एक तरफ आप हैं जो दिन भर कुर्सी पर बैठ कर बहुत कम मेहनत करते हैं
लेकिन आपके पास कार है अपना फ़्लैट है बीबी के पास ब्यूटी पार्लर जाने के लिए भी पैसे हैं .
दूसरी तरफ देश के करोड़ों लोग हैं जो दिन भर कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन उनके पास घर नहीं है
बीबी के इलाज की भी हैसियत नहीं है .
ये क्या जादू है कि मेहनत वाले गरीब और आरामदेह काम करने वाले अमीर हैं ?
अमीरी के लिए प्राकृतिक संसाधन जैसे ज़मीन , नदी ,जंगल की ज़रूरत होती है
और ज़रूरत होती है मेहनत की .
संविधान के मुताबिक तो प्रकृतिक संसाधन पर तो सभी नागरिकों का बराबर हक है
और किसी एक गरीब की मेहनत का फायदा किसी दूसरे अमीर को मिले यह भी संविधान के मुताबिक वर्जित है
यानी देश में जो लोग दूसरों के संसाधनों और दूसरों की मेहनत के दम पर अमीर बने हैं उन्होंने संविधान के खिलाफ़ काम किया है
संविधान में लिखा है कि सरकार देश में नागरिकों के बीच बराबरी लाने के लिए काम करेगी
लेकिन सरकार रोज़ गरीब आदिवासियों और गांव वालों की ज़मीने पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की बंदूकों के दम पर छीन कर अमीर उद्योगपतियों को दे रही है .
सरकार रोज़ ही चंद अमीरों के फायदे के लिए करोड़ों नागरिकों को बंदूक के बल पर गरीब बना रही है
जो सरकार अमीरों का फायदा करती है उसे जीतने के लिए अमीर ही पैसा देते हैं
अमीर उद्योगपति ही तय करते हैं कि अब स्कूल कालेज में क्या पढ़ाया जाय . ताकि उनके उद्योग धंधे चलाने के लिए उन्हें कर्मचारी मिल सकें .
मध्यम वर्ग यही कर्मचारी वर्ग है .
यह मध्यम वर्ग चाहता है कि उद्योगपति का उद्योग चलता रहे ताकि मध्यम वर्ग का भी कार और ब्यूटी पार्लर वाला जीवन चलता रहे .
इसलिए यह मध्यम वर्ग कहता है कि सरकार विकास करती है
इसलिए आप कहते हैं कि पुलिस और अर्ध सैनिक बल देश भक्त होते हैं
आप इस तरह के बंदूक के दम पर चलने वाले विकास और इस हिंसक राजनीति के समर्थक बन जाते हैं .
आपका साहित्य कला राजनीति सब इस लुटेरी आर्थिक दुनिया में ही पनपती है .
इसलिए आपके साहित्य और कला में से करोड़ों मजदूर,आदिवासी और रोज़ मर रहे किसान गायब होते हैं.
अब सरकार आपको समझाती है कि देखो हमें विकास को बढ़ाना है तो हमें सुरक्षा बलों की संख्या बढानी पड़ेगी .
अपने ही देश के गरीबों को मारने के लिए आप सहमत हो जाते हैं .
हिंसक अर्थव्यवस्था , हिंसक राजनीति और हिंसक शिक्षा आपको एक जानवर में बदल देती है
आप देख ही नहीं पाते हैं कि आप कब हिंसक और संवेदना हीन बन गए
यही इस अर्थ व्यवस्था और इस राजनीति का जाना परखा पुराना तरीका है
यह मनुष्य को जानवर बना कर उसे गुलाम बना लेती है .
इस गुलामी और जानवर पने से मुक्ति भी संभव है .
लेकिन पहले ज़रूरी है कि आप अपनी गुलामी को समझ लें
वरना आप आज़ादी की बात करने वाले को ही मार डालेंगे
लेकिन आपके पास कार है अपना फ़्लैट है बीबी के पास ब्यूटी पार्लर जाने के लिए भी पैसे हैं .
दूसरी तरफ देश के करोड़ों लोग हैं जो दिन भर कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन उनके पास घर नहीं है
बीबी के इलाज की भी हैसियत नहीं है .
ये क्या जादू है कि मेहनत वाले गरीब और आरामदेह काम करने वाले अमीर हैं ?
अमीरी के लिए प्राकृतिक संसाधन जैसे ज़मीन , नदी ,जंगल की ज़रूरत होती है
और ज़रूरत होती है मेहनत की .
संविधान के मुताबिक तो प्रकृतिक संसाधन पर तो सभी नागरिकों का बराबर हक है
और किसी एक गरीब की मेहनत का फायदा किसी दूसरे अमीर को मिले यह भी संविधान के मुताबिक वर्जित है
यानी देश में जो लोग दूसरों के संसाधनों और दूसरों की मेहनत के दम पर अमीर बने हैं उन्होंने संविधान के खिलाफ़ काम किया है
संविधान में लिखा है कि सरकार देश में नागरिकों के बीच बराबरी लाने के लिए काम करेगी
लेकिन सरकार रोज़ गरीब आदिवासियों और गांव वालों की ज़मीने पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की बंदूकों के दम पर छीन कर अमीर उद्योगपतियों को दे रही है .
सरकार रोज़ ही चंद अमीरों के फायदे के लिए करोड़ों नागरिकों को बंदूक के बल पर गरीब बना रही है
जो सरकार अमीरों का फायदा करती है उसे जीतने के लिए अमीर ही पैसा देते हैं
अमीर उद्योगपति ही तय करते हैं कि अब स्कूल कालेज में क्या पढ़ाया जाय . ताकि उनके उद्योग धंधे चलाने के लिए उन्हें कर्मचारी मिल सकें .
मध्यम वर्ग यही कर्मचारी वर्ग है .
यह मध्यम वर्ग चाहता है कि उद्योगपति का उद्योग चलता रहे ताकि मध्यम वर्ग का भी कार और ब्यूटी पार्लर वाला जीवन चलता रहे .
इसलिए यह मध्यम वर्ग कहता है कि सरकार विकास करती है
इसलिए आप कहते हैं कि पुलिस और अर्ध सैनिक बल देश भक्त होते हैं
आप इस तरह के बंदूक के दम पर चलने वाले विकास और इस हिंसक राजनीति के समर्थक बन जाते हैं .
आपका साहित्य कला राजनीति सब इस लुटेरी आर्थिक दुनिया में ही पनपती है .
इसलिए आपके साहित्य और कला में से करोड़ों मजदूर,आदिवासी और रोज़ मर रहे किसान गायब होते हैं.
अब सरकार आपको समझाती है कि देखो हमें विकास को बढ़ाना है तो हमें सुरक्षा बलों की संख्या बढानी पड़ेगी .
अपने ही देश के गरीबों को मारने के लिए आप सहमत हो जाते हैं .
हिंसक अर्थव्यवस्था , हिंसक राजनीति और हिंसक शिक्षा आपको एक जानवर में बदल देती है
आप देख ही नहीं पाते हैं कि आप कब हिंसक और संवेदना हीन बन गए
यही इस अर्थ व्यवस्था और इस राजनीति का जाना परखा पुराना तरीका है
यह मनुष्य को जानवर बना कर उसे गुलाम बना लेती है .
इस गुलामी और जानवर पने से मुक्ति भी संभव है .
लेकिन पहले ज़रूरी है कि आप अपनी गुलामी को समझ लें
वरना आप आज़ादी की बात करने वाले को ही मार डालेंगे
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