बस अड्डे से फोन पर अपनी बेटी से मैंने पूछा कि कहाँ हो अभी ?
बेटी की आवाज़ में कुछ नया उत्साह था,
बोली, पापा अभी मैं खेल कर घर आ रही थी तो रास्ते में खड्ड में एक छोटा सा पिल्ला पानी में गिरा हुआ था,
मैं उसे घर ले आयी हूँ, वो ठण्ड से काँप रहा है,
घर पहुँचने से पहले ही मैंने कल्पना कर ली थी कि मेरी बेटी उस पिल्ले को आज अपनी रजाई के अंदर सुलाने की जिद करेगी,
और मैं उसके इजाज़त मांगने से पहले उसकी इस मांग को पूरा करने का निर्णय ले चुका था,
घर आया तो मेरी बेटी ने अपना तौलिया उस पिल्ले को लपेटा हुआ था और वह जनाब सोफे पर बैठ कर दूध नोश फरमा रहे थे,
मैंने हीटर निकाला और उसके पास चालू कर दिया, पिल्ले ने थोड़ी देर में कांपना बंद कर दिया,
बच्चों की इस तरह की आदतें मेरे इस विश्वास को पक्का करती हैं कि इंसान मूल रूप में अच्छा ही होता है,
हमारी तथाकथित सभ्यता और संस्कृति इंसान को खराब बनाते हैं,
बच्चे जिस तरह कुत्ते, बिल्लियों, और चिड़ियों के साथ प्यार से पेश आते हैं वह मेरे इस दावे का सबसे साफ़ सबूत है ,
एक दूसरा वाकया,
कल एक नौजवान का फोन आया,
वह स्कूल में पढाता है,
नाटक भी लिखता है,
उसने बस्तर के आदिवासियों पर एक नाटक लिखा,
उस नौजवान के नाटक को पुरस्कार मिला,
पुरस्कार देने वाली संस्था का नाम है टाटा फाउंडेशन,
इनाम लेते समय उस नौजवान नें कहा की मैं आपको इस पुरस्कार के लिए कोई धन्यवाद नहीं दूंगा,
क्योंकि आप के ही बिजनेस संस्थान आदिवासियों की ज़मीनें छीन रहे हैं,
कल मुझे फोन पर उस नौजवान नें कहा कि सर मैं इनाम में मिले डेढ़ लाख का एक भी पैसा अपने लिए इस्तेमाल नहीं करूंगा,
आप ऐसे आदिवासियों के मामले मुझे बताइये जिनका इलाज बिना पैसे के ना हो पा रहा हो,
हांलाकि वह नौजवान चाहता तो इस पैसे से मोटर साईकिल या कोई कैमरा खरीद सकता था,
लेकिन उसने इसे बीमार आदिवासियों को देने का फैसला किया,
इंसानियत में हमारा विश्वास ऐसे नौजवान और बच्चे पक्का कर देते हैं,
साम्प्रदायिकता, जातिवाद और गरीबों की लूट ही हमारा भविष्य नहीं है,
भविष्य के निर्माता ये उम्मीदों से भरे करोड़ों बच्चे और नौजवान भी हैं,
इंसानियत में उम्मीद मत हारिये,
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