Tuesday, October 1, 2013

'माओवादियों के विरुद्ध अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी'



क्या आपको अभी भी सारकेगुड़ा का नाम याद है?

 छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का सारकेगुड़ा गाँव।  

अट्ठाईस जून २०१२ की रात को पुलिस और सीआरपीएफ ने बीजपूजा करते सत्रह आदिवासियों को गोली से उड़ा दिया था जिसमे छह बच्चे थे। 

आपको याद है उसी रात भारत के गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने इसे माओवादियों के विरुद्ध अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी बताया था। 

रमन सिंह ने भी इसे नक्सलियों के साथ मुठभेड़ बताया था।  

आपको याद होगा कि चिदम्बरम ने मारे गए तीन बड़े नक्सलवादियों के नाम भी बताये थे।  वो नाम थे ; महेश , नागेश और सोमलू। 

मेरे सामने पुलिस की चार्जशीट पडी है।  पुलिस की चार्जशीट में महेश और सोमलु  का नाम ही नहीं है।  

यानी चिदम्बरम ने झूठ बोला था ।  

नागेश नाम का एक बच्चा ज़रूर मारा गया था।  पर वो तो बस पन्द्रह साल का था।  

जिस नागेश को चिदम्बरम ने नक्सली कहा वह दसवीं कक्षा में पढता था। 

वह सरकारी हास्टल में रहता था। नागेश का हास्टल सीआरपीएफ कैम्प के बराबर में बना हुआ था।
 
नागेश पढ़ाई में बहुत तेज़ था।  उसे पढ़ाई में स्कूल में प्रथम आने के कारण सरकार ने विशाखापत्तनम की सैर पर सरकारी खर्चे पर भेजा था। 

पुलिस ने इसी बच्चे को नक्सलाईट बताया है और उस पर पुलिस पर हमला करने का सन नौ में मामला दिखाया है जबकि वह मात्र ग्यारह साल का था और सरकारी हास्टल में रहता था। 

सरकार ने दावा किया था कि वहाँ नक्सली भी मौजूद थे और पुलिस ने एक थ्रीनाटथ्री की रायफल भी बरामद की है।  

लेकिन कोर्ट में दाखिल की गयी चार्ज शीट  में किसी रायफल का कोई ज़िक्र नहीं है। कोई राइफल मिली ही नहीं।    

यानी पुलिस ने झूठ बोला था ।  

सरकार ने कहा था कि तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट जनता के सामने आ जायेगी।  लेकिन सवा साल बीत चुका है।  आज तक सरकार ने कोई रिपोर्ट नहीं दी है। 

आखिर लोगों को  जानने का हक है कि नहीं ? कि आखिर सरकार में बैठे लोग किंकी हत्याएं करवा रहे हैं ?

माल कमायें रमन सिंह और उसके लिए खून बहाया जाय बस्तर के आदिवासी बच्चों का? 

ये हम होने नहीं देंगे। 

हमारी जितनी भी ताकत है हम इसके खिलाफ लड़ेंगे। 

हम लड़ेंगे भी और जीतेंगे भी।

लालू का हश्र देखा न अभी आपने रमन सिंह जी ?

सबका दिन आना है एक दिन।   

आपका भी आएगा। 

इंतज़ार कीजिये। 

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