कई बार भारतीय समाज की कल्पना करने की कोशिश करता हूं कि आज जो भारतीय समाज है वो कैसे बना होगा ?
मन में सवाल उठता है कि अगर वेदों और शास्त्रों की रचना इसी भूमि में ही हुई है तो करोड़ों गैर ब्राह्मण लोगों को संस्कृत का एक अक्षर भी क्यों नहीं आता ?
अगर ब्राह्मणों ने इन मेहनतकश जातियों को ज्ञान से वंचित रखा तो भी दस हज़ार साल तक ब्राह्मणों के साथ रहने से कुछ समुदाय थोड़ी बहुत संस्कृत तो जानते ही ?
लेकिन करोड़ों लोग अपनी अपनी जुबाने बोलते रहे , किसी को संस्कृत क्यों नहीं आयी ? और हमसे कहा जा रहा है कि हमारी सनातन प्राचीन भाषा संस्कृत है .
ऐसा कैसे हुआ कि एक ही स्थान पर ,एक ही समुदाय में से कुछ लोग ज्ञान का काम करने लगे और उसी समुदाय के कुछ लोग सेवा का काम करने लगे और अति घृणित शूद्र बन गये ?
अगर शूद्र और ब्राह्मण एक ही नस्ल के होते तो दोनों जातियों के बीच में जो अति घृणा और दूरी है वह नहीं हो सकती थी. दुनिया भर में एक ही समुदाय में भिन्न पेशे के लोगों के बीच ऐसी घृणा कहीं भी नहीं है . अगर यह एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया होती तो दुनिया में दूसरी जगह भी ऐसा हुआ होता , लेकिन ऐसा कहीं भी नहीं हुआ .
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ऐसा प्रतीत होता है कि शूद्र और ब्राह्मण अलग अलग नस्लें हैं .
एक ही नस्ल के दो समुदायों के बाच में ऐसी नफरत हो ही नहीं सकती .
भारत में शूद्रों के पास ज़मीने नहीं हैं . ज़मीने राज करने वाली जातियों के पास हैं और उनके पुरोहित यानी ब्राह्मणों के पास हैं या व्यापारी समुदायों और किसान समुदायों के पास .
अर्थात इस भूमि पर आने वाले पहले लोग ब्राह्मण थे . उसके बाद आने वाले लोगों के साथ ब्राह्मणों ने सामंजस्य बैठाया और राजा को ईश्वर पुत्र कह कर उसे धर्मसत्ता का सहारा दिया .
ये लोग क्षत्रिय कहलाये .
और इसी के साथ इन दोनों शासक जातियों ने धर्मसत्ता के विरुद्ध बोलने को वध योग्य अपराध बना दिया .
बाद में दूसरी हमालवर जातियों ने भी भारत की ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया .
साफ़ साफ़ दीखता है कि इस भूभाग की ज़मीनों पर कब्ज़ा युद्ध के बाद किया गया है .
यह युद्ध किनके किनके बीच हुआ था ?
ज़रूर यह युद्ध उनके बीच हुआ जिनके पास आज ज़मीन हैं और उनके बीच जो आज बेज़मीन हैं .
अर्थात हमारा यह युद्ध बेज़मीन शूद्रों से हुआ था .
जो बेज़मीन हैं उन्हें ही युद्ध में हारने के बाद सेवा का काम करने के लिये दास बनने के लिये मजबूर किया गया .
आज जो किसान जातियां हैं उनकी आज भी ज्यादातर लड़ाई इन्ही शूद्रों से होने का भी यही कारण है कि इनका आपसी सम्बन्ध मालिक और दास का था लेकिन अब समय बदलने के कारण इन मालिक वर्ग को शूद्रों को बराबरी देनी पड़ रही है .
बाद में हम हमलावरों ने अपना धर्म इन पर थोपने की कोशिश करी .
लेकिन अलग अलग नस्ल होने के कारण ब्राह्मणों ने इन्हें अपने शास्त्र नहीं पढ़ने दिये ना दूसरी हमलावर जातियों ने इन मूल निवासी शूद्रों के साथ रोटी बेटी का कोई नाता बनाया .
आज जिन्हें हम ओबीसी कह्ते हैं वो अन्य हमलावर जातियां हैं जो ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बाद भारत में आयीं .
ब्राह्मण और क्षत्रीय समुदायों द्वारा बाद में आने वाली हमलावर जातियां नीच मानी गयीं . और बाद में आने वाली जातियां भारत के मूल निवासियों से नफरत करते रहे .और उन्हें दास बना कर उनका आर्थिक शोषण करते रहे .
इस तरह भारत में सीढीदार जातिप्रथा शुरू हुई .
इस सीढ़ी में आज के शूद्र सबसे नीचे बन गये जबकि यह सबसे पुराने और सबसे मेहनती लोगों का समुदाय था .
इस तरह भारत का समाज आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक शोषण का सबसे बड़ा नमूना बन गया .
इस बीच भारत में अनेकों विचार धाराएँ जन्म लेती रहीं .
बुद्ध के कारण ब्राह्मणों का वेद का धर्म बुरी तरह हीन माना जाने लगा था .
आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य ने वेदान्त दर्शन का प्रतिपादन कर के और बौद्ध मठों का सामना करने के लिये उसी तर्ज पर ब्राह्मण धर्म को पुनर्जीवित करने के लिये चार शंकराचार्य पीठों की स्थापना करी .
भारत में मूर्ती पूजा भी इसके बाद ही शुरू हुई .
बुद्ध के काल तक भारत में मूर्तिपूजा नहीं थी .
सबसे पहले बुद्ध की मूर्ती की पूजा शुरू हुई थी.
दसवीं शताब्दी में अरबों का शासन भारत में आया .
ईसाइ धर्म प्रचारक थामस इससे पहले ही भारत में पहुँच चुके थे .
हिन्दू नाम का धर्म बहुत बाद में बना .
बाबर के पोते अकबर के काल में रामचरित मानस लिखी गई थी .
उस तक में कहीं हिन्दू शब्द का प्रयोग नहीं है .
ना ही तुलसीदास ने कहीं भी राम जन्म भूमि के गिराने की बात लिखी है .
लेकिन हिंदुत्व के तलवारबाज वहम फैलाते हैं कि हिन्दू धर्म हज़ारों साल पुराना है और राम मंदिर भी हज़ारों साल पुराना है और भारत में मुसलमानों के आने से पहले सब हिन्दू थे .
यह सरासर झूठ और बदमाशी पूर्ण प्रचार है .
असल में हिंदुत्व का यह प्रचार भारत की राजनीति पर कब्ज़ा करने के लिये परम्परागत शासक जातियों द्वारा भारत के गैर मुस्लिम गैर ईसाई लोगों को एक समूह में बाँध कर सत्ता अपने हाथ में रखने के षड्यंत्र के तहत इरादतन किया जाने वाला प्रचार है .
भारत में अनेकों समुदाय अनेकों धर्मिक विचारों को मानते थे .
असल में आज भारत में जो जातियां सत्ता में बैठी हैं वो मेहनतकश शूद्र मूल निवासी भारतीयों के प्रति आज भी घृणा भाव से भरी हुई हैं . और किसी भी कीमत पर आर्थिक और राजनैतिक सत्ता को अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहती .
इस घृणा का उदहारण आपको भारत की हर गली में, हर गाँव में, हर मंदिर में, हर मस्जिद में, हर चर्च में ,हर आफिस में और हर खेत में हो जाएगा .
भारतीय अर्थव्यवस्था , राजनीति , धर्म , इतिहास , समाजशास्त्र इसी घृणा से लिथड़ा हुआ है .
आज भी राजनीति में , नौकरियों में , व्यापार में , पुलिस में यही परम्परागत शासक जातियां काबिज है .
इसी आर्थिक राजनैतिक सत्ता को अपने हाथ में रखने के लिये भारत में साम्प्रदायिक और जातीय घृणा का खेल खेला जाता है .
इसलिये भारत के एतिहासिक सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक अन्याय को समाप्त कर एक नैसर्गिक समाज की स्थापना के लिये साम्प्रदायिकता और जातीयता को मिटाना ज़रूरी है .जिसमे मेहनत करने वाले विकास करें .
लेकिन बड़ी जातियां इसके लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं .
Just try to readjust the obc link. It seems illogical in your explanation.
ReplyDeleteRead thouroughly.
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