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Wednesday, January 30, 2013

क्या हम सभी को खुद को कट्टर हिदू मानना चाहिये ?


                                             मेरे ताउजी बीच में बैठे हुए . दायें कोने में नेहरु जी बैठे हैं 

मेरे पड़दादा उत्तर प्रदेश में महर्षी दयानन्द के प्रथम शिष्य थे . मुजफ्फर नगर में महर्षी दयानंद हमारे घर में ठहरते थे . मेरे पड़दादा जी ने ब्राह्मणों के रंग ढंग का विरोध किया तो उन्हें ज़हर दे दिया गया था . मेरे पड़दादा जी ने कई किताबें लिखी थीं जिनमे से अजीब ख्वाब नामकी किताब पिताजी मुझे पढ़ कर सुनाते थे . यह उर्दू में लिखी हुई किताब थी . इसका विषय सर्वधर्म समभाव था .

मेरे ताऊ श्री ब्रह्म प्रकाश जी उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे . लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को मिलने वाली पेंशन लेने से मना कर दिया था और कहा था कि मैं पेंशन के लिये नहीं लड़ा था . मेरे ताऊ जी के साथियों में नेहरु जी , जयप्रकाश नारायण , आचार्य नरेंद्र देव , पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर  राज नारायण . सी बी गुप्ता , चरण सिंह . आदि थे 
पिताजी गांधी आश्रम के कार्यकर्ता थे. परिवार मेरठ के गांधी आश्रम में रहता था .सुबह शाम पिताजी के साथ सर्वधर्म प्रार्थना में जाता था . प्रार्थना में रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों का भी पाठ होता था . एक दिन प्रार्थना से लौटते समय जब में पिताजी की पीठ पर बैठा हुआ था . पिताजी ने कहा  रामायण अच्छी तो है पर सच्ची नहीं है . मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि क्या ऐसा भी कहा जा सकता है . मैंने पूछा क्या मतलब पिताजी ने कहा कि हाँ इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि यह सब सच है .


बचपन में पिताजी के दोस्त घर में आते और बहस करते थे . यह सब अपना घर परिवार छोड़ कर आजादी के बाद एक़ नए भारत का निर्माण करने के लिये अपना जीवन नयोछार करने वाले दीवाने लोगों की मंडली थी .निर्मला देशपांडे , डाक्टर दयानिधि पटनायक , चम्पा बहन , आनंदी भाई , लक्ष्मीदास , हरिविलास भाई , अलख भाई , फूलचन्द्र भाई , विद्या बहन , नरेंद्र भाई . लल्लू दद्दा , महावीर भाई . सब एक से बढ़ कर एक विद्वान सामाजिक कार्यकर्ता और जाने माने वक्ता थे . 

पिताजी जी प्रकाश नारायण के साथ इस पूरे चित्र में कर्पूरी ठाकुर भी हैं लेकिन चित्र काफी खराब हो चुका है 

मैं इन्ही लोगों की गोद में बड़ा हुआ . मेरा मानसिक निर्माण इन्ही लोगों की चर्चाएं सुनते हुए हुआ . 

मेरे लिये उपनिषद का ज्ञान , गांधी की ठेठ भारतीय समझ , मार्क्स का पूँजी और श्रम का विश्लेषण , अरस्तु , खलील जिब्रान , तालस्ताय सब जैसे घर के सदस्य थे . मैं इन लोगों की सोहबत में रहा .

मैंने जाना कि मैं हिन्दू नहीं हूं . हिन्दू नामक शब्द एक राजनैतिक षड्यंत्र के रूप में प्रचलन में लाया गया . 

भारत की किसी एक विचारधारा को भारत की मुख्य विचारधारा नहीं कहा जा सकता .

भारत में कुछ लोग गाय को माता मानते हैं तो लाखों लोग गाय को खाते भी हैं .

भारत में कुछ लोग मूर्ती पूजा करते हैं तो भारत में लाखों लोग निराकार की उपासना करते हैं .

भारत में कुछ लोग ईश्वर को धर्म का आधार मानते हैं . लेकिन भारत में लाखों लोग ईश्वर जैसे विचार को नहीं मानते .

भारत में कुछ लोग वेद को भारतीय दर्शन का आधार मानते हैं लेकिन भारत में लाखों लोग वेद को स्वीकार नहीं करते .

इसलिये जो लोग दावा करते हैं कि भारत के सभी लोग जो मुस्लिम ईसाई नहीं हैं वे सभी हिन्दू हैं और उन सब को मूर्ती पूजा को मानना चाहिये , राम को ईश्वर मानना चाहिये ,गाय को माता मानना चाहिये , और सभी को खुद को कट्टर हिदू मानना चाहिये .इस प्रकार ये लोग इस देश के सभी पारम्परिक निवासियों को हिन्दू नामक एक नए और कट्टर धर्म का सदस्य बताते हैं और दावा करते हैं कि यही हिन्दू सम्प्रदाय इस देश का  सबसे पुराना और दुनिया का सबसे महान धर्म है तो मुझे इस बात को सुनकर इस मूर्खता को फैलने से रोकना एक ज़रूरी काम लगता है .

3 comments:

  1. Dharm nirpex bharat k logo ko apni pratham kitaab Bharat Ka Samvidhan samajhna chahiye.. Geeta ya Koran nahi

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  2. The political situation in the early thirties demanded that Gandhi should step up the campaign against untouchability and for temple-entry. The Muslims were already alienated from the Congress; the representatives of the depressed classes had been asking for separate representation from as early as 1917;[1] during the Round Table Conference in 1931 a Minorities Pact had emerged and the depressed classes were also granted some separate constituencies under the MacDonald award. Years before, Gandhi had drawn the lesson from the Moplah revolt in 1921 that "If we do not wake up betimes, we shall find a similar tragedy[2] enacted by all the submerged classes. The `untouchables' and all the so-called semisavage tribes will presently bear witness to our wrongs against them if we do not do penance and render tardy justice to them".[3] Besides, conversion of his `Harijans' to Christianity or Islam posed a problem. To quote Ram Gopal, "In the competition for the `untouchables' between Muslim leaders and the Hindu Mahasabha (which may be considered as including all other movements like the Arya Samaj, the Shuddhi Sabha, etc.), the Muslims were winning all along the line;... whatever the motive, they indeed were the pioneers to focus attention on the plight of the depressed classes."[4] Gandhi was afraid of the danger of the "poor Harijans [who] have no mind, no intelligence, no sense of difference between God and no-God", some of whom were according to him, "worse than cows in understanding", might be enticed by the "Christian Missions" and "Mussalmans and others" to leave the Hindu fold and swell their numbers. While he admonished the Christian missionaries and Muslims for converting the untouchables to their faiths, he warned the caste Hindus: "So long as the poison of untouchability remains in the Hindu body, it will be liable to attacks from outside."

    1. Chatterji op cit., 559. He cites Raymond Streat, "Co-operation between the U.K. and India: Indian Businessmen and Congress Party: The Future of Ottawa: Reactions of Economic Co-operation on Political Outlook.... Possibilities and Probabilities", 16 Jan. 1936. L/E/9/1038.
    2. FICCI, Silver Jubilee Souvenir 1927-51, 82.
    3. Ibid.
    4. FICCI, Proceedings of the 1936 Annual Meeting, cited in Venkatasubbiah, op cit., 36.

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  3. bahot khub pahli bar koi mere maan ki bat bol rahe he aapko satsat namskar ...

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