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Tuesday, August 18, 2015

लक्खे के सपनों की मौत

लक्खे एक आदिवासी लड़की है

लक्खे छत्तीसगढ़ के एड्समेट्टा गाँव मे रहती थी

लक्खे की तेरह साल की उम्र मे लखमा से शादी हुई

पुलिस वाले इनाम और के लालच मे आदिवासियों को जेल मे डालते रहते हैं

लक्खे जंगल मे लकडियाँ लेने गयी थी

पुलिस पार्टी उधर से गुज़र रही थी

पुलिस वाले लक्खे को पकड़ कर थाने ले गए

लक्खे को थाने मे बहुत बुरी तरह मारा

उसके बाद लक्खे को जेल मे डाल दिया गया

लक्खे पर पुलिस ने नक्सलवादी होने के चार फर्ज़ी मामले बनाए

तीन मामलों मे लक्खे को अदालत ने निर्दोष घोषित कर के बरी कर दिया है

लेकिन इस सब मे दस साल गुज़र गए

लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे बंद है

शुरू के कुछ साल तक तो लक्खे को उम्मीद थी

कि मैं जेल से जल्द ही निकल कर घर चली जाऊंगी

जेल मे आने के चार साल तक लक्खे का पति जेल मे लक्खे से मिलने आता रहा

लेकिन चार साल बाद लक्खे ने अपने पति लखमा से जेल की सलाखों के पीछे से कहा

लखमा अब शायद मैं कभी भी बाहर ना निकल सकूं

जा तू किसी दूसरी लड़की से शादी कर ले

जेल से अपने पति के वापिस जाने के बाद

उस रात लक्खे बहुत रोई

सोनी सोरी भी तब जेल मे ही थी

लक्खे का रोना सुन कर

जेल मे दूसरी महिलाओं को लगा शायद लक्खे के परिवार मे किसी की मौत हो गयी है

इसलिए लक्खे रो रही है

लेकिन असल मे उस रात लक्खे के सपनों और उम्मीदों की मौत हुई थी

लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे है

पूरी उम्मीद है लक्खे आख़िरी मुकदमे मे भी बरी हो जायेगी

लेकिन लक्खे के जीवन के इतने साल कौन वापिस देगा ?

लक्खे के सपनों की मौत भारत के लोकतंत्र की मौत नहीं है क्या ?

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