क्या कह रहे हो कि
इन गंदे चमारों को
इन बंगलादेशियों को
इन मुसलमानों को
मैं अपने बराबर मानूं ?
जो मेरी तरह मेरी भाषा नहीं बोलते
जिनकी शक्ल हमारी तरह की नहीं है
जो हमारे भगवान को भगवान भी नहीं मानते
क्या मैं उन्हें भी इंसान मानूं ?
और मान लूं कि उनके ह्क़ भी मेरे बराबर हैं ?
और क्या यह भी मान लूं कि मेरी मान्यताएं
उतनी ही गलत हो सकती हैं जितनी
कि उनकी मान्यताएं गलत हैं .
क्या इसे ही लोकतन्त्र कह्ते हैं ?
भाड़ में जाए तुम्हारा मानवाधिकार दिवस
यार मानवाधिकार दिवस का यह मतलब तो नहीं कि मैं अपना धर्म ही भ्रष्ट कर लूं
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