एक वख्त था जब अमेरिका और ब्रिटेन में औरतों को वोट देने का हक़ नहीं था .
पूरा समाज मानता था कि औरतों को घर के बाहर के मामलों में राय देने की अक्ल ही नहीं है
आज हम उस समाज की उस वख्त की समझ पर हँसते हैं .
बच्चे जब किताबों में इन बातों को पढते हैं तो वो हैरानी से पूछते हैं कि क्या वाकई में कभी ये लोग औरतों के बारे में इस तरह सोचते थे ?
हम लोग आज भी मानते हैं कि औरतों को परदे में रहना चाहिये .
भारत में बहुत सारे लोग मानते हैं कि भारत हिंदुओं का है . भारत की राजनीति का लक्ष्य भी हिंदुओं की सत्ता बना कर रखना होना चाहिये .
बहुत सारे मुसलमान भी इसी तरह से सोचते हैं .
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वे मानते हैं कि जो उनके जैसे नहीं सोचता वह मज़हब के खिलाफ़ सोच रहा है .
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वे मानते हैं कि जो उनके जैसे नहीं सोचता वह मज़हब के खिलाफ़ सोच रहा है .
लेकिन असल में तो हमारे हिंदू या मुसलमान होने का अर्थ इतना ही है कि हमारी ईश्वर के बारे में क्या कल्पनाएँ हैं ?
क्या आप आज सच में मानते हैं कि हम अच्छे या बुरे नागरिक सिर्फ इस बात के आधार पर बन सकते हैं कि हम ईश्वर के बारे में क्या कल्पना करते हैं ?
लेकिन जब हम लोग कुछ सालों बाद अपनी जिंदगी पूरी कर के मर जायेंगे .
धीरे धीरे समाज की सोच बदलती जायेगी .
समाज एक एक कदम आगे बढ़ता जाएगा .
आने वाले समय में बच्चे इस वख्त की हमारी सोच के बारे में किताबों में पढेंगे .
बच्चे हैरान रह जायेंगे कि कभी उनके पुरखे ऐसी मूर्खता पूर्ण सोच रखते थे और इतने जाहिल थे ?
आज जो लोग सबकी बराबरी की बातें करते हैं असल में वे समाज को इस वख्त से धीरे धीरे आगे ले जा रहे हैं .
इसलिए आज ऐसे लोगों को गालियाँ मिल रही हैं .
जैसे सन उन्नीस सौ बीस से पहले अमेरिका और ब्रिटेन में औरतों को वोट देने के सामान अधिकारों की बात करने वाले लोगों को समाज गालियाँ देता था .
अपनी सोच पर नज़र डालिए .
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके मजहब के लोग किस बात को सही मानते हैं और किस बात की इजाज़त नहीं देते हैं .
आपको जो सही लगता है उस के हक़ में आवाज़ उठाइये .
आज अगर कोई भाजपाई नेता कहती है कि मुसलमान चालीस पिल्ले पैदा करते हैं तो भाजपा के खिलाफ़ आवाज़ उठाइये .
हो सकता है आपको यह सब आज अच्छा लग रहा हो .
लेकिन आने वाले वख्त में आपके बच्चे आपकी इन्ही बातों के लिए हंसी उड़ायेंगे .
खुद को मूर्ख साबित कर के मत मरिये
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