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Monday, December 5, 2016

आंख मूंद कर चलना अधर्म है

मेरे परदादा का नाम बिहारी लाल शर्मा था,
वो उत्तर प्रदेश में महर्षि दयानन्द के प्रथम शिष्य थे ,
महर्षि दयानन्द मुजफ्फर नगर मे हमारे घर मे ठहरते थे ,
उत्तर प्रदेश आर्य समाज भवन लखनऊ मे लगी संगमरमर की तख्ती पर हमारे परदादा का नाम सबसे ऊपर लिखा हुआ है,
हमारे घर पर नियमित हवन होता था ,
इस सब के बावजूद मैं कहता हूँ ,
कि हवन करने से वायु प्रदूषण कम नहीं होता ,
हवन करने से वातावरण शुद्ध नहीं होता ,
बल्कि आग मे कुछ भी जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ,
मैं चाहता हूँ मैं सच्चाई और विज्ञान को जानूं ,
सच्चाई को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके बाप दादा क्या मानते थे ,
सत्य ही धर्म है ,
पुरानी लकीर पर आंख मूंद कर चलना अधर्म है ,

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