Monday, December 3, 2012

मोदी या चिदम्बरम का अगला प्रधानमन्त्री बनना













चिदंबरम को कांग्रेस के अगले प्रधानमन्त्री के रूप में देखने की खबर महत्वपूर्ण है . जब भाजपा का सबसे खूंखार नेता मोदी इस वख्त मिडिल क्लास का सबसे पसंदीदा नेता हो. उसी वख्त में कांग्रेस का भी सबसे खूंखार नेता का नाम अगले प्रधानमंत्री के रूप में उभरना एक खतरनाक लेकिन महत्वपूर्ण संकेत है .

भारत में इस समय सबसे ज्यादा आबादी युवाओं की है . युवाओं को सिर्फ नौकरी के लिए तैयार किया गया है .इस युवा को अब नौकरी चाहिए . सरकार युवाओं को समझा रही है की नौकरी तभी मिल सकती है जब उद्योग चलें . और उद्योग तभी चल सकते हैं जब हम गाँव के संसाधनों को उद्योगों के लिए ले लिया जाए . 

शहरी युवा को पता है की ग्रामीण भारत के संसाधन अब सरकारी ताकत के दम पर ही कब्जाए जा सकते हैं . भारत ने दूसरों के संसाधन छीन कर विकास करने का जो रास्ता अपनाया था उसका सबसे खतरनाक दौर अब आ गया है . अब शहरी वर्ग को ऐसा खूंखार नेता चाहिए जो सारे क़ानून , मानवाधिकार , संविधान को कुचल कर भी उनके लिए नौकरी और आमदनी का इंतजाम कर सके . एक ऐसा नेता चाहिए जो ज़मीने लूट सके , ऐसा नेता चाहिए जो ज़मीनों और संसाधनों के लिए युद्ध लड़ सके और इस युद्ध में शहरी मिडिल क्लास को विजय भी दिलवा सके . 

ये लुटेरी भारतीय अर्थव्यवस्था के गलत रास्ते का अनिवार्य मुकाम है . यही वो मुकाम है जब आबादी के दोनों वर्ग सीधे युद्ध में कूदने को मजबूर हो जायेंगे . यही वो मुकाम है जिसका बारे में भगत सिंह ने कहा था कि एक युद्ध जारी है और हम सब इस युद्ध में शामिल हैं. गांधी ने भी आगाह किया था की  भारत अगर अंग्रेजों वाले विकास के तरीके को अपनाएगा, तो उसे एक दिन अपने ही लोगों के साथ युद्ध करना पड़ेगा.    

यही वह युद्ध है जिसकी भविष्यवाणी कम्युनिस्ट करते हैं . लगता है वर्ग युद्ध का निर्णायक दौर निकट आ गया है . जितनी ज़ल्दी शहरी मिडिल क्लास अपने नेता के रूप में मोदी या चिदम्बरम को अपना सेनापति चुनेगा उसका अंत उतनी जल्दी हो जायेगा . क्योंकि इस शहरी वर्ग की लड़ाई देश के अस्सी प्रतिशत ग्रामीण भारत के साथ है . 

नक्सली तो इस लड़ाई की इंतज़ार में बैठे हैं . आपने सलवा जुडूम के प्रयोग से भी कोई सबक नहीं सीखा . आपने खनिज लूटने के लिए बस्तर की जनता पर सलवा जुडूम बना कर हमला बोला. जनता आपके हमले से बचने के लिए नक्सलियों के साथ चली गयी . अब आप अगर मोदी या चिदम्बरम को अगर अपना नेता बनायेंगे तो देश भर में ग्रामीणों पर हमले तेज़ हो जायेंगे . सरकारी हमलों से बचने के लिए लोग भी हथियार उठा लेंगे . 

ये दोनों तो कम्पनियों के एजेंट हैं . दोनों के बारे में ये कोई छिपी हुई बात नहीं है . लेकिन उनका कार्पोरेट का एजेंट होना ही हमारे शहरी वर्ग के लिए इन दोनों नेताओं की सबसे बड़ी खूबी है . हम इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं . इस युद्ध में अगर ग्रामीण जनता हार जाती है तो इर भारत के करोड़ों लोगों की ज़मीनों पर कम्पनियों का कब्ज़ा हो जाएगा . करोड़ों लोग बेज़मीन हो जायेंगे . और ये करोड़ों लोग भुखमरी में फंस जायेंगे . भारत की सोमालिया जैसी हालत हो जायेगी. और अगर इस युद्ध में भारत की ग्रामीण जनता जीतती भी है तो वैकल्पिक व्यवस्था के लिए तैयारी के अभाव में अराजकता का एक लम्बा दौर आ सकता है . ग्रामीण भारत जात पात में डूबा हुआ है . नयी राजनीतिक व्यवस्था बनाने के लिए जनता का राजनैतिक प्रशिक्षण हुआ ही नहीं है . 

हम एक  खतरनाक मोड़ पर हैं . इस संसाधन युद्ध के कारण भारत का एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है .

3 comments:

  1. बिलकुल सटीक विश्लेषण. पूरी तरह सहमत. इस विश्लेषण से भी यही कार्यभार सामने आता है जनता का राजनीतिक प्रशिक्षण ही करना होगा. लोगों को समझना होगा कि "हम अम्न चाहते हैं, मगर अम्न के लिये गर जंग लाजमी है तो फिर जंग ही सही...."

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  2. My appeal to Marxism indoctrinated friends is to shed ideological baggage and think rationally. If your thought process is burdened with Marxist dogmas, you can never come to the right conclusion.

    Can you find one country where communism has succeeded in creating a prosperous and peaceful society? I'm sure you cannot find even one such country. Then why such blind worship of Marxism?

    Marxism is a certain prescription for doom. Prosperity and human dignity can be achieved only through a capitalist and free society. Redistributive socialistic policies cannot be sustained beyond a limit. Economic growth is the only way to eradicate poverty sustainably. Growth will happen only when we create conditions conducive to investment. This will benefit everyone including the poor. Economics is not a zero-sum game.

    Please also read: http://sunilthethinker.blogspot.in/2012/09/marxism-historical-mistake.html

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  3. हा हा हा सुनील बाजपेयी जी एक बार लेख को पढ़ तो लो , बाद में टिप्पणी करिये

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