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Thursday, January 31, 2013

आशीष नंदी


छत्तीसगढ़ में सरकार की क्रूरता पर सवाल उठाने वाले को नक्सली कह कर जेल में डाल दिया जाता है .

मध्य भारत के सभी आदिवासी राज्यों में वैश्विकरण ,उदारीकरण और नई आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाने वाली कोई किताब ,फिल्म या परचा आप को नक्सली और देश द्रोही सिद्ध कर सकता है.

सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध करने के कारण आप को सडक पर ,थाने और जेल में बुरी तरह पीटा जा सकता है आपकी जिंदगी नष्ट की जा सकती है आपकी बेटी से पुलिस वाला बलात्कार कर सकता है .

इस तरह सत्ता पर काबिज समूह अपने आर्थिक हितों के खिलाफ सोचने वाले व्यक्तियों को समाप्त कर देता है और सरकारी आतंकवाद व दमन के द्वारा विचार प्रक्रिया को समाप्त करने की कोशिश करता है .

अपने से भिन्न विचार के कारण गांधी को मार देने वाले गोडसे के अनुयाईयों का सम्प्रदाय आतंकवाद को अपने अस्तित्व की रक्षा का एकमात्र तरीका मानता है .

फेसबुक पर एक चित्र शेयर करने के कारण सत्येन्द्र मुरली नामक जयपुर के पत्रकार को सत्ता का दुरूपयोग कर के सताया गया था .

ठाकरे की मृत्यु पर मुंबई बंद पर एक टिप्पणी लिखने के कारण शाहीन ढांडा और उसकी सहेली को सरकार ने साम्प्रदायिक उन्माद का राजनैतिक लाभ लेने के लिये सताया था .

अगर हम भी आशीष नंदी को एक भाषण देने के कारण जेल में डालने का अधिकार पुलिस को देते हैं तो हम आगे से पुलिस को भाषण देने वालों का दमन करने की छूट दे रहे हैं .

अगर हम एक फिल्म बनाने के कारण कमल हासन को भारत से ही निकाल देंगे तो हम आगे से सिर्फ खुद के विश्वास और मान्यताओं के मुताबिक़ ही बनने वाली फिल्मे बनने देने की परम्परा डाल रहे हैं .

क्या हम चित्र बनाने के कारण एम् एफ हुसैन का हिन्दुस्तान में रहना हराम कर सकते हैं , और फिर भी खुद को लोकतांत्रिक कह सकते हैं ?

तस्लीमा को किताब लिखने के कारण बंगलादेश छोडना पड़ा . हमने बांग्लादेश को धार्मिक कट्टरपन्थी कहा लेकिन भारत में भी उन्हें डराया जाता रहा है.

समाज में कुछ लोगों को हमेशा लगेगा कि बाकी लोग गलत सोच रहे हैं . ऐसा तो परिवार में भी होता है .

क्या समाज अलग राय रखने वाले लोगों की सोच पर ही रोक़ लगाने की छूट सत्तातंत्र को देने और उन्हें परेशान करने सताने और जेल में डाल देने की इजाज़त देने के लिये सहमत है ?

क्या समाज विचारों का सामना विचारों और चर्चा कर के उसे खारिज करने का काम नहीं कर सकता ?

आशीष नंदी, सलमान रश्दी ,तस्लीमा नसरीन, कमल हासन , सीमा आज़ाद , बिनायक सेन के विचारों का समर्थन या विरोध समाज अपने बीच विचार विमर्श के द्वारा क्यों नहीं कर सकता ? 

क्या हम अपने आज़ाद और लोकतांत्रिक समाज को जेल पुलिस हुल्लड़बाजी और आतंक के द्वारा डरा चलाने के लिये सहमत हैं ?

जो कुछ भी कीजिये सोच समझ कर कीजिये . आप के आज के काम एक परम्परा का निर्माण कर सकते हैं .

लोकतांत्रिक परम्पराएं डालिए . रोज़ उन परम्पराओं की रक्षा के लिये जागते रहिये .

हम आज जहां आ गये हैं वह काफी लंबे सफर के बाद मिली मंजिल है . 

दुनिया में आज भी कबीलों के बीच में खून खराबा चल रहा है . दुनिया में आज भी अलग विश्वास के कारण लोग एक दूसरे का गला काट रहे हैं .

हम कम से कम उनसे तो आगे ही निकल आये हैं .

हांलाकि सोनी सोरी जैसे कांड करने वाला समाज 

करोड़ों मेहनत कश लोगों को नीच मानने वाला और गरीब रखने वाला समाज 

आदर्श समाज नहीं बन गया है .

लेकिन हमें यहाँ से आगे जाना है 

समाज को पीछे ले जाने वाली हर हरकत का सजग रहकर विरोध कीजिये . 

समाज को मज़बूत बनाइये 

एक शक्तिशाली सत्तातंत्र कभी भी क्रूर और लालची लोगों के कब्ज़े में आ सकता है 

सत्ता तन्त्र कभी भी आप पर हमला कर सकता है 

सत्ता तन्त्र को कमज़ोर कीजिये 

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