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Sunday, August 9, 2015

आज दो दिवस हैं


आज दो दिवस हैं
पहला भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू होने का अगस्त क्रांति दिवस
दूसरा विश्व आदिवासी दिवस
मेरा दोनों के साथ कुछ करीब का सा रिश्ता है
भारत छोड़ो आन्दोलन में मेरे पिता ने मुज़फ्फर नगर रेलवे स्टेशन में आग लगा दी थी
और फिर पुलिस की दबिश घर पर पड़ने के बाद फरार हो गए थे
बाद में गांधी जी ने मेरे पिताजी को अपने आश्रम में बुला लिया था
पिताजी ने उसके बाद सारा जीवन ग्राम स्वराज्य के लिए लगाया ,
दूसरा आज विश्व आदिवासी दिवस है
मैं और मेरी पत्नी शादी के एक महीने बाद दिल्ली छोड़ कर बस्तर चले गए थे
हम अट्ठारह साल आदिवासियों के साथ रहे
फिर सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन उद्योगपतियों को देने के लिए
आदिवासियों के गाँव जलाने शुरू किये
तब हमने सरकार के इस कदम का विरोध किया
तो सरकार ने हमारे आश्रम पर बुलडोजर चला दिया
अब मेरे छत्तीसगढ़ में प्रवेश पर बंदिश है
सुना है वहाँ मेरे ऊपर करीब एक सौ के करीब नक्सली मामलों के वारंट हैं
मैं बस्तर में आदिवासियों पर होने वाले ज़ुल्मों के खिलाफ़ हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमे लड़ रहा हूँ
लेकिन वहाँ अब सुनवाइयां भी होनी बंद सी हो चुकी हैं
मैं इन मामलों पर बात करने संयुक्त राष्ट्र संघ भी गया
वहाँ उन्होंने कहा कि भारत सरकार किसी को भी आदिवासी नहीं मानती
भारत सरकार इन्हें कबीलाई मानती है .
दो शब्द हैं इंडीजनस और ट्राइबल
इंडीजनस का अर्थ है
मूल निवासी
ट्राइबल का अर्थ है किसी कबीले का सदस्य ,
भारत सरकार ने भारत के आदिवासियों के लिए इंडीजनस शब्द का इस्तेमाल जान बूझ कर नहीं किया
भारत सरकार आदिवासियों को आदिवासी मानती ही नहीं है
संविधान में ऐसा ही लिखा है

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