एक दफा किसी शायर ने मुज्ज़फर नगर के बारे में बोला कि
ना सीरत, ना सूरत,ना इल्मो हुनर
अजब नाम है ये मुज़फ्फ़र नगर
मुज़फ्फर नगर के एक शायर से ना रहा गया और उसने जवाब दे मारा
अबे उल्लू पट्ठे तुझे क्या ख़बर
हसीनों का घर है मुज़फ्फ़र नगर
मैं भी मुजफ्फ़र नगर का पुराना बाशिंदा हूँ।
हमारा घर चुंगी नम्बर दो के पास है। कुछ दूर से ही गाँव शुरू हो जाते थे।
हमारे घर के सामने एक मैदान था। उसमे कभी कभी झूले वाले हिंडोले और घोड़े और कुर्सी लगे चकरी वाले झूले लेकर आते थे। झूले वाला पांच पैसे या एक रोटी लेकर झूला झुलाता था ।
लेकिन हम तो दिन भर झूलना चाहते थे। पर दिन भर पैसे कौन देता ? हम नज़र बचा कर घर से रोटी चुरा कर झूले वाले को दे देते थे और झूला झूलते थे।
मेरे पड़दादा उत्तर प्रदेश में स्वामी दयानन्द के प्रथम शिष्य थे। दयानन्द जी मुज़फ्फर नगर में हमारे घर में ठहरते थे।
मेरे पडदादा ने 'अजीब ख्वाब' नाम से उर्दू में एक किताब लिखी थी। जिसका विषय सर्व धर्म समभाव था।
हमारे ताऊ ब्रह्म प्रकाश जी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और वकील थे। ताऊ जी बड़े नामी नेता थे। जिला परिषद् के अध्यक्ष थे। बहुत बार जेल गए। नेहरु जी , जयप्रकाश जी , चन्द्रशेखर जी घर पर आते थे। ।
कुछ साल पहले मुज़फ्फर नगर की कचहरी में प्रशासन ने ताऊ जी के नाम पर एक द्वार बनाया है।
हमारे ताउजी को सभी अब्बा जी के नाम से जानते थे । ये नाम उनके मुस्लिम मुंशी जी के बेटे द्वारा दिया गया था।
हमारे घर के सामने रशीद ताऊ जी रहते थे। उनकी बसें चलती थीं। हमने सुना था कि बंटवारे के वख्त रशीद ताउजी पकिस्तान जाने लगे तो उन्हें अब्बाजी यानी ब्रह्म प्रकाश जी ने जाने से रोक लिया था और बस खरीदने में मदद करी। बाद में उनका बस का काम अच्छे से चलने लगा।
रशीद ताउजी की बस में बैठ कर सभी लोग कलियर शरीफ जाते थे।
हमारा घर नामी घर माना जाता था। हांलाकि आज लिहाज़ से देखें तो रहन सहन बिलकुल सादा था। गर्मी लगे तो हाथ पंखे से हवा कर लेते थे।ताऊ जी कचहरी साइकिल पर जाते थे। ताऊ जी कभी रिक्शे पर नहीं बैठते थे। उनका मानना था की को खींचे कोई अच्छी बात नहीं है। घर में एक रेडियो था जो सिर्फ सुबह ख़बरों वख्त खुलता था। एक हैण्ड पम्प था। घर में किसी को ठंडा पानी चाहिए होता था तो घर के लड़कों को कहा जाता था की चालीस नम्बर का पानी लाओ। मतलब पहले चालीस बार हैण्ड पम्प चलाओ फिर एक गिलास पानी भर कर पिलाओ।
लड़कों से खूब काम लिया जाता था। एक ख़त रजिस्ट्री से भेजना हो तो चार किलोमीटर हमें दौड़ा दिया जाता था।
एक बार मैं , मेरा हमउम्र भतीजा और मेरे चचेरे भाई गन्ने खाने के इरादे से साइकिलों पर गाँव की तरफ निकल गए। गन्ने तोड़ कर अभी खेत से निकल ही रहे थे की खेत वाले ने पकड़ लिया। आस पास के खेत वाले भी जमा हो गए।
हमने सोचा अपने ताउजी का नाम बता देते हैं उन्हें तो सब जानते हैं। हमने जैसे ही अपने ताउजी का नाम बताया वो खेत वाला तो उछल पड़ा बोला की अरे इस वकील ने ही तो मेरे भाई को एक केस में उम्र कैद करवाई थी। आज अच्छा हुआ तुम लोग पकड़ में आ गए।
अब हम तीनों बहुत घबराए। खेत वाला थोडा दूर खडा होकर हमारे अंजाम के बारे में विचार कर ही रहा था तभी हम लोगों ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे को इशारा किया और साइकिल उठा कर भाग लिए।
मेरे वो भाई साहब अब सीआरपीऍफ़ में अफसर हैं , मेरा वो भतीजा अभी कनाडा में है।
बचपन में मैं अपने दोस्त भोले और छोटे के साथ स्कूल से गायब हो जाता था और हम तीनों दोस्त काली नदी में दिन भर नहाते रहते थे। लौटते समय टीले पर बने मन्दिर में जाकर कुछ प्रसाद खाने के लिए जाते थे। मन्दिर सुनसान पड़ा रहता था।
मेरा दोस्त भोला भगवान् से बहुत डरता था। लेकिन मैं और छोटा भोले की मज़ाक बनाते थे। हम भोले को चुनौती देते थे कि ले हम मन्दिर में भगवान् को गाली दे रहे हैं। देखते हैं तेरा भगवान् हमारा क्या कर लेगा ? हम भगवान को चिल्ला चिल्ला कर गाली देते थे।भोला हमारी गलती के लिए मूर्तियों से माफी मांगता रहता था।
स्कूल की छुट्टी के समय हम लोग घर आ जाते थे। अपने गीले कच्छे सडक पर से ही छत पर फ़ेंक देते थे। और बेफिक्र घर में घुस जाते थे। एक दिन हमारे कच्छे छत पार कर के आँगन में आ गिरे। सारा भेद खुल गया। डांट पड़ी पर परवाह कौन करता था ? हमारा नदी जाना कम नहीं हुआ।
जब हम पढ़ते थे तो हाई स्कूल के बहुत से लड़के चाकू रखते थे। कुछ के पास देसी कट्टे भी रहते थे। चाकूबाजी की घटनाएँ अक्सर होती रहती थीं।
मुज़फ्फर नगर शहर के एक किनारे काली नदी बहती है। नदी के किनारे दलितों की बस्ती थी। इस बस्ती के लड़कों से हम बहुत डरते थे। वे अक्सर हमें बिना वजह पीट देते थे। हम शरम की वजह से अपने पिटने की बात किसी को नहीं बताते थे।
शुगन चन्द्र मजदूर नाम के एक बड़े नेता उसी बस्ती में रहते थे।वे अक्सर ताउजी से मिलने आते थे।अंग्रेज़ी राज में शुगन चन्द्र मजदूर और उनके साथियों ने एक दफा कलेक्टर आफिस पर कब्ज़ा कर लिया और शहर को अंग्रेज़ी राज से आज़ाद घोषित कर दिया और लोगों से कहने लगे कि लाओ हम दरख्वास्त पर मंजूरी के दस्तखत कर देते हैं। पुलिस ने शुगन चन्द्र मजदूर और उनके साथियों को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया।
मुज़फ्फर नगर एक अमीर शहर है। यहाँ की प्रति व्यक्ति आय भारत में त्रिवेन्द्रम के बाद सबसे ज्यादा है। और अपराधों में मुज़फ्फर नगर काफी ऊँचे पायदान पर है। मुज़फ्फर नगर गूड और खांडसारी की एशिया की सबसे बड़ी मंडी है। मुज़फ्फर नगर में हर गाँव में कई कई कोल्हू , हज़ारों पावर क्रेशर और कई शुगर मिलें हैं। मुज़फ्फर नगर में बड़ी संख्या में पेपर मिलें और स्टील रोलिंग मिलें हैं .
लगता है कि समाज में हर जगह सही बातों को फैलाने वाले लोगों को ज़रूर काम करते रहना चाहिए।क्योंकि सिर्फ आर्थिक विकास किसी भी समाज के विकसित होने की गारंटी नहीं है। यह बात मुज़फ्फर नगर के हालिया दंगों से साफ़ हो गयी है।
beautiful description
ReplyDeleteआपके शैशव के संस्मरणों के प्रसाद को बांट रहा हूं। अपने ब्लॉग 'शैशव' पर।
ReplyDeleteThanks for publishing it. Bade dino baad yaad thaza ho gayee.
ReplyDeleteTutu
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