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Monday, December 5, 2016

नोटबन्दी और आदिवासी

नोटबन्दी के द्वारा आदिवासियों की कमर तोड़ने की भाजपा की कोशिश ,
बस्तर में आदिवासियों की ज़मीनें हड़पने के लिये सरकार लगातार गांव पर हमले करती है ,
अब आदिवासियों को आर्थिक तौर पर कमज़ोर करने के लिये ,
भाजपा सरकार उनकी छोटी- मोटी जमा पूँजी छीनने हड़पने में लग गई है ,
आदिवासी महुआ , तेंदु पत्ता , मुर्गी, या बकरी बेच कर ,
या मज़दूरी का थोड़ा बहुत पैसा बचा कर अपने पास रखते हैं ,
आदिवासियों के बैंक खाते नहीं हैं ,
आदिवासियों के राशन कार्ड , वोटर कार्ड सरकार ने पहले ही जला दिये थे,
ऐसी हालत में आदिवासी किसी बैंक खाता वाले किसी परिचित या रिश्तेदार के खाते में मिलकर पैसा जमा कराने की कोशिश कर रहे हैं ,
पुलिस आकर आदिवासियों को पकड़ रही है ,
पुलिस कहती है कि यह पैसा तुम्हें नक्सलवादियों नें दिया है ,
बारसूर के निकट गांव की चार आदिवासी महिलाओं को मात्र साठ हजार रूपये की वजह से दो दिन तक थाने में अवैध हिरासत में रखा गया है,
पिछले चार दिनों में ग्यारह आदिवासियों की हत्या पुलिस ने कर दी है ,
आदिवासियों की हत्या के बाद पुलिस का आईजी कल्लूरी दावा करता है कि ये लोग नक्सली थे और अपना छिपा हुआ पैसा निकाल रहे थे,
अनेकों गांवों पर पिछले कुछ दिनों से लगातार हमला कर रही है ,
आदिवासी पुलिस की फायरिंग से बचने के लिये जंगल में भागते हैं ,
तो पुलिस कहती है कि देखो नक्सलवादी अपना छिपा हुआ पैसा निकाल रहे हैं ,
नोटबन्दी के माहौल का फायदा भाजपा आदिवासियों पर ताजा हमले कर के उठा रही है ,
ताकि आदिवासी समुदाय की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ दी जाय ,
जिससे आदिवासी लम्बे समय तक सरकार से लड़ने की ताकत ना जुटा पायें ,
लेकिन ऐसा होने नहीं दिया जायेगा ,
हम सभी लोकतांत्रिक लोग आदिवासियों के संघर्ष में उनके साथ रहेंगे ,
और सरकार के मंसूबों को हमेशा की तरह इस बार भी विफल कर देंगे ,

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