Sunday, April 29, 2012

वो अदालतों के पार हैं



21 अप्रैल, दिन के ढाई बजे, दिल्ली की गहमा-गहमी भरी तीस हजारी अदालत, जहां
पत्रकार एसएमए काजमी को पेष करना था पर एकाएक पता चलता है कि आज उनकी तारीख
नहीं है पर थोड़ी ही देर में पता चलता है उन्हें दिन के बारह बजे वीडियो लिंक
के जरिए पेष कर दिया गया, जिसका कोई स्पश्ट उत्तर उस वक्त नहीं मिला। पत्रकार
काजमी के वकील ने चीफ मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट विनोद यादव से इसका विरोध करते
हुए उनकी गैरहाजिरी में हुई प्रोसीडिंग की मांग की। पर दूसरे दिन के अखबारों
में रहा कि ऐसा ‘सुरक्षा करणों से’ हुआ? आखिर वो कौन से ‘सुरक्षा कारण’ हैं जो
हमारे न्यायिक तंत्र को इतना मजबूर कर दे रहे हैं कि वो एक लोकतांत्रिक ढांचे
के अंदर एक पुलिस तंत्र के डंडे से राश्ट्रहित के नाम पर हमें हांक रही है।
पत्रकार काजमी के बेटे तोराब और षोजेब अपने पिता के न्यायालय आने के इंतजार
में अपने वकील महमूद पारचा के साथ न्यायालय परिसर में मौजूद थे। बारह बजे जिस
तरह से वीडियो लिंक द्वारा काजमी को न्यायालय में पेष किया उसके पीछे कई बड़े
और अहम सवाल थे इसीलिए उनके एडवोकेट महमूद पारचा को भी कोई सूचना नहीं दी गई।
दरअसल आतंकवाद के नाम पर निर्दोशों को झूठ के सहारे फसाए रखने के साथ ही एक
ऐसा जनमत भी लम्बे समय से तैयार करने की कोषिष हो रही है कि आतंकवाद के
आरोपियों को न्यायालय लाना खतरे से खाली नहीं है। इसके लिए दो तरीके इजाद किए
हैं या तो विडियो लिंक द्वारा या फिर जेल में ही न्यायिक कार्यवाई को करने की
कोषिष की जा रही है। इसकी षुरुआत संकट मोचन के धमाकों के आरोपी वलीउल्ला से
हुई। जिस पर न्यायाल में वकीलों द्वारा हमला करवाया गया और एक जनमत तैयार किया
गया कि वो एक खतरनाक आतंकवादी है। जबकि वलीउल्ला पर लगाए गए सभी आरोप झूठे
साबित हुए और उस पर मात्र आम्र्स एक्ट का मुकदमा है, ‘न्यायालय की भाशा में
सुबूत के आभाव में’।
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका 23 नवम्बर को यूपी की लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी की
कचहरियों में हुए धमाकों के बाद बार एसोसिएषनों ने फतवे जारी कर दिए कि हम केस
नहीं लड़ने देंगे। इन कठिन परिस्थितियों में लखनऊ के वकील मो0 षुएब ने केस
लड़ने का निर्णय लिया और मात्र 22 दिनों में कचहरी धमाकों का जिसे पुलिस
मास्टर माइंड बता रही थी उसे बरी करवाया। इसके बाद क्या था जैसे ही मो0 षुएब
ने तारिक कासमी, खालिदं, सज्जादुर्रहमान और अख्तर का मुकदमा लड़ने लगे उन पर
कचहरियों में हमले होने लगे। लखनऊ कचहरी में उन्हें चेम्बर से घसीटते हुए पूरे
कपड़े फाड़कर पूरी कचहरी में ‘हिन्दुस्तान जिन्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का
नारा लगवाया गया और उसके ऊपर से उन पर मुकदमा भी किया गया जो आज भी है।
बहरहाल, अन्ततः ‘न्याय के पहरेदार’ होने का दंभ भरने वाले अपने मंसूबे में
कामयाब हो गए और कहा कि ‘सुरक्षा करणों’ से मुकदमा ‘जेल की चहरदीवारी’ में
चलेगा। इस मुकदमें में आज जहां दो लड़कों की फर्जी गिरफ्तारी पर पिछली मायावती
सरकार को जन आन्दोलनों के दबाव में आरडी निमेश जांच आयोग बैठाना पड़ा तो वहीं
वर्तमान सपा सरकार ने इन्हीं दोनों को छोड़ने का विचार मीडिया माध्यमों के
जरिए व्यक्त किया है, वहीं सज्जादुर्रहमान लखनऊ केस में बरी हो गया है। पर एक
बड़ा और अहम सवाल है कि ‘यह कैसा न्याय’ जो जेल की चहरदीवारी में हो रहा है
तर्क ‘सुरक्षा करणों से’? यूपी में जेलों में हो रही सुनवाईयों का लंबे समय से
विरोध हो रहा है। क्योंकि ऐसा करके पुलिस अपने पक्ष में दबाव व अनुकूल माहौल
बना लेती है।
पत्रकार काजमी प्रकरण की गम्भीरता इसलिए भी बढ़ जाती है कि इसे ईरान से
जोड़कार एक अन्तराश्ट्रीय आतंकवाद के नेटवर्क का हौव्वा खड़ा किया गया है।
हमारे प्रधानमंत्री भी जब बड़े ‘चिंतित भाव’ में बोलने लगे हैं कि अब पढ़े
लिखे लोग भी ऐसा कर रहे हंै तो वहीं चिदम्बरम देष के सामने आतंकवाद-माओवाद के
साथ धार्मिक कट्रता को खतरा बताते हुए मानवाधिकार आंदोलनों पर निषाना साध रहे
हों तो ऐसे में सतर्क होना लाजिमी हो जाता है।
पत्रकार काजमी के अन्तराश्ट्रीय लिंक जोड़ने की जो मुहीम पुलिस ने चलाई वो फेल
होती जा रही है इसलिए वो वीडियो लिंक के जरिए इस पूरे मामले को चलाना चाहती
है। जिस मीडिया को उसने काजमी के बैंक खाते में ‘विदेषी रुपए’, बाहरी खूफिया
एजेंसियों से पूछताछ और ईरान से उनके संबन्धों के नाम पर एक हाई प्रोफाइल
आतंकवादी होने का दावा किया था वो सभी दावे झूठे होते जा रहे हैं। इसीलिए
पुलिस ने न्यायालय परिसर में इस झूठ के पुलिदें के चष्मदीद मीडिया वालों को भी
वहां से हटाने की कोषिष की। मानवाधिकार नेता महताब आलम बताते हैं कि इससे पहले
भी पुलिस वालों ने रिमांड की अवधि से तीन दिन पहले बिना बचाव पक्ष के वकील को
सूचित किए पत्रकार काजमी को न्यायालय में पेषकर जेल भेज दिया था।
जहां तक बाहरी खूफिया एजेंसियों द्वारा जो पूछताछ का सवाल था उसके बारे में
कहा गया है कि ऐसी कोई पूछताछ नहीं हुई। काजमी ने कोर्ट को लिखित षिकायत दी थी
कि बिना पढ़े उनसे सादे कागजों पर दस्तखत करवाई गई और ऐसा न करने पर परिवार को
गंभीर परिणाम भुगतने होंगे की धमकी दी गई। इस बात से दिल्ली पुलिस ने अपना
पल्ला झाड़ लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
आज मीडिया पर भी सवाल है कि इसी तरह उसने इसके पहले पत्रकार इफ्तेखार गिलानी
को लेकर जिस तरह रिपोर्टिंग कर दोशी ठहराया वो अपने बर्ताव को पुलिस के बर्ताव
से अलग करे। आज भी पत्रकार काजमी से सम्बन्धित जो भी खबरें आ रही हैं उसमें
देखा जा रहा है कि कुछ मीडिया संस्थान उनकी पुलिस की गिरफ्त वाली मुंह पर
कपड़ा बांधी गई तस्वीरें बराबर परोस रहे हैं। इसके पहले भी एक प्रचार तंत्र के
बतौर पुलिस के पक्ष में प्रचार किया कि बैंकाक विस्फोटों में षामिल सईद मोरादी
ने जिन लोगों से फोन पर बात की उनमें पत्रकार काजमी थे पर बाद में बात झूठी
साबित हुई। वहीं आज इजराइल की खूफिया एजेन्सी मोसाद व अन्य खूफिया एजेंसियों
से पूछताछ के नाम पर जिस तरह से बदनाम करने का खेल किया गया उसका सच भी सामने
आ गया है।
दरअसल, पुलिस ने पत्रकार काजमी की पत्नी के बैंक खाते में विदेष सेे जिस 18.78
लाख व काजमी के खाते में 3.8 लाख रुपए होेने के नाम पर जो हो हल्ला मचाया उसकी
भी असलियत सामने आ गई है। यह पैसा पत्रकार काजमी के बेटे ने चार वर्शों के
दौरान दुबई से भेजा था। अब खुली अदालत में हो रही जिरह से पुलिस खुद को बचाने
के लिए सुरक्षा के नाम पर वीडियो लिंक द्वारा पेषी करने की कोषिष कर रही है।
अब आने वाली पांच मई को देखना होगा कि किस तरह वो नया पैतरा चलती है और क्या
लोकतांत्रिक ढांचे के न्यायिक परिसर में ही न्याय की प्रक्रिया चलेगी?

राजीव यादव
 प्रदेश संगठन सचिव पीयूसीएल, उप्र
द्वारा- मो शोएब,
एडवोकेट
                                                    एसी मेडिसिन मार्केट
                                                    प्रथम तल, दुकान नं-2
                                                    लाटूश रोड, नया गांव-
ईस्ट
                                                    लखनउ, उत्तर प्रदेश
                                         मो0- 09452800752
                                               09415254919

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