आज़ादी के आन्दोलन में ही तय हो गया था कि आज़ादी के बाद भारत कैसा बनाया जायेगा ?
गांधी भगत सिंह नेहरु पटेल अम्बेडकर सब अपनी अपनी तरह से आज़ादी के बाद के भारत के लिए आदर्श तय करने में लगे हुए थे .
आज़ाद भारत के लिए सबके सपनों में मामूली से फर्क होने के बावजूद कुछ बातें एक जैसी थीं .
सभी लोग बराबरी और न्याय को आज़ाद भारत का आधार मानते हुए जाति धरम से मुक्त गाँव , गरीब मजदूरों की हालत बदलने को आज़ादी के बाद सबसे पहला काम मानते थे .
लेकिन उस वख्त भी एक कौम ऐसी थी जो आज़ादी की लड़ाई में तो शामिल नहीं थी .
लेकिन शातिर बिल्ली की तरह आज़ादी मिलने के बाद सत्ता पर कब्ज़ा करने के मंसूबे बना रही थी .
यह थी राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ ,और हिंदू महासभा .
यह उन लोगों की जमात थी जो सदियों से भारत में सत्ता के नज़दीक रहे थे , व्यापारी थे , बड़ी जात के अमीर थे , ज़मींदार थे और सत्ता के दलाल थे .
ये लोग डर रहे थे कि कहीं ऐसा ना हो कि आज़ादी के बाद बराबरी आ जाय और कुचले दबे नीच जात के गरीब गुरबे भी हमारे बराबर हो जाएँ .
इसलिए इन सत्ता के दलालों ने आज़ादी मिलते ही भारत की राजनीति को समानता की ओर से मोड़ कर साम्प्रदायिकता की तरफ करने के लिए पूरी ताकत लगा दी.
आज़ादी मिलते ही सवयम सेवक संघ ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी और बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ती रख दी .
इन लोगों ने पूरी ताकत से इस बात को प्रचारित किया कि आज़ाद भारत की राजनीती का लक्ष्य सबकी समानता नहीं बल्कि यह होना चाहिये कि राम का मंदिर बनेगा या नहीं .
तब से ये लोग भारत की राजनीति को आर्थिक और सामाजिक समानता की पटरी से उतार कर साम्प्रदायिकता की पटरी पर लाने का प्रयत्न करते रहे और अंत में सफल भी हो गए .
आप देखेंगे कि इन संघियों को समानता और न्याय का नाम सुनते ही बुखार चढ़ जाता है
और ये आपको कम्युनिस्ट और विदेशी एजेंट कहने लगते हैं .
लेकिन आज़ादी की लड़ाई का काम अभी अधूरा है .
ये लोग धोखा देकर भले ही कुछ समय के लिए सत्ता पर काबिज हो गए हैं .
लेकिन भारत में सभी नागरिकों की बराबरी और सबको न्याय का बड़ा काम अभी बाकी है .
हम हारे नहीं हैं .
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