क्या भारत का युवा मूर्ख और क्रूर हो जाएगा ?
युवा पीढी को हर पिछली पीढी के मुकाबले अधिक उदार, अधिक समझदार और अधिक प्रगतिशील बनना पड़ता है ,
तभी दुनिया आगे को बढ़ती है ,
अभी तक पूरे इतिहास में ऐसा ही होता आया है,
लेकिन अभी दुनिया में कुछ ऐसे संकेत दिखाई दे रहे हैं ,
कि एक बहुत छोटी संख्या को छोड़ दें तो बहुसंख्य युवा क्रूर और स्वार्थी नेताओं को समर्थन दे रहे हैं,
अमेरिका में ट्रम्प और भारत में मोदी का जीतना उसके ताज़ा उदाहरण हैं,
इसके खतरे बहुत गहरे और लम्बे समय तक समाज पर असर डालेंगे,
अगर युवा नफरत करने वाले और आर्थिक लूट को समर्थन देने वाले बन जायेंगे ,
तो उस समाज में समझदारी, उदारता और विचारों की तरक्की रुक जायेगी,
कला, साहित्य संस्कृति, कविता, आदि उदार और आज़ाद दिमाग से पैदा होते हैं,
नफरत से भरे हुए युवा इन सब की रचना कर ही नहीं सकते,
वो समाज कैसा होगा जो संस्कृति से हीन होगा,
नफरत की एक और खासियत होती है,
इसे समझा ना जाय तो यह बढ़ती जाती है,
जो समाज नफरत से भरा होगा और संस्कृति से हीन होगा,
क्या वह शान्ति से रह पायेगा ?
क्या ऐसा विकृत समाज युद्ध नहीं करेगा ?
क्या आज के विज्ञान के युग में युद्ध प्रेमी समाज खुद ही समाप्त नहीं हो जाएगा ?
हम हिंसा और नफरत के ऐसे रास्ते पर चल पड़े हैं जिसका अंजाम खुद को नष्ट कर लेना ही है,
हमें यह भी समझ लेना चाहिए ज्यादातर नफरत और क्रूरता दुनिया के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने की नियत से पैदा करी गयी हैं,
जैसे मुसलमानों के खिलाफ युद्ध तेल पर कब्ज़े के लिए खड़ा किया गया,
आदिवासियों पर युद्ध खनिजों के लिए शुरू किया गया,
एक ऐसा समाज बनाया गया जो इस तरह की लूट पर मजे करे,
फिर लूट के समर्थन में पूरी राजनीति बनाई गयी,
ऐसा आप पूरी दुनिया में देख सकते हैं और भारत में भी,
इसलिए अब अगर इंसानी नस्ल को बचाना है ,
तो इंसान के द्वारा इंसान की लूट को खतम करना पड़ेगा,
इंसान के द्वारा इन्सान से नफरत को खतम करना पड़ेगा,
चाहे वह नफरत किसी के धर्म के आधार पर पैदा करी गयी हो,
चाहे वह किसी के देश के आधार पर पैदा करी गयी हो ,चाहे जाति, रंग या भाषा के आधार पर पैदा करी गयी हो,
नफरत की राजनीति इंसान के अस्तित्व के लिए खतरा है,
इसे अभी ही समझने की ज़रूरत है,
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