जिन बच्चों के लिंगा लड़ता था
लिंगा कोड़ोपी एक आदिवासी पत्रकार है ! वह छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों पर लिखता है ! इसलिए सरकार ने उसे जेल में डाल दिया है! लिंगा कोड़ोपी ने अभी जेल से एक ख़त भेजा है !इसमें लिंगा कोड़ोपी ने बताया है की लिंगा कोड़ोपी को बिजली के झटके देकर जान से मारने के लिए दंतेवाडा के एस पी के घर ले गए थे लेकिन लिंगा कोड़ोपी को २००९ के एफिडेविट के कारण छोड़ दिया गया ! ये २००९ का एफिडेविट क्या है ? इसमें लिंगा कोड़ोपी ने साफ़ साफ़ कह दिया था की जब मैं दिल्ली से वापिस छत्तीसगढ़ जाऊंगा तो मुझे सरकार झूठे केस में फंसा देगी ! सरकार ने सच में ऐसा ही किया भी है ! दूसरी बात लिंगा कोड़ोपी ने इस एफिडेविट में लिख दी थी की मुझे जान से भी मारा जा सकता है ! इस बात से डरकर उस रात एस पी लिंगा कोड़ोपी को चाह कर भी नहीं मार पाया !
प्रस्तुत है लिंगा कोड़ोपी के एफिडेविट का हिंदी अनुवाद
शपथ पत्र
मैं, लिंगाराम कोडोपी, पिता श्री जोगा राम कोडोपी, निवासी ग्राम समेली, पटेल पारा, खंड कुआकोंडा, तहसील दंतेवाडा, ज़िला दंतेवाडा, छत्तीसगढ़, आयु २४ वर्ष, दृढ़तापूर्वक कहता हूँ
- कि मैं समेली गाँव में अपने पुश्तैनी घर में अपने माता पिता और सबसे बड़ा भाई मासा राम कोडोपी, आयु लगभग ३२ वर्ष के साथ रहता हूँ. मेरे पिता जोगा राम कोडोपी किसान और भूतपूर्वक सरपंच हैं. मेरा बड़ा भाई जिल्ला उप मंडी का सदस्य है. मेरा दूसरा भाई भीमा राम कोडोपी, आयु ३० वर्ष, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, बचेली, ज़िला दंतेवाडा में काम करता है. मेरी छोटी बहन कुमारी कुंती, आयु १८ वर्ष, बचेली शहर में दसवीं कक्षा में पढ़ती है.
- कि मैं नवीं कक्षा तक पढ़ा हूँ, और हिंदी में पढ़ लिख सकता हूँ. मैं समेली गाँव में अपने पिता की ज़मीन पर काम करता हूँ. मैं जीप भी चलाता हूँ, जिससे मैं लोगों को गाँव से आसपास के शहरों तक ले जाता हूँ.
- मैं शांतिप्रिय और कानून पाबन्द आदिवासी नागरिक हूँ. मैंने कभी किसी अवैध गतिविधि में भाग नहीं लिया, और न ही कोई अपराध किया है.
- कि मुझे दंतेवाडा पुलिस थाने में छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा ३१ अगस्त से ६ अक्टूबर, २००९ तक ग़ैर क़ानूनी हिरासत में रखा गया. मेरे परिवार वालों ने हेबिअस कॉर्पस याचिका, मासा राम कोडोपी विरुद्ध छत्तीसगढ़ शासन, रिट पेटीशन H.C. No. 5469/2009दर्ज की, और मुझे बिलासपुर उच्च न्यायालय के मध्यवर्तन के बाद ही रिहा किया गया.
- कि मेरी ग़ैर क़ानूनी हिरासत के दौरान मुझे शारीरिक और मानसिक यातनाएं भुगतनी पड़ीं, मुझे धमकाया गया और मुझ पर दबाव डाला गया कि मैं स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एस पी ओ) बन जाऊं, और मुझे डर है कि यदि मैं छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले में अपने गाँव वापिस आया, तो मुझे दंतेवाडा की पुलिस द्वारा मार दिया जाएगा.
- कि १४ अगस्त २००९ को सी आर पी ऍफ़ और एस पी ओ आधी रात को मेरे गाँव आये. उन्होंने मुझे ढूँढने के लिए बलपूर्वक मेरी बुआ सोनी सोरी के घर में प्रवेश किया, जो जबेली आश्रम विद्यालय की प्रिंसिपल है. उस रात मेरी मोटर साइकिल मेरी बुआ के घर में ही थी. उन्होंने मेरे बारे में पूछताछ की और आरोप लगाया कि मैं नक्सलियों की मदद करता हूँ. उन्होंने मेरी बुआ के घर की खान मारी, मेरी पतलून से, जो मैं अपनी बुआ के घर छोड़ गया था, ९०० रुपये लूटे, और यह दावा करते हुए की मेरी टोपी असल में एक नक्सली की है, उसे भी ले गए.
- कि २७ अगस्त २००९ को, श्री हुंगा राम मंडावी ने, जो जबेली आश्रम में एक अध्यापक हैं , मुझसे मेरी मोटर साइकिल माँगी, जिससे वे अपनी छोटी बच्ची को अस्पताल ले जा सकें. अस्पताल से आते समय उन्हें, उनकी पत्नी और बेटी को रास्ते में सी आर पी ऍफ़ ने रोका और २४ घंटों के लिए हिरासत में रखा. सी आर पी ऍफ़ ने उनसे मेरे बारे में पूछताछ की और फिर छोड़ दिया. सी आर पी ऍफ़ ने मेरी मोटर साईकिल अवैध रूप से ज़प्त कर ली और आज तक मुझे वापिस नहीं दी.
- कि ३१ अगस्त २००९ को जब मैं दोपहर के १२ बजे घर में था, असैनिक लिबास में दो आदमी मेरी मोटर साईकिल पर सवार हो कर आये और मुझसे पूछा कि वह मोटर साईकिल किसकी है. जब मैं घर से बाहर आया, तो उन्होंने मुझसे एक सादा कागज़ माँगा. तब तक वहां स्थानीय थाने से १० पुलिस वाले आ पहुंचे थे और मुझे उनके साथ पुलिस थाने जाने के लिए कहा. जब मैंने उनसे पूछा कि वे मुझे किसलिए थाने ले जा रहे हैं, वे बोले के उन्हें मुझसे कुछ सवाल करने हैं. कुअकोंडा थाने के "थाना मुंशी" ने मुझसे अपने कुछ कपड़े साथ ले जाने के लिए कहा क्योंकि उसके मुताबिक़ मुझे रिहा होने में दो दिन लग सकते हैं. कुछ अन्य पुलिस वाले बोले कि मुझे ऐसा करने की कोई ज़रुरत नहीं है. मुझे मेरे गाँव से ९ किलोमीटर दूर पालनार में सी आर पी ऍफ़ शिविर में ले जाया गया और उसके बाद कुअकोंडा पुलिस थाने ले जाया गया.
- कि मुझे कुअकोंडा पुलिस थाने में पीटा गया और ज़ोर से दीवार के साथ(?) धक्का दिया गया, और मुझ पर नक्सली का बेटा होने का इलज़ाम लगाया गया. उसी दिन शाम के सात बजे मुझे कुआकोंडा थाने से दंतेवाडा थाने ले जाया गया.
- कि मुझे दंतेवाडा थाने में ६ अक्टूबर २००९ तक अवैध तरीके से रखा गया. मुझे माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर रिहा किया गया.
- कि दंतेवाडा थाने में पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्र द्वारा मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया. मुझे पीटा गया और मुझ पर नक्सली होने का, नक्सलियों के लिए सामान ढुलाई करने का, और रिवोल्वर रखने के झूठे इलज़ाम लगाए गए. एस पी ने मुझसे कहा कि अगर मैंने उनके साथ सहयोग नहीं किया, तो मुझे मार दिया जाएगा. मुझपर एस पी ओ बनने का दबाव डाला गया. एस पी ने मुझसे जबरन एक कागज़ पर लिखवाया कि मुझे नक्सलियों ने बहुत सताया है और मैं एस पी ओ बनने के लिए राज़ी हूँ. वह बोला, "तुम्हारे क्षेत्र को साफ़ करने के लिए २ साल लगेंगे." हिरासत के दौरान पूरे वक़्त मुझे एस पी बनने के लिए या तो धमकाया गया या पैसे का लालच दिया गया. मुझसे कहा गया कि अगर मैं एस पी ओ बनने से इनकार करता हूँ, तो मुझे नक्सली वर्दी पहना कर मार दिया जाएगा, और सभी लोग मानेंगे कि एक नक्सली को मार दिया गया है. इसके विपरीत यदि मैं एस पी ओ बनने के लिए राज़ी हो जाऊं और अपने गाँव में कौन नक्सली हैं, ये पुलिस को बताऊँ, तो मुझे पैसा और एक स्थायी नौकरी मिलेगी, इसका मुझे लालच दिया गया.
- कि मुझे एस पी द्वारा सूचित किया गया कि मुझे २८ अगस्त २००९ से एस पी ओ बना दिया गया है और मुझे महीने के २१५० रूपए मिलेंगे.
- कि ३१ अगस्त, २००९ को मेरे अवैध तरीके से पकड़ लिए जाने के बाद, जब मेरी बुआ सोनी सोरी और हुंगा राम कुअकोंडा थाने पहुंचे, और मेरी रिहाई की विनती की, तो एस पी ने कहा कि मैं नक्सली और नक्सली का बेटा हूँ. एस पी ने कहा कि वह मुझे मार देगा और मेरे सम्बन्धियों को तुरंत थाने से बाहर जाने का आदेश दिया.
- कि मेरे अवैध तरीके से पकड़े जाने के कुछ दिन बाद, मेरी माँ, मेरे पिता, भाई, हमारे गाँव की सरपंच, सरपंच के पति और अन्य कुछ गाँव वाले दंतेवाडा थाने गए. वहां वे एस पी से मिले, और मुझे रिहा करने की विनती की. मेरे भाई, पिता, सरपंच के पिता और अन्य लोगों को एस पी अमरेश मिश्र ने पीटा, और उसने कहा कि वे लोग एक नक्सली को रिहा करवाने आये हैं.
- मेरी अवैध हिरासत की पूरी अवधि के दौरान ३१ अगस्त से ६ अक्टूबर, २००९ तक मुझे एक बहुत छोटे अँधेरे कमरे में ३ अन्य आदिवासियों के साथ रखा गया. मुझे जबरन उसी कमरे में खाना पड़ा और मलोत्सर्ग और पेशाब करना पड़ा. मुझे खाने के लिए रोज़ केवल एक बार थोड़ी सी दाल और चावल दिए गए. पूरी हिरासत के दौरान मुझे केवल एक बार नहाने की अनुमति मिली.
- कि मुझ पर बार बार अपने गाँव में नक्सलियों की शेनाख़्त करने का दबाव डाला गया. मुझे नक्सलियों कीशेनाख़्त करने के लिए ३-४ गाँव जैसे बचेली और बल्लिदला, ले जाया गया. मुझे रिश्वत दी गयी ताकि मैं उन आदिवासिओं को, जिन्हें मैं जानता था कि वे निर्दोष हैं, नक्सली होने की झूठीशेनाख़्त करूँ. मुझे बताया गया कि मुझे ईनाम और नौकरी मिलेगी, और वे पदोन्नत होंगे अगर मैं कुछ आदिवासियों को नक्सली शेनाख़्त करूँ.
- कि मेरी अवैध हिरासत के दौरान एक दिन मुझे दंतेवाडा में डी आई जी के कार्यालय में पेश किया गया. डी आई जी ने कांस्टेबलों से कहा कि मुझे थप्पड़ मारें और कहा कि बेहतर होता कि मुझे हिरासत में लेने के बजाय पुलिस ने मुझे गोली मार दी होती.
- कि ६ अक्टूबर, २००९ को मुझे मेरे भाई द्वारा दर्ज की हुई हेबिअस कॉर्पसयाचिका मासा राम कोडोपी विरुद्ध छत्तीसगढ़ शासन, रिट पेटीशन H.C. No. 5469/2009 के आधार पर बिलासपुर उच्च न्यायालय में पेश किया गया.
- कि ३ अक्टूबर, २००९ को मेरे बिलासपुर उच्च न्यायालय में पेश होने के पहले मुझे पुलिस द्वारा चिकित्सीय परीक्षा के लिए भेजा गया.
- कि बिलासपुर उच्च न्यायालय जाने के समय रास्ते में डी एस पी श्री शर्मा ने मुझे धमकी दी और कहा कि यदि मैंनेउच्च न्यायालय को बताया कि पुलिस ने मेरे साथ कैसा बर्ताव किया है, तो मुझे मार दिया जाएगा.
- कि मैंने उच्च न्यायालय के सामने कहा कि मैं पुलिस के साथ अपनी इच्छा से हूँ, पर अब मैं घर जाना चाहता हूँ. डी एस पी ने न्यायालय के बाहर मुझसे जबरन ऐसे ही एक वक्तव्य पर हस्ताक्षर लिए, और मुझसे कहा कि इस वक्तव्य की एक प्रति मैं दंतेवाडा में एस पी के कार्यालय ले जाऊं. अपनी जान जाने के डर से मैंने वह वक्तव्य अभी तक नहीं लिया.
- कि मेरी रिहाई के बाद बिलासपुर उच्च न्यायालय के बाहर डी एस पी दंतेवाडा ने मेरी और मेरे परिवार- मेरी माँ, भाई, पिता और कुछ गाँव वालों की फोटो ली.
- कि मेरी अवैध हिरासत से रिहाई के बाद, अपनी जान जाने के डर से, मैं अपने गाँव वापिस नहीं गया हूँ. कुछ दिनों के लिए मैं बचेली में अपने मंझले भाई के साथ ठहरा और अब मैं दिल्ली में हूँ.
- कि मेरी रिहाई करवाने के बाद जब मेरे परिवार वाले घर वापिस जा रहे थे, तो छत्तीसगढ़ पुलिस ने रास्ते में उन्हें रोक लिया. पुलिस ने मेरे भाई मासा राम कोडोपी को ७ अक्टूबर, २००९ की शाम को पकड़ लिया और आरोप लगाया कि उसने एक नक्सली को छुड़ाया है. उसे २४ घंटों के लिए कुअकोंडा थाने में अवैध हिरासत में रखा गया. उसे ८ अक्टूबर, २००९ को दंतेवाडा थाने से स्थानीय विधायक भीमा मंडावी के मध्यवर्तन के कारण लगभग ८ बजे शाम को रिहा कर दिया गया.
- कि मैं अपने गाँव लौटना चाहता हूँ, और एक साधारण और सुरक्षित जीवन जीना चाहता हूँ, जैसे कि मेरे पुलिस द्वारा अवैध रूप से पकड़े जाने, हिरासत में लिए जाने और प्रताड़ित किये जाने के पहले किया करता था.
- कि मैं अपने परिवार और गाँव वापिस नहीं जा सकता क्योंकि मैं असुरक्षित महसूस करता हूँ, और क्योंकि मुझे अपनी सुरक्षा की चिंता और अपनी जान जाने का डर है. चूंकि मैंने एस पी ओ बनने से इनकार कर दिया है, इसलिए मुझ पर नक्सली होने का झूठा आरोप लगा दिया गया है. मुझे गूढ़ आशंका है कि एस पी और अन्य पुलिस अधिकारी मुझे मरवा देंगे.
- कि मैं छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए एस पी ओ का काम नहीं करना चाहता और मेरा नियोग पत्र रद्द कर दिया जाए.
- कि पुलिस वाले मेरे परिवार के सदस्यों को, मेरी न्यायिक आदेश द्वारा अवैध हिरासत से रिहाई करवाने के कारण, बार बार तंग करते हैं.
- कि मुझे गूढ़ आशंका है कि मुझे पुलिस द्वारा मार दिया जा सकता है या फिर अवैध हिरासत में लेकर प्रताड़ित किया जा सकता है क्योंकि मैंने इस जान के ख़तरे की गंभीर आशंका को संवैधानिक अधिकारोयों के समक्ष अभिव्यक्त किया है.
- कि नक्सलियों से लड़ने के नाम पर, मुझे और मेरे परिवार वालों को, जो मेहनती और निर्दोष आदिवासी हैं, पुलिस द्वारा निशाना बनाया गया है.
- कि मुझे दंतेवाडा की पुलिस से मेरे जीवन के मूलाधिकार पर गहरा ख़तरा है. मैं निवेदन करता हूँ कि मेरे और मेरे परिवार के सदस्यों के संवैधानिक और मानव अधिकारों की रक्षा की जाए.
- कि उपरोक्त शपथ पत्र मुझे पढ़ कर सुनाया गया है और हिंदी में स्पष्ट किया गया है, और मेरी जानकारी और विश्वास के मुताबिक़ यथातथ्य है.
लिंगा राम कोडोपी
अभिसाक्षी
सत्यापन
२२ अक्टूबर, २००९ को सत्यापित किया कि उपरोक्त शपथ पत्र में जो लिखा है, वह मेरी जानकारी और विश्वास के मुताबिक़ सच है और मैंने कोई आवश्यक या महत्वपूर्ण जानकारी को नहीं छुपाया.
लिंगा राम कोडोपी
अभिसाक्षी
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