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Wednesday, January 25, 2012

सुप्रीम कोर्ट न्ययालय के वकील सर के नाम पे खत -सोनी सोरी / A Letter to Supreme Court Advocate Sir- Soni Sori

सुप्रीम कोर्ट न्ययालय के वकील सर के नाम पे खत
शनिवार दिनांक 8/10/2011 को रात में दंतेवाड़ा का पुराना थाना के ही बगल में नया थाना बना है उसी नया थाना भवन में प्रताडना किया गया है| रात में मैं सोई थी दो लेडीज पुलिसकर्मी मुझे उठाये है| मैंने पूछा क्यों जगा रहे हो, कहने लगे एस पी अंकित गर्ग साहब आये हैं| मुझे दूसरे रूम में ले गये| उस रूम में एस पी अंकित गर्ग और किरन्दूल थाने का एस डी पी ओ भी बैठा हुआ था मुझे उस रूम में बिठाया गया साथ में कुछ समय तक लेडिज पुलिसकर्मी थे कुछ देर बाद उन दोनों लेडीज को रूम से बाहर आने को कहा और कहा कि यह पर जो कुछ भी हो रहा है| इस बात को किसी से नहीं कहोगे यदि ऐसा हुआ तो तुम लोग के साथ क्या कर सकता हूँ| तुम लोग अच्छी तरह जानते हो वो दोनों ने कहा जी सर हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे ठीक है जाओ ऐसा कहा है| फिर मानकर आरक्षक और वसंत को बुलाया कहने लगा मानकर तुम डरना मत मैं हूँ ना| ये मदर सौद तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी| मादर सौद तुम जानना चाहोगी ये प्लान हमने बनाया था जो कामयाब होते नजर आ रहा है| मानकर को कहने लगे बेटा तुम बहुत ही बहादुरी का काम किया तुमसे मैं बहुत खुश हूँ| मदर सौद मैं कौन हूँ एस पी अंकित गर्ग हूँ| जो पहले बीजापुर में था अब बहुत जल्द एस पी से बड़ा रेंज का अधिकारी बनने वाला हूँ| टेबल बजाकर कहने लगा सबकुछ यह से होता है| हम जो कहेंगे वही होगा शासन प्रशासन सरकार यह है| समझी मादर सौद | मानकर को तुम क्या बदनाम करोगे उसे तो अब प्रमोशन मिलेगा| काफी देर तक गन्दी गन्दी गाली देकर मानसिक रूप से प्रताडित किया| कई गालियों को मैंने पहले खत में जिक्र किया है| शायद आपको वो खत प्राप्त हुई होगी पूरी बाते खत पर बयान नहीं कर सकती कुछ कागजों में साइन करने को कहा कुछ बातों को लिखकर देने को कहा जब मैंने मना करने लगी तो कडक बातों से दबाव डाला फिर भी मैंने इंकार करने लगी तब करेंट सार्ट पैर कपड़ा में देने लगे कुछ देर के लिये रोक दिया और कहने लगा हम जो कह रहे हैं| वो करो इसी में आपकी भलाई है| तुम बच जाओगी समझी| हिमाँशु, स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण, कोलिन, लिंगाराम, कविता श्रीवास्तव, मेधा पाटेकर, अरुंधती राय, नंदनी सुन्दर, मनीष कुंजम, रामा सोडी, एस्सार कंपनी का मालिक ये सब के नाम से लेटर लिखकर दो ये सब नक्सली समर्थक है| मैं और लिंगा दिल्ली तक यहाँ की हर खबर देते थे जो मैं जानती हूँ ये लोग बुलाने पर मैं दिल्ली गई थी एस्सार कंपनी के अधिकारी नक्सली तक रूपये पहुचानें के लिये हमेशा मनीष कुंजम, रामा सोडी और मुझे देते थे इस तरह से हमलोग नक्सली का मदद करते थे बहुत सारे बाते है | इस तरह का खत लिखने को कहा| जो मैं लिखकर नहीं दी ना ही उनके लिखा कागज पर साइन भी नहीं किया| मदर सौद हमारे लिखित कागज में साइन कर बहुत ही दबाव डाले मैंने कहा आप जान ले लो पर मैं जो गुनाह की नहीं और जिन लोगों के बारे में कह रहे हो| हो भी नहीं करूंगी| मैंने कहा इससे अच्छा मार दो कहने लगा ये भी कर लेते पर नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हें दिल्ली से अरेस्ट किया गया है| अब तुम मेरी बात् नहीं मान रही हो तो सजा देकर ही जेल में भेजेंगे ताकि शर्म से जेल की दीवारों में अपना सर पटककर मर जाउंगी शिक्षित महिला हो इतनी शर्म को तो लेकर जी तो नहीं पाऊँगी| इस तरह का बाते कहा और फिर करंट सार्ट देने को कहा करंट सार्ट दे देकर मेरे कपड़े को उतराया गया नंगा करके खड़ा रखा| एस पी अंकित गर्ग कुर्सी में बैठकर हमे देख रहा था| शरीर को देख देखकर गन्दी गन्दी गालियां देकर बेइज्जत किया कुछ देर बाद बाहर निकला और कुछ समय बाद फिर तीन लडके को भेजा वो लडके उल्टी सीधी हरकते करने लगे और धक्का देने पर गिर गई फिर मेरे शरीर में बेदर्दी के साथ डाला गया सहा नहीं पाई बेहोश की हालात में थी काफी देर बाद होश आया तो मैंने अपने आप को जिस रूम में सोई थी वह पाई| तब तक सुबह हो चुका था रविवार दिनांक 9/10/2011 उस दिन भर दर्द को अंदर ही अंदर सहती रही किससे कहती वहाँ पर मेरा अपना कोई था ही नहीं| सोमवार दिनांक 10/10/2011 को सुबह लेडीज पुलिस हमे कहने लगी फ्रेश हो जाओ तुमको कोर्ट ले जाना है| तब मैंने कहा मेडम मुझे चक्कर आ रहा है| मेरी हिम्मत नहीं हो रही है| कुछ देर रुक जाओ कहने लगी तुम्हें जल्दी तैयार होने को बोले है| नहीं तो हमे गाली पडेगा| तब मैंने कहा एक कप चाय पीला दीजिये जिससे मैं हिम्मत कर सकू चाय पीया और धीरे धीरे बाथ रूम तक गई कुछ देर बाद चक्कर आया तो गिर गई| मैं पहले से ही बाथरूम तक जाने लायक नहीं थी फिर भी दबाव डालकर बाथरूम में प्रवेश होने के लिये भेजा गया| शायद ये लोग अच्छी हालात बनाकर मुझे कोर्ट न्यायालय में ले जाना चाहते थे| पर ऐसा नहीं हुआ बाथरूम में गिरते ही बेहोश हो गई फिर दंतेवाड़ा थाना से निकालकर दंतेवाडा अस्पताल में ले गये काफी देर बाद मुझे होश आया| होश आने के बाद दर्द और ज्यादा बढा गया ना हो सकी ना बिस्तर से उठ सकी पूरी तरह घायल हालात में थी प्रताडना का जिक्र किसी से उस वक्त नहीं किया मुझे धमकी दिया गया था फिर भी कोशिश करती रही कि मौका देखकर मेरे ऊपर किया गया प्रताड़ना के बारे में बताऊ पुलिसकर्मी तो हर पल मेरे साथ थे| फिर मुझे दंतेवाडा अस्पताल से करीब दो बजे गाड़ी के बीच सीट में सुला कर कोर्ट में लाया गया बहुत देर तक कोर्ट न्यायालय के बाहर ही रखे न्यायालय के अंदर नहीं ले गये और एस डी पी ओ न्यायालय के अंदर से कागजात लेकर आया और कहने लगा इसमें साइन करो मैंने कहा सर मैं कुछ जज के सामने बयान देना चाहती हूँ| तब कहने लगा ये सब बाद में होगा| ये सब कागजात तुम्हें जेल भेजने के लिये है| साइन करो क्या करती इससे अच्छा तो जेल जाना ही ठीक है| सोचकर साइन कर दिया| जज मेडम बैगेर देखे सुने हमे जेल भेज दिया बहुत देर बाद कोर्ट से फिर दंतेवाडा थाना में लाए दो व्यक्ति पहले से ही थाने में मौजूद थे इतनी परेशानी होने के बाद भी वो दोनों व्यक्ति हमे पूछताछ कर रहे थे कविता श्रीवास्तव के बारे में मैंने कहा मेरी हालात ठीक नहीं है| इस वक्त मैं बात करने योग्य नहीं हूँ| मुझे जबरदस्ती ना करे| तब तक रामदेव मेरा भाई परिवार के साथ थाना आया और कहने लगा मेरी दीदी को इधर क्यों लाए हो कोर्ट ने तो जेल ले जाने की परमिशन दिया है| तब तुरंत जगदलपुर के लिये रवाना किये| जगदलपुर सेन्ट्रल जेल में शाम को करीब 7-8 बजे पहुंचे मेरी हालात देखकर जेल वाले ने दाखिला नहीं दिया| फिर दंतेवाडा का ही गार्ड हमें जगदलपुर अस्पताल में भर्ती किया| इलाज होता रहा मंगलवार दिनांक 11/10/2011 को जगदलपुर का डॉक्टर रायपुर के लिये रिफर किया| शाम को जगदलपुर अस्पताल से करीब 10-11 बजे रायपुर के लिये निकले रायपुर में बुधवार दिनांक 12/10/2011 सुबह पहुचे रायपुर अस्पताल में भर्ती किया गया इलाज होता रहा| रायपुर का गार्ड जबरदस्ती डॉक्टर से कहकर हमे उसी दिन शाम को करीब 8-9 बजे सेन्ट्रल जेल रायपुर में ले आये हमने बहुत कोशिश किया कि सर हमें तकलीफ है| इलाज होने दो फिर भी जबरन ले आये और कहने लगे लाल गेट को दिखते ही अपने आप ठीक हो जाओगे ऐसे कहे है| चलने योग्य भी नहीं थी बड़ी तकलीफों का सामना करते हुए जेल की गेट को प्रवेश किया|

स्व हस्ताक्षरित
प्रार्थी
श्रीमती सोनी सोरी (सोढ़ी)
A Letter to Supreme Court Advocate Sir

On the night of Saturday, 8.10.2011, in the new police station in Dantewada which has been built next to the old police-station, I was tortured. That night, when I was sleeping, I was woken up by two policewomen. I asked them, why am I being woken? I was told that SP Ankit Garg has come. I was taken to a second room. In that room, SP Ankit Garg and the SDPO of Kirandul Police Station were seated. I was made to sit in that room for some time along with the women police.
After a while, the two police women were asked to go out of the room. They were told, “Whatever is happening in this room should stay in this room—if word gets out, you know very well what will happen to you.” The two of them said, “Yes, sir. We won’t tell anyone.” “Okay. Go,” they were told.
After this, Constable Mankar and Basant were called. He told Mankar. “Don’t be afraid. After all, I am here for you. What will this bitch do to you? Bitch, you should know that the plan was hatched by us together, and it looks like the plan is yielding success.” He told Mankar, “Son, you have acted very bravely. I am very happy with you.” “Bitch, do you know who I am? I am SP Ankit Garg … who used to be in Bijapur earlier, and am soon going to be promoted from an SP to an official of the big range.” He banged on the table and said, “Everything happens from here. Whatever we order will be carried out. We are the administration, authority and government. Do you understand, you bitch? How will you defame Mankar? He will now be given a promotion.”
For a long time, he verbally abused me and tortured me psychologically. I have referred to the verbal abuse in my earlier letter. Maybe you have received that letter. I can’t write about all the abuses in this letter. I was asked to sign on some papers and was asked to write down some things. When I refused, I was pressured through stern talk. I still refused, and then they started giving me (electric) current in my feet, legs and on my clothes. For some time, they stopped doing this and told me, “Do whatever we are asking you to do. Your well-being lies in this. You will be safe, do you understand? Write a letter saying that Himanshu, Swami Agnivesh, Prashant Bhushan, Colin, Lingaram, Kavita Srivastav, Medha Patkar, Arundhati Roy, Nandini Sundar, Manish Kunjam, Rama Sodhi, the owner of Essar company, are all Naxalite supporters. That Linga and I used to send all news from here to Delhi. That I went to Delhi since they had asked me to come. That Essar company officials used to always give money to Naxalites through Manish Kunjam, Rama Sodhi, and me. This is the way in which we used to help the Naxalites…” There were a lot of things. This is how they asked me to write a letter.
I did not write such a letter, nor did I sign the papers on which they had written. “Bitch, sign the papers which we have written!”—a lot of pressure was put on me. I told them that I am willing to die but I have not committed any crime and I will also not write about the people you are asking me to write about. I told them that it is better that they kill me. He said, “This also would have been done, but we can’t do it now since you have been arrested in Delhi. However, since you are not obeying my commands, I will send you back only after punishing you. You will be so ashamed of yourself; you will beat your head against the walls of the jail and die of shame. You are an educated woman; you will not be able to live with this shame.”
He said these kinds of things and ordered that electric shocks be given. After repeatedly giving me electric shocks, my clothes were taken off. I was made to stand naked. SP Ankit Garg was watching me, sitting on his chair. While looking at my body, he abused me in filthy language and humiliated me. After some time, he went out and in a little while, he sent three boys. These boys started molesting me and I fell after they pushed me. Then they put things inside my body in a brutal manner. I couldn’t bear the pain, I was almost unconscious. After a long time, I regained consciousness and found myself in the room in which I had slept. By then, it was already morning.
On Sunday, 9-10-2011, I bore the pain quietly, all by myself. Whom could I tell; there was no one that was on my side there. On the morning of Monday, 10-10-2011, the women police told me to freshen up since I had to be taken to court. I told them, “Madam, I am feeling quite dizzy. I am not feeling strong enough. Please wait for a bit.” They said, “They are asking to have you ready quickly. Otherwise, they will shower abuses on us.” Then I asked for a cup of tea so that I could get some strength. I drank some tea, and slowly got up and went to the bathroom. After a while, I felt dizzy and fell down. I was anyway not fit enough to go to the bathroom, but I was pressured to go to the bathroom to freshen up. Maybe these people wanted to present me in a good condition in front of the court. But this could not happen. As soon as I fell in the bathroom, I became unconscious. Then, they took me from the Dantewada police station to the Dantewada hospital. After a long time, I regained consciousness. After regaining consciousness, my pains had increased and I could not stand up, nor could I even get off the bed. I was in a fully injured condition.
I did not mention my torture to anyone at that time. I had been threatened. Still, I kept looking for an opportunity to talk about my torture, but I was surrounded by police at all times. Then, around 2 pm, I was taken from the Dantewada hospital, lying down on the seat of the police vehicle, and brought to the court. For a long time, we were kept outside the court and were not taken inside the court. SDPO brought some papers from inside the court and asked me to sign them. I told him, “Sir, I want to give some testimony in front of the Judge.” He told me that all that will happen later. All these papers are to send you to jail, sign them. What could I do? I thought that going to jail is better than this. The Judge Madam did not hear me out, did not talk to me, and just sent me off to jail.
After the court, they brought me to Dantewada police station. Two people were already present in the Dantewada police station. In spite of all my difficulty, they started to interrogate me about Kavita Srivastav. I told them that I am not feeling well, I am not in any shape to talk. Please do not force me. By that time, my brother Ramdev had reached the police station along with my family. He started asking, “why have you brought my sister here? The court had given you the permission to take her to the jail.” Then, they immediately took me to the Jagdalpur. We reached the Jagdalpur Central Jail around 7-8 pm. On seeing my condition, the jail authorities refused to admit me. Then the guard (unclear) of Dantewada only got me admitted into the Jagdalpur hospital. They treated me. Then, on Tuesday, 11-10-2011, the doctor at Jagdalpur hospital referred me to Raipur. In the evening around 10-11 pm, we left for Raipur and reached Raipur on Wednesday morning, 12-10-2011. I was treated there. The Raipur guard forced the doctor and brought me to the Central Jail Raipur around 8-9 pm. I tried my best to tell them, “Sir, I am in a lot of pain. Please let my treatment continue.” Then also, they brought me forcibly and told me, “You will get better immediately on seeing the red gate.” I wasn’t in any condition even to walk. I managed to enter the gate of the jail with a lot of difficulty.
Applicant,
Soni Sori.S

7 comments:

  1. Himanshu ji, This is atrocious. I hope God gives all the strength and courage to Soni Sori. Meanwhile, we will do all that we can, to add more pressure on the Indian govt. and the judiciary to do the right thing.

    Anand Surada, Austin.

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  2. ठीक से नहीं सके यह पत्र! निः शब्द!

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  3. This is fabricated to defame pious land od Chhattisgarh.

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  4. @Rajesh ji- The land may be pious but the landlords certainly are not. If raping a woman and subjecting her to the worst form of torture is piety according to you, then I am sad about the state of my country.

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  5. A judicial inquiry must be set up to punish the guilty officers involved in such heinous crime at the earliest so that justice can be given to aggrieved.

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  6. Please forward this letter to National Human Rights Commission and to Supreme Court.

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  7. Kiya fatada he in sab ko likhne ka himanshu ji. Prakriti he. Kuch vikrit mansikta ke log isme me ananad ki khoj karte honge. Asli power banduk ki nali ke muh se nikalti he. Agar Kuch kar nahi sakte to kamjor logo ko varglane se kiya fayada. Yudh hi iska hal ho sakta hai. Abhi upar padha suggestion ki is letter ko supreme court aur hrc ko bhejo. Jese inke uncle usme bethe isko padne ke liye.

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