जब मेरठ में हमारे पड़ोस के मोहल्ले में टीवी आया . तब मैं दूसरी कक्षा में पढता था .
मेरठ जैसे छोटे शहर में दूसरी कक्षा को सेकेण्ड क्लास कहने जितना विकास नहीं हुआ था .
पिताजी का केबिनेट मंत्री का दर्ज़ा था लेकिन उन्होंने सरकारी वेतन नहीं लिया .
गांधी आश्रम से मिलने वाले तीन सौ रूपये के मानदेय में माँ चार बच्चों को पालती थी .
दूसरे मुहल्ले के एक बड़े से घर में जो बनियों का था मैंने अपनी जिंदगी का पहला टीवी देखा था .
अपने बैठने के लिए बोरी घर से लेकर जानी पड़ती थी .
ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आता था . लेकिन बड़ी बहनों के साथ जाना पड़ता था नहीं तो वो पीटती थीं .
मैं टीवी देखते हुए अक्सर सो जाता था . और बाद में उंघते और रोते ठुनुकते वापिस आता था .
मेरे पांचवीं पास करने तक पिताजी का गांधी आश्रम से मतभेद हो गया था .
आश्रम वालों का कहना था कि जे पी के आन्दोलन का समर्थन कीजिये .
लेकिन पिताजी और उनके साथियों का कहना था कि जे पी का आन्दोलन सम्पूर्ण क्रन्ति का आन्दोलन नहीं है . यह एक सत्ता को हटा कर दूसरी पार्टी की सत्ता मात्र लाने का आन्दोलन है .
इसके बाद पिताजी को गांधी आश्रम छोडना पड़ा . परिवार मुज़फ्फर नगर वापिस आ गया .
मुज़फ्फर नगर में एक परिचित जिन्हें हम सत्यवती ताई जी कहते थे जिनके बेटे संतोष शर्मा जाने माने वकील हैं . उनके घर दो किलोमीटर दूर टीवी देखने जाया करते थे .
हम इतवार को आने वाली फीचर फिल्म और बुधवार के चित्रहार का इंतज़ार करते थे .
बाद में हमारे ताऊ ब्रह्म प्रकाश जी ने भी टीवी खरीद लिया .
अब तो हमारे मज़े आ गए .
हम साढ़े पांच बजे ही टीवी शुरू होने से आधे घंटे पहले से ही टीवी खोल कर बैठ जाते थे .
पहले तो स्क्रीन पर बिंदी बिंदी झिलमिलाती रहती थी .
फिर स्क्रीन पर पट्टियां दिखाई देने लगती थीं .
हम खुश हो जाते थे कि अब टीवी शुरू होने वाला है .
उसके बाद रात ग्यारह बजे तक हम टीवी के आगे बैठे रहते थे .
लास्ट में टीवी का समय पूरा होने के बाद जब बिंदी बिंदी झिलमिलाने लगती थीं तब ही टीवी बंद होता था और हम सोने जाते थे .
जब कभी चुनाव के नतीजे आते थे तब कई फिल्मे दिखाई जाती थीं . तब तो त्यौहार का सा माहौल बन जाता था .
बाद में शनिवार की फिल्म शुरू हुई चित्रहार शुक्रवार को भी आने लगा .
सन बयासी में टीवी रंगीन हो गया .
फिर हम बड़े होने लगे . टीवी देखना कम होता गया .
अब तो चौबीस घंटे के सैंकडों चैनल हैं लेकिन अब मेरे घर में टीवी है ही नहीं .
टीवी का शौक़ीन वो बच्चा अब कहीं गुम हो गया है शायद .
मेरठ जैसे छोटे शहर में दूसरी कक्षा को सेकेण्ड क्लास कहने जितना विकास नहीं हुआ था .
पिताजी का केबिनेट मंत्री का दर्ज़ा था लेकिन उन्होंने सरकारी वेतन नहीं लिया .
गांधी आश्रम से मिलने वाले तीन सौ रूपये के मानदेय में माँ चार बच्चों को पालती थी .
दूसरे मुहल्ले के एक बड़े से घर में जो बनियों का था मैंने अपनी जिंदगी का पहला टीवी देखा था .
अपने बैठने के लिए बोरी घर से लेकर जानी पड़ती थी .
ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आता था . लेकिन बड़ी बहनों के साथ जाना पड़ता था नहीं तो वो पीटती थीं .
मैं टीवी देखते हुए अक्सर सो जाता था . और बाद में उंघते और रोते ठुनुकते वापिस आता था .
मेरे पांचवीं पास करने तक पिताजी का गांधी आश्रम से मतभेद हो गया था .
आश्रम वालों का कहना था कि जे पी के आन्दोलन का समर्थन कीजिये .
लेकिन पिताजी और उनके साथियों का कहना था कि जे पी का आन्दोलन सम्पूर्ण क्रन्ति का आन्दोलन नहीं है . यह एक सत्ता को हटा कर दूसरी पार्टी की सत्ता मात्र लाने का आन्दोलन है .
इसके बाद पिताजी को गांधी आश्रम छोडना पड़ा . परिवार मुज़फ्फर नगर वापिस आ गया .
मुज़फ्फर नगर में एक परिचित जिन्हें हम सत्यवती ताई जी कहते थे जिनके बेटे संतोष शर्मा जाने माने वकील हैं . उनके घर दो किलोमीटर दूर टीवी देखने जाया करते थे .
हम इतवार को आने वाली फीचर फिल्म और बुधवार के चित्रहार का इंतज़ार करते थे .
बाद में हमारे ताऊ ब्रह्म प्रकाश जी ने भी टीवी खरीद लिया .
अब तो हमारे मज़े आ गए .
हम साढ़े पांच बजे ही टीवी शुरू होने से आधे घंटे पहले से ही टीवी खोल कर बैठ जाते थे .
पहले तो स्क्रीन पर बिंदी बिंदी झिलमिलाती रहती थी .
फिर स्क्रीन पर पट्टियां दिखाई देने लगती थीं .
हम खुश हो जाते थे कि अब टीवी शुरू होने वाला है .
उसके बाद रात ग्यारह बजे तक हम टीवी के आगे बैठे रहते थे .
लास्ट में टीवी का समय पूरा होने के बाद जब बिंदी बिंदी झिलमिलाने लगती थीं तब ही टीवी बंद होता था और हम सोने जाते थे .
जब कभी चुनाव के नतीजे आते थे तब कई फिल्मे दिखाई जाती थीं . तब तो त्यौहार का सा माहौल बन जाता था .
बाद में शनिवार की फिल्म शुरू हुई चित्रहार शुक्रवार को भी आने लगा .
सन बयासी में टीवी रंगीन हो गया .
फिर हम बड़े होने लगे . टीवी देखना कम होता गया .
अब तो चौबीस घंटे के सैंकडों चैनल हैं लेकिन अब मेरे घर में टीवी है ही नहीं .
टीवी का शौक़ीन वो बच्चा अब कहीं गुम हो गया है शायद .
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