प्रोफेसर जी एन साईबाबा, प्रशांत राही, हेम मिश्रा,पंडू नारोते और महेश तिर्के को गढ़चिरोली ने नक्सलियों की मदद करने की आरोप में उम्र कैद की सजा दी है,
इनमें से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साईबाबा चल फिर नहीं सकते, जन्म से व्हील चेयर पर हैं, हेम मिश्रा जेएनयू के छात्र हैं, प्रशांत राही उत्तरांचल के पर्यावरण कार्यकर्ता हैं बाकी दोनों कार्यकर्ता आदिवासियों के मानवाधिकारों की कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे,
अदालत ने इन सभी को उम्र कैद की सजा देते समय अपने फैसले में जो लिखा है वह बहुत खतरनाक है,
जज ने लिखा है कि नक्सलवादी आन्दोलन के कारण इस इलाके में व्यापारी निवेश नहीं कर पा रहे हैं जिसके कारण इस इलाके का विकास रुक गया है, मैं इन लोगों को उम्र कैद की सजा दे रहा हूँ कानून नें मेरे हाथ बाँध रखे हैं वरना मैं इन्हें और भी ज्यादा कड़ी सजा देता,
यानी जज को व्यापारियों की चिंता है, जज को संविधान में जनता को दिए गए मूल अधिकारों की चिता नहीं है ? आदिवासियों के जिन अधिकारों के लिए यह कार्यकर्ता आवाज़ उठाते हैं जनता के उन अधिकारों की रक्षा करना तो आदालत का काम होना चाहिए था,
लेकिन अब अदालत जनता के संवैधानिक अधिकारों के रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उम्र भर के लिए जेल में डाल रही है,
हांलाकि गढ़चिरोली कोर्ट का यह फैसला ऊपरी कोर्ट में टिकेगा नहीं, क्योंकि संविधान के मुताबिक़ आप किसी को उसके विचारों के कारण सज़ा नहीं दे सकते,
वरना तो हर सरकार अपनी विचारधारा के अलावा दूसरी विचारधारा के लोगों को जेल में डाल देगी,
अगर विचारधारा के अपराध में सज़ा दी जाने लगी तो भाजपा शासन में संघी विचारधारा के अलावा सभी विचारधारों के लोगों को अपराधी घोषित किया जा सकता है,
इसलिए संविधान विचारधारा के कारण किसी को सजा नहीं देता,
ऊपरी अदालत में अपील होने और ज़मानत होने तक इन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रहना पड़ेगा,
सरकार जनता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले लोगों में आतंक पैदा करना चाहती है,
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