Thursday, July 11, 2013

कोर्ट को जनता के सर पर बैठ जाने की इजाज़त देना लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध होगा


भाई सज़ायाफ्ता को चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं मिलेगी तो इस बात से असली फायदा किसे मिलेगा ? बड़े बदमाश और ताकतवर के खिलाफ अव्वल तो कोई कोर्ट में जा नहीं सकता , फिर कोई गवाही नहीं दे सकता , ये सब भी हो जाय तो ताकतवर को सजा नहीं मिलती . अलबत्ता कमज़ोर को आराम से फंसाया भी जा सकता है , फर्जी गवाह भी खड़े किये जा सकते हैं और सजा भी दिलवाई जा सकती है . और इस तरह से ताकतवर नेताजी अपने गरीब और कमज़ोर प्रतिद्वंदी को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करवा सकते हैं . 
भाई असली अदालत तो जनता है . हो सकता है कोर्ट किसी बढ़िया आदमी को भी सजा दे  हो लेकिन जनता उसे बेगुनाह मानती हो और चुनाव में जिताना चाहती हो . कोर्ट कौन  है की वह जनता से उसके चुनने का हक छीन ले . 

गांधी जी को कोर्ट ने ही तो छह साल की राजद्रोह की सजा दी थी . लेकिन भारत की जनता जानती थी कि कोर्ट  गलती पर है और गांधी जी सही हैं .

कोर्ट तो हमेशा उस दौर की राजनीती सरकार और ताकतवर समाज के हिसाब से काम करता है . सुकरात को ज़हर पिलाना कानूनों और कोर्ट के मार्फ़त हुआ , गैलीलियो को सजा कोर्ट ने कानून के मुताबिक़ ही दी थी . ईसा मसीह को सूली की सजा कोर्ट ने ही दी थी . नेल्सन मंडेला को पच्चीस साल तक जेल में कोर्ट ने ही रखा था . 

आज भी भारत की  सरकार और व्यापारियों के लालच और गलत कामों और नीतियों का विरोध करने  के कारण हज़ारों  राजनैतिक बंदी जेलों में  हैं . 

इन राजनैतिक बंदियों को सजा भी हो सकती है . इसलिए इन लोगों को भविष्य में चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करना तो इनका राजनैतिक अधिकार छीनने का प्रयास है .

इसलिए कोर्ट की सजा के आधार पर किसी  के सार्वजनिक जीवन को समाप्त कर देना संविधान की भावना के ही विरुद्ध है .

इसलिए कोर्ट को जनता के सर पर बैठ जाने की इजाज़त देना लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध होगा . मैं कोर्ट के इस फैसले का विरोध करूंगा .

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