अगर मेढ़क को गरम पानी में फेंक दिया जाय। तो मेढ़क तुरंत कूद कर पानी से बाहर निकल जायेगा।
लेकिन अगर उसी मेढक को ठन्डे पानी में डाल कर बर्तन को आग पर रख कर पानी को धीरे धीरे गरम करेंगे तो मेंढक पानी से निकल कर नहीं भागेगा।
मेंढक उसी में उबल कर जायेगा।
आप को भी सरकार इसी तरह हौले हौले ग़लत बातों को सहन करने आदत डालती है। इसके बाद सरकार के बड़े बड़े अपराध भी आप आँख मूँद कर सहन करने लगते हैं।
कल ही पुलिस ने बयान दिया की गढ़ चिरोली में उसने जिन " नक्सलियों " को पकड़ा है उन्होंने बताया है कि ये लोग दिल्ली में एक 'जन सुनवाई' करने वाले हैं जिसमे "नक्सल समर्थक " लोग आकार अपनी बातें रखने वाले हैं।
असल में तो सरकार ने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को अलग अलग जगहों से पकड़ा है और उन्हें गढ़चिरोली में गिरफ्तार बताया है।
तो साहेबान बात निकली ही है तो आप भी जान लीजिये की ये " आपरेशन ग्रीन हंट " क्या है ?
असलियत में सरकार ने बस्तर में आदिवासियों को उनके गाँव से उजाड़ना शुरू किया तो सरकार ने इसका कारण बताया कि इन गाँव में नक्सली शरण लेते हैं इसलिए हम इन गाँव को खाली करवा रहे हैं। और सरकार द्वारा ये गाँव खाली कैसे करवाए जाते थे?
गाँव में आग लगा कर , फसलें जला कर , औरतों से बलात्कार कर के।
वैसे यह तर्क देश के पढ़े लिखे तबके ने बड़े मज़े में स्वीकार भी कर लिया। किसी ने यह नहीं पूछा कि दिल्ली में भी तो जेब कतरे और आतंकवादी हैं। लेकिन पुलिस कभी दिल्ली वालों से यह नहीं कहती कि चलो सब लोग दिल्ली खाली करो हमें जेबकतरों और आतंकवादियों को पकड़ना है।
लेकिन आदिवासियों के साथ आपको यह करने की छूट है। आदिवासी इंसान थोड़े ही हैं। इसलिए आपने आदिवासियों के साथ यह व्यवहार करने की जुर्रत करी और राष्ट्र रक्षक का तमगा भी हासिल किया।
अपने घर और फसल जलाए जाने की वजह से आदिवासी जंगलों में छिप गए। तब सरकार ने जंगलों में छिपे हुए आदिवासियों को मार कर वहाँ से भी भगाने के लिए "आपरेशन ग्रीन हंट" शुरू किया। ग्रीन हंट का मतलब ही है हरियाली का शिकार।
जब हम लोग सर्वोच्च न्यायलय में गए और हमने कहा की लोग जंगल में छिपे हुए हैं। जब तक उन्हें वापिस उनके घरों में नहीं बसाया जाता , तब तक अगर हमारे सुरक्षा बल अगर जंगल में जायेंगे तो हमें अंदेशा है की बड़े पैमाने पर निर्दोष लोग मारे जायेंगे। क्योंकि इन्ही सुरक्षा बलों ने पहले इन आदिवासियों के घर जलाये हैं। अब दुबारा यदि आदिवासी इन्हें जंगल में देखेंगे तो वह भयभीत होकर भागेंगे। सुरक्षा बल भागते हुए लोगों पर नक्सली होने का संदेह करेंगे और उन्हें मार डालेंगे।
हमने सुझाव दिया की इसलिए पहले तो आप आदिवासियों को उनके गावों में दुबारा बसा दीजिये।
लेकिन सरकार ने किसी भी आदिवासी को उसके घर में नहीं बसाया। हम लोगों ने जब आदिवासियों को उनके गाँव में बसाने की कोशिश करी तो सरकार घबरा गयी। सरकार को लगा की बड़ी मेहनत से तो आदिवासियों को उजाड़ा था ये लोग उन्हें फिर से उनकी ज़मीनों पर बसा रहे हैं। सरकार ने गाँव बसाने वाले हमारे कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया।
इस बीच सरकारी सुरक्षा बल लगातार जंगलों में और गाँव में लोगों को डराने धमकाने गाँव जलाने आदिवासियों की हत्याएं करने का काम कर रही हैं।
ताड़ मेटला में पिछले साल आदिवासियों के तीन गाँव जलाए गए, और पांच महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया ।
सारकेगुड़ा में सत्रह आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया जिनमे पांच बच्चे थे। लिंगागिरी में उन्नीस आदिवासियों की हत्या की गयी जिनमे पांच लडकियां थीं ,
गोमपाड गाँव में सोलह आदिवासियों की हत्या कर दी गयी जिनमे अस्सी साल का बुज़ुर्ग भी शामिल है और सत्तर साल की बुज़ुर्ग महिला के वक्ष सीआरपीऍफ़ की कोबरा बटालियन ने काट डाले , डेढ़ साल के बच्चे की अंगुलियाँ काट डाली गयी।
कुछ ही महीने पाहिले एड्समेत्ता गाँव में पूजा करते हुए नौ आदिवासियों को सीआरपीऍफ़ ने मार डाला।
इन आदिवासियों की तकलीफ सुनने के लिए सरकार ने कोई इंतजाम नहीं किया है। अब अगर सामाजिक कार्यकर्ता इन आदिवासियों की तकलीफ सुनने के लिए जनसुनवाई का आयोजन करते हैं तो पुलिस उन्हें जेल में डाल देगी।
ठीक है मत बोलने दीजिये इन आदिवासियों को। इनकी तकलीफ सुनने की कोशिश करने वालों को आप नक्सली कह कर जेल में डाल दीजिये।
लेकिन उसका परिणाम क्या होगा ये भी तो सोचिये।
इसका फायदा सरकार को होगा या नक्सलियों को?
सरकार मारेगी तो लोग किसके पास जायेंगे ?
और हम जो शहरी पढ़े लिखे लोग हैं वो मेंढक की तरह पानी के गरम होते जाने को महसूस ही नहीं कर रहे हैं।
सम्भव है हम भी अपने आदिवासियों को वैसे ही मार डालें जैसे अमरीका, कनाडा , न्यूजीलेंड, आस्ट्रेलिया व अन्य साठ देशों ने अपने यहाँ के मूल निवासियों को मार डाला है।
लेकिन जनाब फिर अपने लोकतंत्र, बराबरी , सामान नागरिकता , महान संस्कृति ,विश्वगुरु भारत , और आध्यात्मिकता आदि का क्या होगा ?
या फिर वैसा ही करोगे जैसा पिछली बार किया था कि भारत के मूल निवासियों को मारो फिर अपने धर्म ग्रन्थ में लिख दो कि जी वो तो असुर और राक्षस लोग थे ,जिनका हमारे देवताओं ने वध कर दिया जिससे धर्म की स्थापना हो सके।
मुझे अंदेशा हो रहा है की इस चुनाव में चाहे मोदी जीते या कांग्रेस। चुनाव के तुरंत बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बड़े पैमाने पर हमला होगा। अगले दस साल ज़मीनों , नदियों, खदानों और जंगलों पर कब्ज़े के होंगे।
जो भी इस लूट खसोट पर सवाल उठाएगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा।
प्रधान मंत्री लाल किले से बोल ही चुके हैं की जो हमारे विकास का विरोधी है वही आतंकवादी है। और शहरी लोगों के लिए विकास का मतलब है की गरीबों की ज़मीनें टाटा और अम्बानी को सौंप दो। ताकि इनके उद्योगों में हमारे बच्चों को काम मिल सके।
जो करोगे सो भरोगे। जैसा बोओगे वैसा काटोगे। बंदूकें बोओगे लाशें पाओगे।
हम तो गांधी बाबा के वचन सुनाते हैं। मानना या न मानना आपकी मर्जी।
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