Wednesday, May 14, 2014

श्रद्धांजलि

ये वो दौर था 
जब रामभक्त बजरंगी 
सीता की योनी में पत्थर भरते हुए पकड़ लिए गए थे 
और धर्म सेना द्वारा हाथ कटे लव कुश 
का चित्र जन सामान्य के सम्मुख उजागर हो चूका था 

क्रांतिकारी कामरेडों की भद्द पिट चुकी थी
कामरेड अपने बच्चों की शादियों में जन्मपत्री मिलवाने
और उन्हें अमरीकी कंपनियों में नौकरियां दिलवाने के
काम में लगे हुए पाए गए .
कुछ कामरेड बलात्कारी कामरेडों की तरफदारी के आन्दोलन चलाते हुए मिले
और जनता द्वारा पूरी तरह देख लिए गए थे .

समाजवादी इतने परिवारवादी हो चुके थे कि समाज ने
उन्हें अपनी स्मृति से भी मिटा दिया था
अब वे बस नौजवानों को क्रांतिकारी आंदोलन न करने हेतु गरियाते रहते थे
लेकिन खुद कोई आन्दोलन नहीं करते थे .

गांधी की नेमप्लेट वाली पार्टी
अय्याशियों और क्रूरता की सारी हदों को पार कर चुकी थी
और अब वो बजरंगियों के विरोध के नाम पर
अपने वजूद को सलामत रखने की आख़िरी कोशिश कर रही थी

इसी बीच नयी पीढ़ी आ चुकी थी
ये पीढ़ी बेपरवाह थी
और किसी भी विचारधारा की गुलाम नहीं थी ,
ये नौजवान रोज़ ही अपने मुख्यालय को ध्वस्त करते
चलते थे

लेकिन इन लड़के लड़कियों के पास
पुरानी समस्याओं को चुटकियों में सुलझा लेने की गज़ब की शिफत थी
ये तो मसलों को जैसे खेल समझते थे

पुराने थके हुए बूढ़े विचारक
इसी लिए इस पीढ़ी से बहुत कुढते थे

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