Thursday, March 14, 2013

स्तीफा


आप को विकास करना है 
आप को मेरी ज़मीन पर कारखाना लगाना है 
तो आप सरकार से कह कर मेरी ज़मीन का सौदा कर लेंगे 
फिर आप मेरी ज़मीन से मुझे निकलने का हुक्म देंगे 
में नहीं हटूंगा तो आप मुझे मेरी ज़मीन से दूर करने के लिये अपनी पुलिस को भेजेंगे 
आपकी पुलिस मुझे पीटेगी , मेरी फसल जलायेगी 
आपकी पुलिस मेरे बेटे को देश के लिये सबसे बड़ा खतरा बता कर जेल में डाल देगी 
तुम्हारी पुलिस मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर भर देगी 
में अदालत जाऊँगा तो मेरी सुनवाई नहीं की जायेगी 
में कहूँगा कि यह कैसा विकास है जिसमे मेरा नुक्सान ही नुक्सान है 
तो तुम पूछोगे अच्छा तो वैकल्पिक विकास का माडल क्या है तेरे पास बता ?
आप पूछेंगे कि हम तेरी ज़मीन ना लें तो फिर विकास कैसे करें ?

अजीब बात है यह तो .
विकास तुम्हें करना है विकल्प में क्यों ढूंढूं ?
में तुम्हें क्यों बताऊँ कि तुम मेरी गर्दन कैसे काटोगे ?
अरे तुम्हें विकास करना है तो उसका माडल ढूँढने की जिम्मेदारी तुम्हारी है भाई .

राष्ट्र तुमने बनाया 
इसे लोकतन्त्र तुमने बताया 
राष्ट्रभक्ति के मन्त्र तुमने पढ़े 
अब इस राष्ट्र के बहाने से तुम मेरी ज़मीन क्यों ले रहे हो भाई 
क्या राष्ट्र मेरी ज़मीन छीन कर मज़ा करने के लिये बनाया था ?
क्या राष्ट्र तुमने इसीलिये बनाया था कि तुम राष्ट्र के नाम पर इस सीमा के भीतर रहने वाले गरीबों को पीट कर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लो 

अगर राष्ट्र हम गरीबों के लिये नहीं है 
अगर इस राष्ट्र की फौज पुलिस और बंदूकें मेरी बेटी की रक्षा के लिए नहीं हैं 
अगर राष्ट्र मुझे लूटने का एक साधन मात्र है तुम ताकतवर लोगों के हाथों का 
तो  लो फिर 
में तुम्हारे राष्ट्र से स्तीफा देता हूं 
अब तुम्हारा और मेरा कोई लेना देना नहीं है 
मैंने तुम्हें अपनी तरफ से आज़ाद किया 
अब अगर तुम अपनी पुलिस मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजोगे तो में उसका सामना करूँगा 
में अपनी ज़मीन अपनी बेटी और अपनी आजादी की हिफाज़त ज़रूर करूँगा 

में गाँव का आदिवासी हूं 
अजीब बात है 
जब तुम्हारे सिपाही की गोली से मैं मरता हूं 
तब तुम मेरी मरने के बारे में बात भी नहीं करते 
लेकिन जब तुम्हारे लिये मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजे गये तुम्हारे सिपाही मरते हैं तब तुम राष्ट्र राष्ट्र चिल्लाने लगते हो .
बड़े चालाक हो तुम .

मेरे मृत्यु के समय तुम 
साहित्य धर्म और अध्यात्म की फालतू चर्चा करते रहते हो 
तुम्हारे साहित्य धर्म और अध्यात्म में भी मेरी कोई जगह नहीं होती 
मेरी मौत तुम्हारे राष्ट्र के लिये कोई चिन्ता की बात नहीं है तो मैं तुम्हारे विकास की चिन्ता में अपनी ज़मीन क्यों दे दूं भाई ?

अगर तुम्हें मेरी बातें बुरी लग रही हैं तो 
मेरी तरह मेहनत कर के जीकर दिखाओ 
बराबरी न्याय और लोकतन्त्र का आचरण कर के दिखाओ 
इंसानियत से मिल कर रह कर दिखाओ 
हमें रोज़ रोज़ मारने के लिये हमारे गाँव में भेजी गई पुलिस वापिस बुलाओ 
तुम्हारी जेल में बंद मेरी बेटी और बेटों को वापिस करो 
फिर उसके बाद ही अहिंसा लोकतन्त्र और राष्ट्र की बातें बनाओ .

4 comments:

  1. आईना हमारे लोकतन्त्र का ......

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  2. बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    एक शाम तो उधार दो

    आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे

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