'थाने में बैठे आन ड्यूटी
बजावें हाय पांडे जी सीटी'
बजावें हाय पांडे जी सीटी'
हमारे पैसे से चलने वाली आकशवाणी से यह गाना बजता है .
पुलिस वाला ताकतवर है .
पांडे जी बड़ी जात वाले हैं
पुरुष है
पांडे जी बड़ी जात वाले हैं
पुरुष है
इसलिए यह स्तिथी भारतीय संस्कारों में मज़ा देने वाली हालत पैदा करती है
भारत के संस्कारों में अगर इस तरह की बात के लिए स्वीकार भाव ना होता तो इस तरह का गाना भारत में ना तो बन सकता था ना ही सरकारी रेडियो पर बज सकता था ना जनता द्वारा इसे स्वीकार किया जा सकता था .
इसी सोच वाले भारत में बड़ी जाति का एक पुलिस अधिकारी एक कमज़ोर सामाजिक वर्ग आदिवासी लड़की के गुप्तांगों में पत्थर ठूंसता है तो भारत का राष्ट्रपति खुश होकर बख्शीश में उस अधिकारी को वीरता का तमगा देता है और देश तालियाँ बजाता है .
हमारे समाज का जो सार्वजनिक स्थान है वह किसके द्वारा भरा गया है ?
आप खुद ही देखिये कि किसी भी सार्वजनिक स्कूल कालेज , आई आई टी , आई आई एम् , मेडिकल कालेज , पुलिस , प्रशासन , राजनीति में जो स्पेस है उसे किसके द्वारा भरा गया है ?
कभी अचानक ध्यान दीजियेगा .
उस सार्वजनिक स्पेस में
कितने पुरुष हैं ,और महिलायें कितनी हैं ?
कितने पुरुष हैं ,और महिलायें कितनी हैं ?
बड़ी जाति के लोग कितने हैं और कमज़ोर आर्थिक समूहों के लोग कितने हैं ?
बहुसंख्यक धार्मिक समूह के लोग कितने हैं , अल्पसंख्यक कितने हैं ?
आप देख्नेगे कि ज्यादातर सार्वजानिक स्थान पर बहुसंख्य , उच्च जाति के पुरुषों का कब्ज़ा है .
इस तरह जागरूक होकर देखने से आप पता लगा सकते हैं कि समाज पर कब्ज़ा किसका है और बेदखल किसे किया गया है
अगर सार्वजनिक जीवन से महिलायें , दलित , आदिवासी अल्पसंख्यक गायब हैं तो आप निश्चित मानिए वह समाज पुरुषवादी सवर्ण मानसिकता के दमनकारी विचारों से ग्रस्त शासन प्रशासन राजनीति और न्याय व्यवस्था से ही पीड़ित रहेगा
तभी तो भारत का सर्वोच्च न्यायालय किसी को सिर्फ इसलिए फांसी पर चढ़ा देता है क्योंकि भारत के स्वर्ण पुरुषों के वर्चस्व वाली सामूहिक अन्तश्चेतना ऐसा चाहती है .
ये जो समाज का कामन स्पेस है
उसमे महिला
पीढ़ियों से दबाये गए दलित
जंगलों में रहने वाले आदिवासी
बराबर का स्पेस पा सकें इसकी जिम्मेदारी
किसकी है ?
उसमे महिला
पीढ़ियों से दबाये गए दलित
जंगलों में रहने वाले आदिवासी
बराबर का स्पेस पा सकें इसकी जिम्मेदारी
किसकी है ?
हम सभी की है ना ?
लेकिन अगर हम इसकी तरफ ध्यान ही नहीं देंगे
तो समाज के इस कामन स्पेस में सभी की बराबर भागीदारी बनायेगे कैसे ?
तो समाज के इस कामन स्पेस में सभी की बराबर भागीदारी बनायेगे कैसे ?
समाज आज जहां है उसे वहाँ से आगे ले जाना
इसी पीढ़ी की जिम्मेदारी है
इसी पीढ़ी की जिम्मेदारी है
इसे ही असली विकास कहते हैं
नकली विकास नहीं असली विकास कीजिये
समाज में सभी के लिए जगह बनाइये .
समाज में सभी के लिए जगह बनाइये .
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