मैं सोनी सोरी जेल से ये खत लिख रही हूं ,
मेरी छोटी बेटी रोज रात को रोती होगी
सोने से पहले मुझे याद कर ,
कह देना उससे माँ ज़ल्दी वापिस आयेगी ,
मैं अब वापिस नहीं आऊँगी, मालूम है मुझे ,
पर बच्ची है , बहला देना !
हर साल खून बदलना पड़ता है मेरी इस बेटी का ,
पर ज्यादा दिन कष्ट नहीं सहेगी अब ,
बिना इलाज़ शांत हो जायेगी इस साल !
मेरे बड़े बेटे और बेटी से कहना स्कूल के बच्चों के कहने का बिलकुल
यकीन न करें कि उनकी माँ- पिता की की कोई गलती थी ,इसलिए वो जेल में है !
मेरे बूढ़े पिता की सडती टांग का भी नहीं होगा अब ,
पिताजी से शिकायत भी है मुझे,
क्यों पढाया मुझे ? क्या उन्हें नहीं मालूम ,
एक आदिवासी लड़की का का पढ़ा लिखा होना
उसे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है ?
अनपढ़ रहती तो चुप रहती ,
सहती ,कुचली जाती !
पर मुझे पढ़ा कर, क्यों तैयार किया
कि मैं बोल सकूं और मुसीबत खड़ी करूँ पूरे परिवार के लिये !
क्यों पढाया मुझे ? क्या उन्हें नहीं मालूम ,
ReplyDeleteएक आदिवासी लड़की का का पढ़ा लिखा होना
उसे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है ?
अनपढ़ रहती तो चुप रहती ,
... ... ... ओह!