Friday, June 15, 2012

माओवादी" साहित्य



अमर उजाला में आज एक खबर छपी है ! उत्तराखंड में आठ साल पहले ! पुलिस ने आठ किसानो को माओवादी कह कर पकड़ा ! जेल में उनकी जिंदगी के आठ साल जेल में बर्बाद कर दिये गये ! अब कोर्ट ने उन सभी को बाइज्ज़त बरी कर दिया है ! इस दौरान एक किसान की मौत हो गयी और उनमे से एक तो छोटा बच्चा ही था ! उस बच्चे को को बाल सुधार गृह में भेज दिया गया था !

कोर्ट का कहना था कि पुलिस ने इन लोगों के पास से बरामद जो माओवादी साहित्य कोर्ट में पेश किया है, वह ना तो राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंधित है और ना ही केन्द्र सरकार द्वारा !लेकिन इस बात को कहने में अदालत ने आठ साल का वख्त लगाया ! अगर अम्बानी साहब जेल में बंद हो जाते तो भी जज साहब इस बात को कहने में आठ साल लगाते क्या ?

खैर अगली मज़े दार बात ! पुलिस ने अदालत में कहा कि पुलिस ने इन " माओवादियों " को अगस्त में "माओवादी" साहित्य के साथ पकड़ा और उसी समय साहित्य को एक अखबार में लपेट कर सील कर दिया गया था ! लेकिन अदालत में जब इन किसानो के वकील ने वह पैकेट देखा तो उसने जज को वह अखबार दिखाया कि साहब यह अखबार जिसमे यह सब लपेटा गया है वह तो अक्टूबर का अखबार है ! इसका मतलब है या तो पुलिस को इन किसानो के पास से कुछ मिला ही नहीं था और पुलिस ने तीन महीने बाद कुछ किताब वगैरह लपेट कर जज को दिखा दी ! या फिर पुलिस ने सील किये गये पैकेट को फिर से खोला और उसमे फिर से कुछ कागज़ात डाल दिये और नए अखबार में लपेट दिया !

अब इस मामले में अपराधी कौन है ! ये किसान तो बिल्कुल भी नहीं ! क्योंकि यह तो अदालत ने मान लिया कि ये लोग निर्दोष हैं ! लेकिन जिन पुलिस अधिकारियों ने ये सारे झूठे सबूत बनाये , इन किसानो को झूठे मामले बना कर फंसाया और इनकी जिंदगी के आठ साल नष्ट कर दिये ! उन पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने का आदेश कोर्ट ने क्यों नहीं दिया ?

एक और मज़ेदार बात ! अगर आप अमर उजाला की रिपोर्टिंग पढ़ें तो अखबार अभी भी इन्हें माओवादी ही मान रहा है ! उसकी पूरी रिपोर्ट यह आभास दे रही है कि जैसे कोई बहुत बड़ा गलत काम हो गया है और जैसे कि ये माओवादी छूटे जा रहे हैं ! जबकि समाचार बनना चाहिये था कि "पुलिस द्वारा फंसाए गये निर्दोष किसान बा-इज्ज़त बरी " !

जानकारी के लिये यह भी जान लीजिए कि सीमा आज़ाद के पास से जप्त तथाकथित "माओवादी" साहित्य के पाकेट की सील भी पुलिस द्वारा बाद में तोडी गयी थी ! इसलिये जो साहित्य पुलिस उनके पास से गिरफ्तारी के समय मिलने का दावा करती है पुलिस का वह दावा बिल्कुल भी यकीन के काबिल नहीं है !

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