हम सब अपनी माँ के हाथ से बने खाने के स्वाद को याद करते हैं .
मैंने इसकी खोज करने का विचार किया
अपनी पत्नी को बेटियों के लिए खाना बनाते हुए ध्यान से देखा
जब वह सब्जी खरीदती है तो ध्यान से खरीदती है कि मेरी बेटियों को कौन सी सब्जी पसंद है
अब इस बात में क्या ईर्षा करनी कि हमारी पसंद अब दोयम दर्जे पर रख दी गयी है
प्रकृति नयी पौध पर ज़्यादा ध्यान देने के लिए माँ को प्रेरित करती है
इसलिए माँ बच्चे की पसंद पर ज़्यादा ध्यान देने लगती है
जब सब्जी काटी जाती है तो माँ बच्चों की पसंद को ध्यान में रख कर सब्ज़ी काटती है ,
मुझ से अक्सर कहा जाता है कि आपने ये क्या सब्ज़ी काट दी है बच्चे इसे नहीं खायेंगे छोड़ देंगे
फिर जब सब्ज़ी बनने लगती है तो सारे मसाले बच्चों की पसंद को ख्याल में रख कर डाले जाते हैं ,
हर प्रक्रिया में माँ के मन में और हाथ में बच्चे की पसंद का ही ख्याल छाया हुआ था
अब जो खाना बनेगा वह बच्चों को तो पसंद आएगा ही
अब समझ में आ गया कि मेरी माँ के हाथ के खाने का स्वाद अब क्यों नहीं मिलता ?
वो तो सिर्फ माँ के हाथ के खाने में ही मिल सकता है .
इस पोस्ट को महिलाओं के अधिकारों से न जोड़ा जाय
क्योंकि इसके बाद बर्तन मांजने का काम मैं ही करता हूँ .
मैंने इसकी खोज करने का विचार किया
अपनी पत्नी को बेटियों के लिए खाना बनाते हुए ध्यान से देखा
जब वह सब्जी खरीदती है तो ध्यान से खरीदती है कि मेरी बेटियों को कौन सी सब्जी पसंद है
अब इस बात में क्या ईर्षा करनी कि हमारी पसंद अब दोयम दर्जे पर रख दी गयी है
प्रकृति नयी पौध पर ज़्यादा ध्यान देने के लिए माँ को प्रेरित करती है
इसलिए माँ बच्चे की पसंद पर ज़्यादा ध्यान देने लगती है
जब सब्जी काटी जाती है तो माँ बच्चों की पसंद को ध्यान में रख कर सब्ज़ी काटती है ,
मुझ से अक्सर कहा जाता है कि आपने ये क्या सब्ज़ी काट दी है बच्चे इसे नहीं खायेंगे छोड़ देंगे
फिर जब सब्ज़ी बनने लगती है तो सारे मसाले बच्चों की पसंद को ख्याल में रख कर डाले जाते हैं ,
हर प्रक्रिया में माँ के मन में और हाथ में बच्चे की पसंद का ही ख्याल छाया हुआ था
अब जो खाना बनेगा वह बच्चों को तो पसंद आएगा ही
अब समझ में आ गया कि मेरी माँ के हाथ के खाने का स्वाद अब क्यों नहीं मिलता ?
वो तो सिर्फ माँ के हाथ के खाने में ही मिल सकता है .
इस पोस्ट को महिलाओं के अधिकारों से न जोड़ा जाय
क्योंकि इसके बाद बर्तन मांजने का काम मैं ही करता हूँ .
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