं ? एक बूढ़ा खड़ा हुआ और उसने कहा दो साल पहले मेरी बारह साल की लड़की को सलवा जुडुम वाले पकड़ कर कैम्प में ले गये थे मेरी बेटी अभी भी वहाँ है ,क्या आप मेरी बेटी मुझे वापिस दिलवा सकते हैं ?
मेरे मन में आज़ादी के साठ साल बाद प्रश्न उठ रहा था कि इस ‘जन गण मन का अधिनायक‘ क्या यही हैं ? भारत के संविधान के पहले पन्ने पर अंकित ‘‘हम भारत के लोग‘‘ में क्या ये लोग भी शामिल हैं ?
इस व्यक्ति की बेटी को बाप से छीनने वाले कोई असामाजिक तत्व नहीं है बल्कि वो राज्य सत्ता समर्थित कायवाही के तहत छीनी गई है ।
मेरी भी बारह साल की बेटी हैं ,मैं सोचने लगा कि क्या उसे भी मुझसे कोई इस तरह छीन कर खुलेआम ज़बरदस्ती शिविर में रख सकता है । इतना सोचने मा़त्र से ही मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा उस क्षण भारत के संविधान नें मुझे भीतरी शक्ति दी और आश्वस्त किया कि मेरे साथ ऐसा इस लिये नहीं हो सकता क्योंकि मैं भारत के संविधान को समझता हूँ और मेरी उस तक पहुँच भी है ।
लेकिन बस्तर के इस आदिवासी की पहुँच संविधान तक नहीं हैं ये बात हम सब जानते हैं इसलिये हम खुले आम उससे उसकी बेटी को छीन कर सरकारी सलवा जुडुम शिविर में रखने की जुर्रुत कर पा रहे हैं ।
मैंने नेन्ड्रा गांव में लोगों से कहा कि हमारी संस्था कोशिश करेगी कि आपको अपने घरों को फिर से बनाने के लिये खपरे आदि की मद्द करें । गांव के युवकों नें मुझे जो उत्तर दिया उससे मेरा सर आत्मसम्मान से उठ गया उसने कहा ‘‘धन्यवाद ,हमारे लिये ये ताड़ के पत्ते काफी हैं ,आप बस हमारे साथ रहिये । ताकि सरकार हमें मार ना डाले . बस्तर का आदिवासी आज भी मुझ जैसे शहरी से कोई खैरात नहीं चाहता बस वो इतना चाहता है कि उसे हमें जिन्दा रहने दें ।
मैनें लोगों से कहा आप खेती करना शुरु कीजिये लोगों नें कहा सलवा जुडुम और र्फोस फिर से हमारी फसल जला देगी । मैंने आश्वस्त किया कि हमारी संस्था के कार्यकर्ता आपके साथ रहेंगे और अगर सलवा जुडुम वाले आयेंगे तो हमारे साथी उनसे बात करेंगे । हँलाकि मैं आज भी भीतर से डरा हुआ हूँ कि वास्तव में अगर सलवा जुडुम के हुजूम नें फिर से उस गांव पर हमला बोला और हमारे कार्यकर्ताओं की हत्या कर ही दी तो भारत का संविधान वहाँ उन्हें कहाँ बचाने जायेगा ।
रमन सिंह जी होना तो ये चाहिये था कि जनता पर नक्सली हमला करते तो आप उन्हें बचाते ,पर हो ये रहा हैं कि गांवो में रह रही जनता को ये महसूस हो रहा है कि सरकार उन पर हमला कर रही है और नक्सली उन्हें बचा रहे हैं । मैं नही जानता ये स्थिति राष्ट्र के लिये कितनी फायदेमंद है ,शायद आप ज्यादा अच्छे से समझते हो ‘मेरी बुद्धि तो कुछ समझ नहीं पा रही हैं ।
हमारे साथी कोशिश कर रहे हैं कि स्कूल चल पड़े ;आंगनबाड़ी खुल जाये ;राशन दुकान से राशन मिलने लगे ,लोग देश और व्यवस्था को फिर से प्यार और विश्वास से देखने लगे लेकिन सरकार के ही लोग ऐसा नहीं होने दे रहे हैं क्यों ,समझ में नही आता ।
और सबसे बड़ी चीज़ जो हमें परेशान करती है वो है हर बात में सरकार और प्रशासन द्वारा झूठ बोलना ।
सरकार ने स्कूल खुद बंद किये ,आंगन बाड़ी ,स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का जुडूम और र्फोस के लोगों ने अन्दरुनी गांवो में जाना बन्द करवा दिया , और कहा गया कि इस गांव के लोग सलवा जुडुम में नही आये हैं ,इसलिये ये नक्सली है इसलिये इनको कुछ नही मिलना चाहिये और झूठ बोला जाता है कि नक्सली गांव में काम नहीं करने देते ।
आप बता सकते हैं नक्सलियों नें कितने आंगन बाड़ी कार्यकर्ता ,स्वास्थ कार्यकर्ता या शिक्षिकों को मारा हैं ? विशेषतः अपने कर्तव्य पालन करते हुए ? मेरे पास आपके प्रशासन का लिखित जवाब हैं एक को भी नहीं । फिर भी स्कूल आंगन बाड़ी हैण्डपम्प स्वास्थ राशन दन्तेवाड़ा के सैकड़ों गांवो में लाखो लोगो के लिये क्या सोच कर बन्द किया गया ? शायद आपको आपके सलाहकारों नें समझाया होगा कि इससे नक्सली भूखे मर जायेंगे और नक्सल वाद खत्म हो जायेगा । लेकिन हुआ कुछ और ही ।
पहले नक्सलवादी कुछ गांवो तक ही सिमटे हुए थे और अब सरकार ही कुछ कस्बों तक सिमट गयी हैं ।
सच बताइये आपको नहीं लगता बस्तर में गांवो को जला कर लोगों की हत्या करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाये ।
और मजे की बात ये है कि अक्ल की कहने वालों को आपके चाटुकार और आपके पालतू नेता प्रतिपक्ष तुरन्त नक्सली समर्थक कहने लगते हैं । सारे बुद्धिजीवी स्वतन्त्र पत्रकार ,सामाजिक कार्यकर्ता ,मानवधिकारवादी ,सब नक्सली, और राशन का चावल डकारने वाले ,बैल वितरण में दलाली खाने वाले ,ठेकेदारी और ट्रांसफर में रिश्वत खाने वाले सब देश भक्त और पार्टीभक्त बन बैठे हैं ।
रमन सिंह जी मेरे परिवार के अनेकों सदंस्यों ने इस देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था और पेंशन भी ठुकरा दी । मेरे पिता आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में तीस वर्ष झोला लेकर घूमे और आज भी मुझे बस्तर के आदिवासियों के बीच काम करते हुए देखते हैं और मुझे बताते हैं कि मैं बिल्कुल सत्य मार्ग पर हूँ इसलिये मुझे अब किसी और के प्रमाण पत्र की ज़रुरत नहीं हैं । इसलिये बस्तर में जो बड़े पूँजीपतियों के कहने से सलवा जुडुम के मार्फत आप गांव खाली करवाने की मुहिम चलवा रहे हैं और जिसमें पुलिस आपकी लठैत की भूमिका निभा रही है उसे मैं अपने जिन्दा रहते या जेल के बाहर - रहते तो पूरा होने नहीं दुँगा । यह मेरा आपसे वादा हैं ।
मैं आपके द्वारा खाली कराये गये सारे गांवो को दोबारा बसाने निकल पड़ा हूँ मैं सलवा जुडुम नाम के इस सबसे बड़े औेद्यौगिक विस्थापन षडयन्त्र को विफल कर रहा हूँ ,गांधी के सत्याग्रही के नाते अपने हर कदम की पूरी सूचना आपको देता रहूँगा ।
हिमांशु कुमार
कंवलनार -दंतेवाड़ा
५/७ २००८
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