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Tuesday, January 25, 2011

क्या कोई इस आदिवासी महिला को बचा सकता है?

दंतेवाडा से मुझे तीन माह पहले एक आदिवासी महिला का फ़ोन आया, "सर, दंतेवाडा का एस एस पी कल्लूरी मुझसे कह रहा है कि अगर तुम अपने भतीजे लिंगा को दिल्ली से वापिस बुलाकर हमें नहीं सौंपोगी, तो हम तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर देंगे." और आज तीन माह के बाद वह लड़की मुझे बताती है, "सर, आपने कुछ नहीं किया, और इस बीच पुलिस ने मेरे पति को जेल में डाल दिया है और मेरे ख़िलाफ़ दो ऍफ़ आई आर लिख दी हैं, जिसमें एक थाने पर हमला करने और दूसरी एक राजपूत कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम के घर में नक्सलियों के साथ मिलकर हमला करने का आरोप लगाती हैं."

वह लड़की मुझसे रोकर कहती है, "सर, मेरे तीन बच्चे हैं. मैं कैसे थाने पर और कांग्रेसी नेता पर हमला करने जाऊंगी?" वह कहती है, "मैं जाकर कल्लूरी से मिलकर रोई, गिड़गिड़ाई. पर उसकी एक ही शर्त थी कि दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे लिंगा कोडोपी को लाकर पुलिस को सौंपा जाए, तभी उसे और मेरे पति को इस मामले से मुक्त किया जाएगा"

इस आदिवासी लड़की को मैंने आज से बारह साल पहले पहली बार देखा था. तब वह बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी. बस्तर में विनोबा भावे के शिष्य पद्मश्री धर्मपाल सैनी शिक्षण संस्थाएं चलाते हैं. मैं और मेरी पत्नी अक्सर इस शिक्षण संस्था में जाकर बच्चों से मिलते थे. वहीं पर सोनी नामक लड़की हमें मिली थी. तब इसके चाचा नंदा राम सोरी दंतेवाडा से सी पी आई के एम एल ए थे.

बारह साल के अंतराल के बाद यह लड़की पिछले साल अक्टूबर में फिर मेरे पास आई और उसने बताया कि उसके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को पुलिस घर से उठा कर ले गई है और उसपर एस पी ओ बनने का दबाव डाल रही है, और उसे दंतेवाडा थाने के शौचालय में छिपा कर रखा हुआ है. एस एस पी अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी उसकी नित्य पिटाई करते हैं.

मैंने तुरंत हाई कोर्ट में हेबियस कॉर्पस दायर करने की सलाह दी. सोनी की सलाह पर लिंगा के बड़े भाई मासाराम कोडोपी ने बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपने भाई लिंगा को कोर्ट में पेश करने का आवेदन दिया. पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लिंगा अपनी मर्जी से एस पी ओ बना हुआ है. कोर्ट ने लिंगा को हाज़िर करने का हुक्म दिया और कोर्ट में लिंगा ने कह दिया कि वह एस पी ओ नहीं बनना चाहता, बल्कि अपने घर जाना चाहता है. कोर्ट ने पुलिस से लिंगा को तुरंत छोड़ने और घर जाने देने का आदेश किया.

कोर्ट से घर वापिस आते समय लिंगा को अहसास था कि पुलिस उसे घर तक नहीं पहुँचने देगी क्योंकि थाने में क़ैद के दौरान एस पी अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी ने उससे और उसके परिवार वालों से कहा था कि अगर इस लड़के लिंगा को वे अदालत के सहारे पुलिस से छुडवा भी लेंगे, तो पुलिस उसे बाद में गोली से उड़ा देगी और एन्काउंटर बता देगी. इस धमकी को याद रखते हुए लिंगा रास्ते में अपनी गाडी से उतर गया और अपने एक मित्र के घर रुक गया. उधर जैसा कि आदेश था, पुलिस ने लिंगा को पकड़ने के लिए आगे नाकाबंदी की हुई थी. लिंगा के परिवार की गाडी रुकवाई गई. पर लिंगा को न पाकर एस पी अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी की हवाइयां उड़ गईं. उन्होंने लिंगा के छिपने के ठिकाने के बारे में पूछताछ करने के लिए लिंगा के बड़े भाई मासा कोडोपी को रास्ते में पकड़ लिया.

लिंगा को इस बात का पता चला, तो छिपते छिपते मेरे पास आया. हमने तुरंत हाई कोर्ट को फै़क्स द्वारा शिकायत भेजी कि हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज करने वाले को ही पुलिस ने ग़ायब कर दिया है. फैक्स मिलने पर अगले दिन हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस से जब लिंगा के भाई के बारे में नोटिस जारी कर जवाब पूछा, तो पुलिस ने लिंगा के भाई को दो दिन के बाद छोड़ दिया.

लेकिन एक हफ़्ते के बाद फिर लिंगा को मारने के लिए रात को उसके गाँव पर हमला कर दिया गया. लिंगा को इस बात का अंदेशा तो था ही. इसलिए वह अपने घर न सोकर गाँव के बाहर एक खँडहर में सोया था. पुलिस ने गाँव के हर घर में घुसकर लिंगा को तलाश किया. लेकिन जब लिंगा नहीं मिला, तो पुलिस उसके बूढ़े बाप और गाँव के पांच और लोगों को पकड़कर लिंगा के बारे में पूछताछ करने ले गई. लिंगा फिर मेरे पास आया, और इस समय वह बहुत ग़ुस्से में था. वह बार बार बड़बड़ा रहा था, "ठीक है, अगर सरकार ऐसा करेगी, तो मैं भी नक्सलवादियों के साथ मिल जाता हूँ." मैंने उससे कहा, "लिंगा, सरकार यही चाहती है कि आदिवासी लड़के बन्दूक उठाएं, जिससे सरकार को उन्हें मार देने का बहाना मिल जाए. हम क़ानून की लड़ाई लड़ेंगे, ग़लती से भी बंदूक मत उठाना." हम लोगों ने फिर से एक शिकायत लिखकर राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट, प्रधान मंत्री, मानवाधिकार आयोग, ड़ी जी पी, एस पी आदि को भेजी. पुलिस ने एक हफ़्ते बाद लिंगा के पिता को छोड़ दिया. बाक़ी के पाँच गाँव वालों को एक महीने के बाद छोड़ा गया. इस पूरे मामले में भी सोनी सोरी लगातार गाँव वालों को छुड़ाने में लगी रही. इस बीच पुलिस की टीमें लिंगा को लगातार गाँव में जाकर मार डालने के लिए ढूंढती रहीं, हालांकि उसका कोई अपराध नहीं था. कोर्ट से उसे संरक्षण प्राप्त था. लेकिन छत्तीसगढ़ में पुलिस और सरकार कोर्ट को पैरों की जूती समझती है.

इस बीच एस एस पी अमरेश मिश्रा और डी आई जी कल्लूरी से लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल मिले. दोनों से पुलिस अधिकारियों ने साफ़ साफ़ कहा कि लिंगा ने कोर्ट में पुलिस की इज्ज़त ख़राब की है, उनके पास उसे मारने की ऊपर से छूट है, और उसे तो वे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे.

लिंगा मेरे दंतेवाडा वाले आश्रम में छिपा हुआ था. उसने पूछा, "सर, मुझे क्या करना चाहिए?" वह बार बार कहता था, "मैं बन्दूक उठा लूँगा. अगर मरना ही है, तो लड़ते हुए मरूँगा." मैंने कुछ सामाजिक संस्थाओं से बातचीत की और लिंगा को गोपनीय तौर पर दिल्ली भिजवा दिया. मेरे कुछ पत्रकार मित्रों ने सलाह दी कि बस्तर में कोई आदिवासी पत्रकार नहीं है. इसलिए लिंगा को पत्रकार बनने में मदद की जानी चाहिए. लिंगा का प्रवेश दिल्ली के एक प्रख्यात पत्रकारिता संस्थान में हो गया.

उधर छत्तीसगढ़ पुलिस को जब लिंगा के पत्रकार बनने की संभावना का पता चला, तो वह घबरा गई, क्योंकि लिंगा छत्तीसगढ़ पुलिस के अत्याचारों का गवाह था और पत्रकार बनने के बाद वह दंतेवाडा में पुलिस की करतूतों का पोल खोल सकता था. आनन फानन में विश्वरंजन और कल्लूरी ने एक वक्तव्य मीडिया के लिए जारी किया कि लिंगा कोड़ोपी एक बड़ा नक्सली नेता है और माओवादी पार्टी ने अपने प्रवक्ता आज़ाद के मरने के बाद लिंगा को उनकी जगह नियुक्त किया है, और लिंगा को नक्सलवाद की ट्रेनिंग के लिए अमरीका भेजा गया था (जबकि लिंगा के पास कोई पासपोर्ट नहीं है) और उसका सम्बन्ध अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर, हिमांशु कुमार और नंदिनी सुन्दर से है.

इस प्रेस वक्तव्य के बाद स्वामी अग्निवेश ने दिल्ली में एक प्रेस वार्ता की तथा चुनौती दी की लिंगा यहाँ है और एक सीधा सादा आदिवासी युवक है जो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा है और अगर पुलिस के पास कोई सबूत है तो सामने आये. इसके बाद पुलिस ने माफ़ीनामा जारी किया और छत्तीसगढ़ के डी जी पी विश्वरंजन ने वक्तव्य दिया कि लिंगा के विषय में पिछला वक्तव्य ग़लती से जारी हो गया था. परन्तु पुलिस बीतर ही भीतर लिंगा तो दबोचने का षड्यंत्र बनाने में लगी रही, और उसने लिंगा की बुआ सोनी और उसके पति अनिल के विरुद्ध फ़र्जी रिपोर्ट लिखकर अनिल को तीन महीने से जेल में डाला हुआ है, और सोनी के विरुद्ध वारंट जारी कर दिया है. सोनी वारंट के बावजूद एस एस पी कल्लूरी से कई बार मिली. हर बार उसने सोनी से एक ही शर्त रखी-कि लिंगा को दिल्ली से वापिस लाकर पुलिस तो सौंप दिया जाए, तभी वे उसे और उसके पति को छोड़ देंगे, और लिंगा को गोली से उड़ा देंगे.

सोनी सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल है. रोज़ स्कूल जाती है, हाज़िरी दर्ज करती है और इसे फ़रार घोषित कर दिया गया है, ताकि इस आदिवासी महिला को कभी भी गोली मार दी जा सके.
क्या कोई इस निर्दोष लड़की की जान बचाएगा?
कहाँ इस देश के महान मीडिया के दिग्गज?
कहाँ हैं देशभक्ति की ठेकेदार भाजपा?
और कहाँ हैं आदिवासियों के सिपाही राहुल गाँधी?

मैं रोज़ इस आशंका से जागता हूँ कि सोनी सोरी के मौत की या उसके जेल में डाल देने की ख़बर आएगी. वह रोज़ मुझे फोन कर के उसे बचाने का निवेदन करती है. क्या कोई है जो इस महान लोकतंत्र में, इस महाशक्ति बनने जा रहे भारत में, जो इस असहाय, अकेली आदिवासी लड़की को सत्ता और व्यापार के क्रूर पंजों से बचा सके?
अपने निर्माण के दस साल बाद छत्तीसगढ़ लोकतंत्र के नाम पर एक धब्बा बना हुआ है. लेकिन क्योंकि वहां से खनिज पदार्थ लूटना है, जिसमें मनमोहन सिंह, चिदंबरम, कॉंग्रेस और भाजपा सबकी हिस्सेदारी है, इसलिए छत्तीसगढ़ में इस आतंकवादी शासन पर सब ख़ामोश हैं. लेकिन ये सब लोग फासीवादी खेल खेल रहे हैं जिसका फ़ायदा नक्सलियों को हो रहा है.

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