कुछ देर पहले छत्तीसगढ़ के शहर जगदलपुर से सोनी सोरी का फोन आया कि गुरूजी हमने हिड़मे को जेल से ले लिया है , पुलिस के एसपी और आईजी वहाँ मौजूद थे . मुझे लगता है पुलिस कुछ और करने की योजना बना रही है .
मैंने धड़कते दिल से सोनी को दिलासा दिया कि जाओ बेटी आराम से उसे अपने घर ले जाओ , जो होगा देखा जाएगा .
कौन है ये हिड़मे ? पुलिस क्यों इसकी रिहाई से इतनी चिंतित है ?
आइये समय की रेखा पर कुछ पीछे को चलते हैं .
हिड़मे एक आदिवासी लड़की है . उस समय हिड़मे की उम्र उस समय करीब सोलह साल की थी . जिला सुकमा राज्य छत्तीसगढ़ के एक गाँव की रहने वाली . हिड़मे के माता पिता बीमारी से चल बसे . हिड़मे मौसी के घर में रहती थी .
थोडी सी ज़मीन थी जिस पर हिड़मे और उसकी मौसी खेती करते थे . खाने के लिए चावल खेत से पूरा हो जाता था . मौसीऔर हिड़मे महुआ के मौसम में महुआ के फूल बेच कर पास के बाज़ार में बेच देती थीं उससे साल भर के लिए कपड़े साबुन आदि का खर्चा निकल आता था .
सन दो हज़ार आठ की बात है .धान की फसल कट चुकी थी . अभी महुआ गिरने में थोडा और समय था . जनवरी का महीना था . हिड़मे के गाँव के पास के गाँव रामराम में मेला लगा था . हिड़मे भी अपनी मौसी और मौसेरी बहनों के साथ रामराम के मेले में पहुँच गयी .
मेले में हिड़मे ने रिबिन और चूड़ियाँ खरीदीं . इसके बाद आस पास से आये हुए लड़के लडकियां गोल घेरा बना कर नाच रहे थे . ढोल बज रहा था . हिड़मे ने भी घेरे में नाचने लगी . सभी लोग साथ में गा भी रहे थे .
नाचते नाचते हिड़मे का गला सूखने लगा . हिड़मे नाचना छोड़ कर थोड़ी दूर लगे हैंड पम्प से पानी पीने के लिए चल दी . पानी पीने के लिए हिड़मे ने जैसे ही हैंड पम्प का हत्था पकड़ा किसी ने हिड़मे का हाथ जोर से पकड़ लिया .
हिड़मे ने गुस्से से नजर उठा कर अपना हाथ पकड़ने वाले की तरफ देखा . अरे ये तो पुलिस वाले थे . कई पुलिस वालों ने हिड़मे को चारों तरफ से पकड़ कर घसीट कर मेले से बाहर खींच लिया . बाहर पुलिस का ट्रक खड़ा था . पुलिस वालों ने हिड़मे के हाथ पैर बाँध दिए और हिड़मे को ट्रक में फर्श पर फेंक दिया .
ट्रक चल पड़ा .
ट्रक जहां रुका वह पुलिस थाना था .
इसके बाद हिड़मे के साथ दरिंदगी शुरू हुई . एक थाने वालों का जी भर जाने के बाद हिड़मे को दूसरे थाने भेज दिया गया . वहाँ से जी भर जाने पर हिड़मे को तीसरे थाने में भेज दिया गया .
भयानक यातनाओं से हिड़मे की हालत मरने जैसी हो गयी थी . पुलिस वालों ने कहा यह थाने में ही ना मर जाय इसलिए अब इसे भी जेल में डाल दो . इस इलाके में आदिवासी लड़कियों को महीनों इस तरह रौंद कर नक्सली कह कर जेल में डालने का धंधा जोर शोर से चल रहा था .
जेल में डालने से पहले हिड़मे को अदालत में पेश करने की औपचारिकता की भी ज़रूरत थी .
लेकिन हिड़मे की हालत अदालत पहुँचने की नहीं थी . हिड़मे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया . कुछ दिन बाद हिड़मे को अदालत में पेश किया गया . पुलिस ने कहा कि हिड़मे ने तेईस सीआरपीएफ के जवानों की हत्या करी है . अदालत ने हिड़मे को जेल में डालने का हुकुम दे दिया . हिड़मे को जगदलपुर जेल में डाल दिया गया .
थाने में जो हिड़मे के साथ हुआ था वो हैवानियत की इन्तेहा थी . जेल पहुँचने पर हिड़मे का गर्भाशय बाहर निकल आया . हिड़मे जेल में किससे कहती ? उसे बस गोंडी भाषा आती थी . हिड़मे तो हिन्दी भी नहीं बोल सकती थी .
हिड़मे ने अपने शरीर से बाहर निकले हुए उस मांस के लोथड़े को दांत भींच कर फिर से शरीर के भीतर धकेल दिया .
हिड़मे के शरीर से लगातार खून बहता रहता था .
हिड़मे के शरीर से वो मांस का लोथड़ा बार बार बाहर आ जाता था .
एक दिन हिड़मे ने जेल में एक लड़की से कहा कि उसे कहीं से एक ब्लेड का टुकड़ा मिल सकता है क्या ?
अगले दिन उस लड़की ने हिड़मे को एक ब्लेड लाकर दे दिया .
हिड़मे के शरीर से गर्भाशय फिर से बाहर निकल आया था . हिड़में ने मॉस के उस लोथड़े को अपने शरीर से अलग करने का फैसला किया . सभी लडकियां बैरक से बाहर जा चुकी थीं . हिड़मे ने ब्लेड से गर्भाशय को काटने की तैयारी करी . तभी एक लड़की बैरक के भीतर आ गयी और हिड़मे की हालत देख कर जोर से चिल्लाई . बाकी की महिलायें भी जमा हो गयीं . हिड़मे से ब्लेड ले लिया गया . कुछ महिलाओं ने शोर मचा कर जेलर को बुला लिया . जेलर ने सोचा मेरी जेल में कोई औरत मर जायेगी तो खामखाँ मीडिया वाले शोर मचाएंगे . हिड़मे को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया .
हिड़मे का आपरेशन किया गया . हिड़मे को नौ टाँके आये .
आपरेशन के बाद हिड़मे को फिर से जेल भेज दिया गया .
इधर हिड़मे के खिलाफ़ पुलिस द्वारा बनाया गया फर्ज़ी मुकदमा आगे ही नहीं बढ़ रहा था .
पुलिस ने हिड़मे के खिलाफ़ दो औरतों और दो पुलिस वालों को गवाह बताया था . लेकिन वो दोनों औरतें कभी अदालत के सामने नहीं पेश करी गयीं . दोनों पुलिस वालों ने हिड़मे का किसी मामले में हाथ होने की जानकारी से इनकार कर दिया .
इसी बीच जेल में सोनी सोरी को भी डाल दिया गया था .
सोनी सोरी के साथ भी पुलिस वालों ने थाने में अत्याचार किया था .
खुद पुलिस अधीक्षक ने सोनी को बिजली के झटके दिए थे और सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर ठूंस दिए थे .
हिड़मे की हालत के बारे में सोनी सोरी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बताया .
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ओर वकीलों ने हिड़मे के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी .
लेकिन सरकार और अदालत आदिवासियों के मामलों में तो बिलकुल बेपरवाह रहती है .
क्योंकि देश भर में सभी मानते हैं कि आदिवासियों को तो आधुनिक विकास के लिए मार ही डाला जाना है .
मानवाधिकार वकील ने कहा कि अब तो सारी गवाहियां भी पूरी हो चुकी हैं अब तो हिड़मे की रिहाई का हुक्म दे दीजिए मी लार्ड
जज साहब ने कहा भी कि जहाँ सात साल जेल में रही है कुछ और महीने रह लेगी तो क्या हो जाएगा ?
हिड़मे कई और महीने जेल में पड़ी रही .
अंत में हिड़मे को जेल से रिहा करने का आदेश देना ही पड़ा .
आज सुबह हिड़मे जगदलपुर जेल से रिहा हो गई .
सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी हिड़मे को लेने जगदलपुर जेल पहुंचे .
हिड़मे का कोई अपराध नहीं था . सिवाय इसके कि वह एक लड़की थी , और बस्तर में वहाँ पैदा हुई थी जहां की ज़मीनों को सरकार अमीर कंपनियों के लालच के लिए छीनना चाहती है .
जब मैं यह सब लिख रहा हूँ और मैं हिड़मे का चेहरा अपनी आँखों के सामने लाने की कोशिश करता हूँ तो मेरे सामने मेरी अपनी बेटी का चेहरा आ जाता है .
और मैं घबरा कर बिना चेहरे वाली हिड़मे के बारे में लिखने लगता हूँ .
अभी इतना साहस हममे कहाँ है कि हम अपनी बेटी को हिड़मे की जगह रख कर सोच सकें ?
मैंने धड़कते दिल से सोनी को दिलासा दिया कि जाओ बेटी आराम से उसे अपने घर ले जाओ , जो होगा देखा जाएगा .
कौन है ये हिड़मे ? पुलिस क्यों इसकी रिहाई से इतनी चिंतित है ?
आइये समय की रेखा पर कुछ पीछे को चलते हैं .
हिड़मे एक आदिवासी लड़की है . उस समय हिड़मे की उम्र उस समय करीब सोलह साल की थी . जिला सुकमा राज्य छत्तीसगढ़ के एक गाँव की रहने वाली . हिड़मे के माता पिता बीमारी से चल बसे . हिड़मे मौसी के घर में रहती थी .
थोडी सी ज़मीन थी जिस पर हिड़मे और उसकी मौसी खेती करते थे . खाने के लिए चावल खेत से पूरा हो जाता था . मौसीऔर हिड़मे महुआ के मौसम में महुआ के फूल बेच कर पास के बाज़ार में बेच देती थीं उससे साल भर के लिए कपड़े साबुन आदि का खर्चा निकल आता था .
सन दो हज़ार आठ की बात है .धान की फसल कट चुकी थी . अभी महुआ गिरने में थोडा और समय था . जनवरी का महीना था . हिड़मे के गाँव के पास के गाँव रामराम में मेला लगा था . हिड़मे भी अपनी मौसी और मौसेरी बहनों के साथ रामराम के मेले में पहुँच गयी .
मेले में हिड़मे ने रिबिन और चूड़ियाँ खरीदीं . इसके बाद आस पास से आये हुए लड़के लडकियां गोल घेरा बना कर नाच रहे थे . ढोल बज रहा था . हिड़मे ने भी घेरे में नाचने लगी . सभी लोग साथ में गा भी रहे थे .
नाचते नाचते हिड़मे का गला सूखने लगा . हिड़मे नाचना छोड़ कर थोड़ी दूर लगे हैंड पम्प से पानी पीने के लिए चल दी . पानी पीने के लिए हिड़मे ने जैसे ही हैंड पम्प का हत्था पकड़ा किसी ने हिड़मे का हाथ जोर से पकड़ लिया .
हिड़मे ने गुस्से से नजर उठा कर अपना हाथ पकड़ने वाले की तरफ देखा . अरे ये तो पुलिस वाले थे . कई पुलिस वालों ने हिड़मे को चारों तरफ से पकड़ कर घसीट कर मेले से बाहर खींच लिया . बाहर पुलिस का ट्रक खड़ा था . पुलिस वालों ने हिड़मे के हाथ पैर बाँध दिए और हिड़मे को ट्रक में फर्श पर फेंक दिया .
ट्रक चल पड़ा .
ट्रक जहां रुका वह पुलिस थाना था .
इसके बाद हिड़मे के साथ दरिंदगी शुरू हुई . एक थाने वालों का जी भर जाने के बाद हिड़मे को दूसरे थाने भेज दिया गया . वहाँ से जी भर जाने पर हिड़मे को तीसरे थाने में भेज दिया गया .
भयानक यातनाओं से हिड़मे की हालत मरने जैसी हो गयी थी . पुलिस वालों ने कहा यह थाने में ही ना मर जाय इसलिए अब इसे भी जेल में डाल दो . इस इलाके में आदिवासी लड़कियों को महीनों इस तरह रौंद कर नक्सली कह कर जेल में डालने का धंधा जोर शोर से चल रहा था .
जेल में डालने से पहले हिड़मे को अदालत में पेश करने की औपचारिकता की भी ज़रूरत थी .
लेकिन हिड़मे की हालत अदालत पहुँचने की नहीं थी . हिड़मे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया . कुछ दिन बाद हिड़मे को अदालत में पेश किया गया . पुलिस ने कहा कि हिड़मे ने तेईस सीआरपीएफ के जवानों की हत्या करी है . अदालत ने हिड़मे को जेल में डालने का हुकुम दे दिया . हिड़मे को जगदलपुर जेल में डाल दिया गया .
थाने में जो हिड़मे के साथ हुआ था वो हैवानियत की इन्तेहा थी . जेल पहुँचने पर हिड़मे का गर्भाशय बाहर निकल आया . हिड़मे जेल में किससे कहती ? उसे बस गोंडी भाषा आती थी . हिड़मे तो हिन्दी भी नहीं बोल सकती थी .
हिड़मे ने अपने शरीर से बाहर निकले हुए उस मांस के लोथड़े को दांत भींच कर फिर से शरीर के भीतर धकेल दिया .
हिड़मे के शरीर से लगातार खून बहता रहता था .
हिड़मे के शरीर से वो मांस का लोथड़ा बार बार बाहर आ जाता था .
एक दिन हिड़मे ने जेल में एक लड़की से कहा कि उसे कहीं से एक ब्लेड का टुकड़ा मिल सकता है क्या ?
अगले दिन उस लड़की ने हिड़मे को एक ब्लेड लाकर दे दिया .
हिड़मे के शरीर से गर्भाशय फिर से बाहर निकल आया था . हिड़में ने मॉस के उस लोथड़े को अपने शरीर से अलग करने का फैसला किया . सभी लडकियां बैरक से बाहर जा चुकी थीं . हिड़मे ने ब्लेड से गर्भाशय को काटने की तैयारी करी . तभी एक लड़की बैरक के भीतर आ गयी और हिड़मे की हालत देख कर जोर से चिल्लाई . बाकी की महिलायें भी जमा हो गयीं . हिड़मे से ब्लेड ले लिया गया . कुछ महिलाओं ने शोर मचा कर जेलर को बुला लिया . जेलर ने सोचा मेरी जेल में कोई औरत मर जायेगी तो खामखाँ मीडिया वाले शोर मचाएंगे . हिड़मे को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया .
हिड़मे का आपरेशन किया गया . हिड़मे को नौ टाँके आये .
आपरेशन के बाद हिड़मे को फिर से जेल भेज दिया गया .
इधर हिड़मे के खिलाफ़ पुलिस द्वारा बनाया गया फर्ज़ी मुकदमा आगे ही नहीं बढ़ रहा था .
पुलिस ने हिड़मे के खिलाफ़ दो औरतों और दो पुलिस वालों को गवाह बताया था . लेकिन वो दोनों औरतें कभी अदालत के सामने नहीं पेश करी गयीं . दोनों पुलिस वालों ने हिड़मे का किसी मामले में हाथ होने की जानकारी से इनकार कर दिया .
इसी बीच जेल में सोनी सोरी को भी डाल दिया गया था .
सोनी सोरी के साथ भी पुलिस वालों ने थाने में अत्याचार किया था .
खुद पुलिस अधीक्षक ने सोनी को बिजली के झटके दिए थे और सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर ठूंस दिए थे .
हिड़मे की हालत के बारे में सोनी सोरी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बताया .
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ओर वकीलों ने हिड़मे के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी .
लेकिन सरकार और अदालत आदिवासियों के मामलों में तो बिलकुल बेपरवाह रहती है .
क्योंकि देश भर में सभी मानते हैं कि आदिवासियों को तो आधुनिक विकास के लिए मार ही डाला जाना है .
मानवाधिकार वकील ने कहा कि अब तो सारी गवाहियां भी पूरी हो चुकी हैं अब तो हिड़मे की रिहाई का हुक्म दे दीजिए मी लार्ड
जज साहब ने कहा भी कि जहाँ सात साल जेल में रही है कुछ और महीने रह लेगी तो क्या हो जाएगा ?
हिड़मे कई और महीने जेल में पड़ी रही .
अंत में हिड़मे को जेल से रिहा करने का आदेश देना ही पड़ा .
आज सुबह हिड़मे जगदलपुर जेल से रिहा हो गई .
सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी हिड़मे को लेने जगदलपुर जेल पहुंचे .
हिड़मे का कोई अपराध नहीं था . सिवाय इसके कि वह एक लड़की थी , और बस्तर में वहाँ पैदा हुई थी जहां की ज़मीनों को सरकार अमीर कंपनियों के लालच के लिए छीनना चाहती है .
जब मैं यह सब लिख रहा हूँ और मैं हिड़मे का चेहरा अपनी आँखों के सामने लाने की कोशिश करता हूँ तो मेरे सामने मेरी अपनी बेटी का चेहरा आ जाता है .
और मैं घबरा कर बिना चेहरे वाली हिड़मे के बारे में लिखने लगता हूँ .
अभी इतना साहस हममे कहाँ है कि हम अपनी बेटी को हिड़मे की जगह रख कर सोच सकें ?
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