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Thursday, October 17, 2013

बकरों की भी शिकायत

गुलाब की मां का नाम ज़रीफो था। मुज़फ्फर नगर के  लिसाढ़ गाँव में आठ सितम्बर को दंगा शुरू हुआ. भीड़ ने बस्ती पर हमला किया।  साढ़े तीन सौ घर जला दिए गए। तेरह लोगों का क़त्ल कर दिया गया।

गुलाब की मां भी दंगों में गायब हो गयी।  दंगे के अगले दिन पड़ोस के गाँव मीमला के बाहर , नहर के पास , एक बाग़ में पांच लोगों की लाशें मिलीं।  गाँव वालों ने थाने को सूचना दी।  थानेदार साहब सिपाहियों को लेकर आये।  लाशों को देखा और कहा की सब लोग अपने अपने घर जाओ अब शाम हो गयी है।  कार्यवाही कल होगी।  गाँव वालों ने सुबह उठकर देखा तो पाँचों लाशें गायब थीं।

दो दिन बाद बडौत के पास दो लाशें बड़ी नहर में मिलीं। लोगों ने नज़दीकी थाने को सूचित किया। दोनों लाशों का पोस्ट मार्टम करवा कर दफना दिया गया।

किसी ने गुलाब को बताया कि बडौत थाने  में दो लाशें हुई हैं।  गुलाब ने अपने दोस्त गुलशेर को साथ लिया।  गुलशेर के बूढ़े पिता सुक्कन भी दंगों में गुम हो गए थे।

थाने वालों ने बताया की हाँ एक बूढ़े मर्द और एक बूढ़ी औरत की लाश मिली थी।  हमने उनके कपड़े शिनाख्त के लिए रखे हुए हैं।

कपड़े गुलाब की मां और गुलशेर के पिता के ही थे।

गुलाब कुल छह भाई हैं। सब मिल कर घोड़ों का धंधा करते थे।  जलालाबाद में कुछ दिनों बाद मेला होने वाला था।  मेले में बेचने के लिए भाइयों ने मिल कर चौदह घोड़े खरीदे थे।
दंगों में घोड़े भी गायब हो गए।  घोड़ों की कीमत करीब दस लाख थी।  तीन भैंसें थीं और पांच बकरे थे। कई बुग्गियां भी जला दी गयीं।

मैं ये सब सुन रहा था।  मेरा दिमाग बस्तर के आदिवासियों के बारे में सोचने लगा।  वो आदिवासी भी जब अपने ऊपर हुए पुलिसिया हमले के बारे में बताते थे तो आदिवासी भी मुझे अपनी लूट ली गयीं गायों , बकरियों , मुर्गियों और अण्डों की संख्या बताते थे।

मैं पुलिस को भेजी जाने वाली चिट्ठी में ये सब लिख देता था।  मेरी हंसी उड़ाते हुए एक बार दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा ने अरुंधती रॉय से कहा था की हिमांशु जी तो बकरों की भी शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से करते हैं।

अब आप ही मुझे बताइये घोड़ों और बकरों के मारे जाने की शिकायत मैं किससे करूँ ?

खैर यहाँ तो इंसानों की लाशों को ही इधर से उधर फेंका जा रहा है।

जागो भारत जागो। 

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