इंडियन एक्सप्रेस में आशुतोष भरद्वाज की सोनी सोरी पर लिखी कहानी पढ़ी ! कहानी में कुछ बातें पूरी तरह असत्य हैं ! जैसे कि 'छत्तीसगढ़ में सोनी का एक्सरे कराया गया और उसमे पत्थर के टुकड़े नहीं दिखे' ! जबकि सच्चाई यह है कि छत्तीसगढ़ का एक्सरे कमर के हिस्से तक की ऊँचाई का ही है ! पत्थर योनी और गुदा में थे और ये अंग शरीर में काफी नीचे होते है ! इन अंगों का कोई एक्सरे नहीं हुआ ! एक्सरे रिपोर्ट हमारे पास है और हमने सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में बता दिया है !
कलकत्ता का अस्पताल भी सरकारी अस्पताल है ! फर्क सिर्फ यह है कि उस अस्पताल पर छत्तीसगढ़ सरकार का दबाव नहीं चलता !
दूसरी जगह इस कहानी में कहा गया है कि सोनी सोरी नक्सलियों के लिये पैसा उगाहने का काम करती थी ! लेकिन पत्रकार मान रहा है कि इस बार लिंगा को उसके नाना के घर से और एस्सार के ठेकेदार लाला को लाला के अपने घर से पकड़ा गया ! इस तरह तथ्य तो चीख कर कह रहे हैं कि पुलिस झूठ बोल रही है कि लिंगा और लाला को पैसा लेन देन करते पकड़ा गया !परन्तु अखबार द्वारा सिर्फ सुनी सुनाई बात पर यह लिख देना कि सोनी अक्सर ऐसा करती थी एक निर्दोष लड़की जो कि अपनी सफाई नहीं दे सकती उसके साथ अन्याय करना है ! अगर पत्रकार खुद यह मान रहा है कि इस बार उसे गलत तरीके फंसाया गया है तो पिछले काल्पनिक आरोप कैसे सच्चे माने जाने चाहियें ?
पत्रकार का यह कहना कि सोनी ने अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में देर से क्यों बताया भी पत्रकार की अपरिपक्वता और हालात के प्रति उसकी नासमझी दिखाते हैं ! इतनी बुरी तरह बिजली के झटके झेलने के बाद और क्रूरता पूर्वक पिटने के बाद कोई महिला डर से उबरने में कुछ समय लगायेगी ही ! अगर पत्रकार महोदय ने सोनी की जगह अपने किसी परिवार की सदस्य को रख कर सोचा होता तो उन्हें समझ में आ जाता कि सोनी को यह बात बोलने में कुछ वख्त क्यों लगा ?
पत्रकार का यह कहना कि मैं सोनी की लिखावट नहीं पहचानता भी असत्य है ! मैं सोनी की लिखावट अच्छी तरह जानता हूं ! पत्रकार इन पत्रों के बाहर आने के बाद कभी भी सोनी सोरी से नहीं मिला है इसलिये उसके द्वारा यह पत्र सोनी द्वारा लिखे होने पर शक करना अनुचित है ! उसे सोनी से खुद मिल कर पूछना चाहिये था कि यह पत्र सोनी ने लिखे हैं या नहीं ?
लेख पढ़ कर प्रतीत होता है कि पत्रकार को इस बात की फ़िक्र कम है कि सोनी के साथ जो हुआ और जो उन पत्रों के माध्यम से बाहर आ सका वह कितना भयानक था ! बल्कि ऐसा लगता कि पत्रकार को इस बात की फ़िक्र ज्यादा है कि यह पत्र बाहर किसके द्वारा बाहर लाये गये ? गोया कि पत्र बाहर लाना ज्यादा बड़ा जुर्म है सोनी के साथ ऐसा क्रूर व्यवहार कोई बड़ा जुर्म नहीं है !
मैंने यह सब २०१० में ही अपने ब्लॉग दंतेवाड़ा वाणी में यह सब पहले ही लिख दिया था कि सोनी को इसलिये २०१० से ही फर्जी मामलों में इसलिये फंसाया जा रहा था ! ताकि सोनी सोरी अपने भतीजे लिंगा कोडोपी को दिल्ली से वापिस बुला कर कल्लूरी को सौंप दे !और कल्लूरी लिंगा को मार डाले ! क्योंकि कल्लूरी ने लिंगा को गैरकानूनी हिरासत में रख कर यातनाएं दी थी ! और अब जब लिंगा पत्रकार बनने जा रहा था कल्लूरी अपनी पोल खुलने से डरा हुआ था ! कल्लूरी ने लिंगा को फंसा कर वापिस लाने के लिये एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की थी जिसमे लिंगा को माओवादी पार्टी का प्रवक्ता बताया था और उसका सम्बन्ध मेधा पाटेकर , नंदिनी सुंदर , अरुंधती राय और हिमांशु कुमार से बताया गया था ! अलबत्ता कल्लूरी ने डर कर मारे उस विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किये थे ! बाद में जब सारे देश ने इस मामले में इस प्रेस विज्ञप्ति की हंसी उडाई तो पुलिस छिप कर बैठ गयी ! बाद में लिंगा दंतेवाड़ा में जाकर रहने लगा लेकिन उसे इस मामले में कभी नहीं पकड़ा गया , हांलाकि वो कलेक्टर , कमिश्नर , और थाने में जाकर मिलता रहा !
अलबत्ता लिंगा ने दिल्ली में रहते हुए ही इस बात को एफिडेविट में लिख दिया था कि जब लिंगा वापिस दंतेवाड़ा वापिस लौटेगा तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा या मार डाल जाएगा ! और ऐसा ही हुआ भी ! वो एफिडेविट हमारे पास है ! जिसे अदालत को दे दिया गया है !
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