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Friday, August 8, 2014

दी टैंक मैन

कल रात दी टैंक मैन फिल्म देखी .

चीन में सन नवासी में लाखों लोग मुल्क के हालात बदलने की मांगों के साथ सड़कों पर आ गये थे .

यह आन्दोलन छात्रों ने शुरू किया लेकिन इसमें डाक्टर , नर्सें , कारखानों के मजदूर , पुलिस और कुछ फौज़ी भी शामिल हो गए . वर्षों के दमन के खिलाफ जनता ने ज़ोरदार आवाज़ बुलंद कर दी .

सरकार में खलबली मच गयी . सरकार में इस स्तिथी से निबटने के लिए दो मत हो गए . सरकार का एक धड़ा आंदोलनकारियों से बातचीत करना चाहता था जबकि दूसरा हिस्सा दमन के पक्ष में था .

उदारवादी धड़े के एक नेता आंदोलनकारियों से बात करने उनके बीच गए लेकिन अगले दिन उन्हें सरकार ने गायब करवा दिया और फिर उनका कभी कुछ पता नहीं चला .

सरकार ने दमन का फैसला लिया . सेना के लाख से ज़्यादा सैनिक आंदोलनकारियों को थियानमेन चौक से खदेड़ने के लिए आ गए .

लेकिन जनता ने सैनिकों का रास्ता रोक दिया .औरतों ने रो रो कर कहा कि आप हमारे ही भाई और बेटे हैं ,आपको जनता की रक्षा के लिए सैनिक बनाया गया है . आप हमारे खिलाफ क्यों हो . कई दिनों तक जनता ने सैनिकों को भोजन और पानी दिया . सेना वापिस चली गयी .

चीन सरकार के अस्तित्व पर ही खतरा खड़ा हो गया . सरकार ने दुबारा भयानक दमन की योजना बनायी . इस बार टैंकों और ऑटोमेटिक हथियारों से लैस टुकडियां निहत्थी जनता पर हमला करने के लिए भेजी गयी .

छात्र और जनता सड़क पर बैठे हुए थे . सेना ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ दो हज़ार छह सौ लोग मार डाले गए . अगले दिन सुबह जब मारे गए छात्रों के माता पिता अपने बच्चों के बारे में पता करने के लिए वहाँ आये तो सेना ने उन लोगों पर भी गोली चलाई जिसमे लगभग चालीस लोग मारे गए . डाक्टरों और एम्बुलेंस पर भी गोली चलाई गयी . घायलों की मदद की कोशिश कर रहे डाक्टरों को भी मार डाला गया .

दमन ने काम किया चीन की साम्यवादी सरकार ने थियानमेन चौक खाली करा लिया .

अगले दिन सरकारी टैंकों के काफिले के सामने एक नौजवान आकर खड़ा हो गया . उसे पकड़ कर वहाँ से हटा लिया गया . आज तक पता नहीं चल पाया कि उस नौजवान का क्या हुआ .

इसके बाद चीनी सरकार ने मुक्त अर्थव्यवस्था की नीति अपनाई . विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोल दिए .

इसके बाद चीन में शहरी माध्यम वर्ग का उदय हुआ . एक ऐसी युवा पीढ़ी सामने आयी जिसे मोबाइल, जूते ,जींस और कारों के सिवाय किसी और बात से कोई मतलब ही नहीं था .

लेकिन इसकी कीमत देश के करोड़ों किसानों और गरीबों ने चुकाई .

सरकार ने मुफ्त सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च कम कर दिया . अब अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए किसानों को शहरों में पलायन करना पड़ा .

चीन में गाँव से शहरों में पलायन की दर दुनिया में सब से ज़्यादा है .

चीनी सरकार ने पूंजीपतियों और बड़ी कंपनियों के दबाव में श्रम कानूनों में पूरी तरह से छूट दे दी . अब मजदूरों से चौदह घंटे सातों दिन काम लिया जाने लगा .

जगह जगह मजदूरों के विरोध प्रदर्शन होने लगे . इन मजदूर आंदोलनों की संख्या अस्सी हज़ार साल तक पहुँच गयी .

सरकार ने मीडिया और सोशल मीडिया पर भयानक अंकुश लगाया हुआ है .

स्पेशल एकनामिक ज़ोन बनाने के लिए किसानों की ज़मीनों को हडप गया . ज़मीने छीनने के लिए गुंडे और पुलिस दोनों का इस्तेमाल किया गया . एक किसान ने एक स्मगलिंग के कैमरे से ऐसे ही एक ज़मीन अधिग्रहण की वीडियो बनाए जिससे इन सरकारी दमन के तौर तरीकों का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है .

आज भी दो चीन है . एक वो जो चमचमाता हुआ चीन है . जो शहरी है . जो विकास का हितग्राही है .जो सरकार की तरफ है .

दूसरा बड़ा चीन वो है जो गरीब है बदहाल और बेजुबान और दुनिया की नज़रों से गायब है .

सोचें कि अगर साम्यवादी देश को साम्यवादी बने रहने के लिए इतना दमन करना पड़ा तो किस मुंह से हम फासीवाद और पूंजीवाद के खिलाफ गला फाड़ सकते हैं .

सोचें कि अगर दुनिया की सारी हवा , सारा पानी , सारी ज़मीन सारे इंसानों को खुश रख सकती है तो फिर इतना दुःख क्यों है ?.

आइये विचारधारों के सम्प्रदाय से भी निकल कर सिर्फ इंसान बन कर सोचें .

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