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Monday, March 26, 2012

आर्ट ऑफ़ लिविंग

       
  तब मैं दंतेवाडा में रहता था ! श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले मेरे पास कई बार आये !मुझे एक बार अपने कार्यक्रम में भी ले गए ! सभी प्रचारक लोग सबको हमेशा खुश रहने का उपदेश दे रहे थे ! बिना बात के हंस रहे थे !फिर ये लोग मुझसे कहने लगे कि हमें नक्सलियों से मिलवा दीजिये ! मैंने कहा कि क्या करोगे नक्सलियों का ! तो कहने लगे उनको हमारे गुरूजी सुधारेंगे ! मैंने कहा आपके गुरूजी ने कभी किसी नक्सली को सुधारा है ? तो बोले हाँ जेल में सुधारा है ! मैंने कहा चिड़ियाघर में बंद शेर पर तो बच्चे भी दहाड़ लेते हैं ! जंगल का शेर अलग होता है !पर ये  आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले लोग मेरे पीछे दो साल तक पड़े रहे ! फिर मैंने इनको समझाया कि देखो जैसे आप खुद भगवान को नहीं मिल सकते लेकिन भगवान अगर चाहे तो आप से तुरंत मिल लेगा ! इसी तरह नक्सली आपके चाहने से आपसे नहीं मिलेंगे  जब वो खुद चाहेंगे आप से मिल लेंगे !मैं थोड़े ही नक्सलियों को जानता हूँ  हाँ  नक्सली ज़रूर मुझे जानते हैं ! इसके बाद सबको खुश रहने का उपदेश देने वाले सभी प्रचारक मेरे प्रति बहुत क्रोध में आ गये ! उसके बाद ये लोग मुझे देख कर क्रोध की भंगिमा बना लेते थे ! हमेशा खुश रहने  का उपदेश देने वालों की ये असलियत देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ !
      इनके बारे में दूसरा अनुभव मुझे तब हुआ जब बीजापुर के पास नक्सलियों ने एक पंचायत सचिव का अपहरण कर लिया था ! उस सचिव ने अदालत में अपने बयान में बताया कि अपहरण के समय कोपा नक्सलियों से मुझे छुडाने की कोशिश कर रहा था ! नक्सलियों ने कोपा पर बन्दूक तान दी , लेकिन कोपा बिना डरे उनसे भिड गया ! अंत में नक्सली सचिव को लेकर तेज़ी से जंगल में चले गये ! 
      इस घटना के समय श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक  प्रचारक  भी वहाँ मौजूद था ! मुझे गाँव वालों ने बाद में बताया कि जिस समय सचिव को छुड़ाने के लिये कोपा नक्सलियों से झगड रहा था उस समय श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक  प्रचारक एक तरफ खड़े होकर नक्सलियों के डर से थर थर काँप रहा था ! तो जीने की कला (आर्ट ऑफ़ लिविंग) असल में किसको आती है ? उस प्रचारक को या कोपा को ? 

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