Monday, March 20, 2017

कार्यकर्ताओं को जेल

प्रोफेसर जी एन साईबाबा, प्रशांत राही, हेम मिश्रा,पंडू नारोते और महेश तिर्के को गढ़चिरोली ने नक्सलियों की मदद करने की आरोप में उम्र कैद की सजा दी है,
इनमें से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साईबाबा चल फिर नहीं सकते, जन्म से व्हील चेयर पर हैं, हेम मिश्रा जेएनयू के छात्र हैं, प्रशांत राही उत्तरांचल के पर्यावरण कार्यकर्ता हैं बाकी दोनों कार्यकर्ता आदिवासियों के मानवाधिकारों की कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे,
अदालत ने इन सभी को उम्र कैद की सजा देते समय अपने फैसले में जो लिखा है वह बहुत खतरनाक है,
जज ने लिखा है कि नक्सलवादी आन्दोलन के कारण इस इलाके में व्यापारी निवेश नहीं कर पा रहे हैं जिसके कारण इस इलाके का विकास रुक गया है, मैं इन लोगों को उम्र कैद की सजा दे रहा हूँ कानून नें मेरे हाथ बाँध रखे हैं वरना मैं इन्हें और भी ज्यादा कड़ी सजा देता,
यानी जज को व्यापारियों की चिंता है, जज को संविधान में जनता को दिए गए मूल अधिकारों की चिता नहीं है ? आदिवासियों के जिन अधिकारों के लिए यह कार्यकर्ता आवाज़ उठाते हैं जनता के उन अधिकारों की रक्षा करना तो आदालत का काम होना चाहिए था,
लेकिन अब अदालत जनता के संवैधानिक अधिकारों के रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उम्र भर के लिए जेल में डाल रही है,
हांलाकि गढ़चिरोली कोर्ट का यह फैसला ऊपरी कोर्ट में टिकेगा नहीं, क्योंकि संविधान के मुताबिक़ आप किसी को उसके विचारों के कारण सज़ा नहीं दे सकते,
वरना तो हर सरकार अपनी विचारधारा के अलावा दूसरी विचारधारा के लोगों को जेल में डाल देगी,
अगर विचारधारा के अपराध में सज़ा दी जाने लगी तो भाजपा शासन में संघी विचारधारा के अलावा सभी विचारधारों के लोगों को अपराधी घोषित किया जा सकता है,
इसलिए संविधान विचारधारा के कारण किसी को सजा नहीं देता,
ऊपरी अदालत में अपील होने और ज़मानत होने तक इन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रहना पड़ेगा,
सरकार जनता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले लोगों में आतंक पैदा करना चाहती है,

यह देश आपका भी तो है ?

आप मानते हैं विकास का मतलब है औद्योगीकरण,
उद्योग का मालिक कौन होगा ?
अमीर,
मुनाफा किसकी जेब में जायेगा ?
अमीर की,
इस उद्योग के लिये ज़मीन किसकी ली जायेगी ?
गरीब की,
ज़मीन कैसे ली जायेगी ?
प्रेम से या सरकारी बंदूक के दम पर ?
सरकारी बंदूक के दम पर,
तो विकास का मतलब हो गया कि सरकारी बन्दूक के दम पर गरीब से ज़मीन छीन लो अमीर को दे दो,
इसे ही हम अहिंसक विकास कहते हैं,
इसे ही हम लोकतन्त्र कहते है,
इस तरह के विकास के लिये बन्दूक चलाने वाले राजनैतिक दलों को ही हमारा समर्थन और वोट मिलता है,
इसका मतलब है संसाधनों के लिये चलने वाले इस युद्ध में हम भी एक पक्ष हैं,
इस विकास को, इस राजनीति को और इस तरह के लोकतन्त्र को जनविरोधी मानने वालों को हम विकास विरोधी, लोकतन्त्र विरोधी और देशद्रोही कहते हैं ၊
प्रधानमंत्री ने लाल किले से बोला कि जो हमारे विकास का विरोधी है वही देश द्रोही है ၊
और विकास का मतलब है गरीब से छीन लो अमीर को दे दो ၊
आपने बंदूक लेकर सरकार को गरीब के दरवाजे पर भेज दिया है अब गरीब उसका सामना कैसे करे ?
अब गरीब अपनी ज़मीन कैसे बचाए ?
अब गरीब अपनी जिंदगी कैसे बचाए ?
अब गरीब अपनी बेटी की इज्जत आपके सरकारी बंदूकधारियों से कैसे बचाए ?
देशवासियों को ज़ल्दी से इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ लेना चाहिये,
हर देश के विकास का एक क्रम होता है,
पहले सभी लोग खेती करते हैं,
फिर कुछ लोग खेती में से निकल कर खेती के लिये औज़ार बनाने लगते हैं,
इस तरह छोटे उद्योग पैदा होते हैं,
फिर छोटे उद्योगों के लिये मशीने बनाने के लिये मझोले उद्योग जन्म लेते हैं,
फिर इन उद्योगों के लिये तकनीक और विज्ञान की ज़रूरत पड़ती है,
फिर वैज्ञानिक बनाने के विश्वविद्यालय बनते हैं,
फिर इन सब के लिये बीमा , बैंकिंग , हिसाब किताब , कम्प्युटर की ज़रूरत पड़ती है फिर उनका विकास होता है,
लेकिन अगर हम फावड़ा बनाने की इजाज़त भी टाटा को दे दें, और नमक भी वही टाटा बनाएगा, विश्वविद्यालय भी वही चलाएगा,
सुनारी का लुहारी का बढ़ई का सब काम वही टाटा करेगा तो जो लोग खेती से बाहर हो रहे हैं वो क्या करेंगे ?
जब इस देश में काम करने वाले करोड़ों हाथ बेरोजगार हैं तो बड़ी मशीने लगाने और रोज़गार घटाने की इजाज़त क्यों दी?
जब आप गरीबों से ज़मीने छीन कर बड़े उद्योगपतियों को सौंप देते हो तब आप उनके सामने यह शर्त नहीं रख सकते कि आपको इन उद्योगों में इस देश के लोगों को रोजगार भी देना पड़ेगा ?
हमारी ज़मीन भी ले लेंगे, मुनाफा भी कमाएंगे, हमें रोज़गार भी नहीं देंगे,
हमारी नदी भी गंदी कर देंगे, हमारी हवा भी ज़हरीली कर देंगे, हमारी सरकार और पुलिस इनकी जेब में पड़ी रहेगी,
जब हम इस सब के बारे में बोलेंगे तो हमें जेल में डाल दिया जायेगा, हमें नक्सली समर्थक कहा जायेगा, हमें विकास का विरोधी बताकर गालियां दी जायेंगी, हमें इस देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया जायेगा,
आप भी तो इस सब के बारे में जानिये,
यह देश आपका भी तो है,

मोदी ज़रूरी है

आप को मोदी को स्वीकार करना ही पड़ेगा . क्योंकि आपको विकास चाहिये और ऐसा विकास चाहिये जिसमे आपको शहर में ही बिना पसीना बहाए ऐशो आराम का सब सामान मिलता रहे . इस तरह के विकास के लिये आपको ज़्यादा से ज़्यादा संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों पर कब्ज़ा करना ही पड़ेगा . लेकिन तब करोंड़ों लोग जो अभी इन संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों के कारण ही जिंदा हैं आपके इस कदम का विरोध करेंगे . आपको तब ऐसा प्रधानमंत्री चाहिये जो पूरी क्रूरता के साथ आपके लिये गरीबों के संसाधन लूट कर लाकर आपकी सेवा में हाज़िर कर दे . इसलिये अब कोई लोकतांत्रिक टाइप नेता आपकी विकास की भूख को शांत कर ही नहीं पायेगा .इसलिये आप देखते रहिये आपके ही बच्चे मोदी को चुनेंगे . इसी विकास के लालच में ही आजादी के सिर्फ साठ साल बाद का भारत आदिवासियों के संसाधनों की लूट को और उनके जनसंहार को चुपचाप देख रहा है . 

क्रूरता को एक आकर्षक पैकिंग भी चाहिये . क्योंकि आपकी एक अंतरात्मा भी तो है . इसलिये आप अपनी लूट को इंडिया फर्स्ट कहेंगे . लीजिए हो गया ना सब कुछ ? 


कुछ लोगों को आज के इस परिणाम का अंदेशा आजादी के वख्त ही हो गया था पर हमने उनकी बात सुनी नहीं .
अब बस देखना यह है कि इस सब में खून कितना बहेगा ?

देशप्रेमी कौन होता है ?

आइये आज देशप्रेमी और देशद्रोही की परिभाषा पर साफ़ साफ़ बात कर लेते हैं,
पहली बात कि देश यानी क्या ?
देश का मतलब है देश की ज़मीन, पानी, हवा और जानवर और देश के लोग
तो इनसे प्यार करने वाला माना जाएगा देशप्रेमी,
देश के लोगों में भी देशप्रेमी सबसे कमज़ोर लोगों को सबसे ज्यादा प्यार करेगा,
जैसे घर में हम घर के सबसे छोटे सदस्य का सबसे ज्यादा ख्याल रखते हैं,
और देश के कमज़ोर लोग कौन हैं,
देश के सबसे कमज़ोर लोग देश के दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, गरीब, महिलायें, भिखारी, वेश्याएं, विकलांग हैं,
इन सब से प्यार करने वाला या करने वाली देशप्रेमी है,
तो जो लोग आदिवासियों से प्यार करते हैं और उन पर अत्याचार करने वाली सरकार से लड़ रहे हैं वो देशप्रेमी हैं,
जो आदिवासियों यानी देशवासियों को मारने वाली पुलिस का समर्थन करते हैं वे लोग देशद्रोही हैं,
जो लोग जंगल पहाड़ और नदियों को प्रदूषित करने वाले उद्योगपतियों का विरोध करते हैं वे लोग सच्चे देशप्रेमी हैं,
जो देश के जंगलों, पहाड़ों और नदियों को बर्बाद करने वाले उद्योगपतियों का समर्थन करते हैं वे देशद्रोही हैं,
मैं अनेकों देशप्रेमियों को पहचानता हूँ,
उनमें से एक है उमर खालिद जो जेएनयू का छात्र है,
उमर खालिद बस्तर के आदिवासियों की ज़िन्दगी, उनके जीवन और उनकी तकलीफों पर पीएचडी की पढ़ाई कर रहा है,
जेएनयू के छात्र देशवासियों की तकलीफों पर आवाज़ उठाते रहते हैं,
युवा पीढी को ऐसा ज़रूर करना चाहिए,
यही राष्ट्र निर्माण का तरीका है,
लेकिन भाजपा जो कि बड़े पूंजीपतियों के चंदे से चुनाव जीती है उसे जेएनयू के छात्रों की इस सक्रियता से परेशानी हो रही थी,
क्योंकि चुनाव में लिए चंदे के बदले पूंजीपतियों को ज़मीनें सौंपनी थीं,
इसलिए एक बेईमान चैनल जी टीवी के साथ मिलीभगत करके एक फर्जी विडिओ के बहाने से सरकार नें जेएनयु के तीन युवा नेताओं को फर्जी मुकदमें में फंसाया और जेल में डाल दिया,
लेकिन अदालत में सरकार की पोल खुल गयी और इन तीनों छात्रों को रिहा कर दिया गया,
लेकिन चूंकि भाजपा मुसलमानों के नाम पर हिन्दुओं को डरा कर चुनाव जीतती है,
इसलिए भाजपा नें मुस्लिम होने के कारण उमर खालिद को देशद्रोही कह कर बदनाम करने की कोशिश करी,
यहाँ तक कि भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह नें एक फर्जी ट्वीट का हवाला देकर उमर खालिद का सम्बन्ध पकिस्तान तक से बता दिया,
हांलाकि बाद में राजनाथ सिंह के झूठ की भी पोल खुल गयी,
लेकिन देश भर में उमर खालिद को बुरी तरह बदनाम कर के राजनैतिक फायदा उठाने का काम भाजपा और उसके साम्प्रदायिक संगठनों ने बंद नहीं किया,
पिछ्ले दिनों जब उमर खालिद को दिल्ली विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ की समस्या पर बोलने के लिए बुलाया गया था तो एबीवीपी के गुंडों ने उस सभा पर ही हमला बोल दिया,
यह हमला इस बात का सबूत था कि निर्दोष उमर के खिलाफ किस तरह बिना कारण नफरत का माहौल बनाया गया है,
भारत के नौजवानों को अपनी ऑंखें और दिमाग खुला रखना पड़ेगा,
उन्हें समझना ही चाहिए कि कौन सी बात जनता और पर्यावरण के हित में है और कौन लोग हैं जो हमें बेवकूफ बना कर हमारे संसाधनों को लूट कर अमीर बनते जा रहे हैं,
अगर नौजवान एक दुसरे के साथ जाति और मज़हब के आधार पर लड़ते रहेंगे तो भारत को मुट्ठी भर अमीर लूटते रहेंगे और देश के करोड़ों लोग हमेशा गरीब और बदहाल रहेंगे,
देशप्रेमी हो तो देश के भले का सोचो,
मेरा ख्याल है अब आप सब समझ गए होंगे कि देशप्रेमी कौन होता है ?

विकास की करूण कहानी

कम उपभोग करने वाला विकसित या ज्यादा उपभोग करने वाला विकसित ?
- ज्यादा उपभोग करने वाला,
कम पैसे कमाने वाला विकसित या ज्यादा पैसे कमाने वाला विकसित ?
- ज्यादा पैसे कमाने वाला,
मशीन से ज्यादा मुनाफा होता है या हाथ से ?
- मशीन से
मशीन का मालिक कौन होता है, अमीर या गरीब ?
- अमीर
मशीन प्राकृतिक साधनों में से उत्पादन करती है या खुद कुछ बना सकती है ?
- मशीन प्राकृतिक साधनों से ही उत्पादन कर सकती है,
एक पहाड़ के नीचे खनिज हैं तो उस पहाड़ को वहाँ रहने वाले लोग आदिवासी खनिज को खोदेंगे या महंगी वाली खुदाई वाली मशीन का अमीर मालिक ही उस पहाड़ के खनिज को निकालेगा ?
- महंगी मशीन खरीदने की हैसियत रखने वाला पूंजीपति ही खोदेगा,
तो उस पहाड़ के नीचे के खनिज का मालिक कौन ?
- जिसके पास मशीन है जैसे टाटा अडानी या जिंदल,
अब पहाड़ का मालिक कौन ?
- अब मशीन का मालिक ही पहाड़ का मालिक है,
यानि पहाड़ पर रहने वाले उस पहाड़ के मालिक नहीं हैं ?
अब उस पहाड़ पर रहने वाले मूल निवासी अगर मशीन के मालिक को पहाड़ ना खोदने दें तो सरकार किसका साथ देगी ? मशीन के मालिक का या पहाड़ के निवासियों का ?
- मशीन के मालिक का,
पुलिस किसकी मदद करेगी ? मशीन के मालिक की या पहाड़ के मूल निवासियों की ?
- मशीन के मालिक की,
विकसित समाज किसकी तरफ है ? मशीन के मालिक की तरफ या पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ ?
- मशीन के मालिक की तरफ,
हिसाब किताब , बैंक , कम्प्यूटर , बीमा , यातायात किसके लिये चलते हैं ? मशीन के मालिक पूंजीपति के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
- मशीन के मालिक पूंजीपति के लिये,
सारे आफिस, जहाज, रेलें , कालेज , किसके लिये काम करते हैं ? मशीन के मालिक के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
- मशीन के मालिक के लिये,
यानि सारे पढ़े लिखे , विकसित लोग , सरकार , पुलिस सब मशीन के मालिक की तरफ हैं ? और कोई भी प्रकृति के मालिक उस पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ नहीं है ?
यही विकास की दुःख भरी कहानी है,
यह प्रकृति पर समाज के अधिकार को नकारती है,
यह पैसे को हर चीज़ का मालिक स्वीकार करती है,
यह हमारे गैरज़रूरी उपभोग और अय्याशी के अपराध को जायज़ बना देती है,
यह हमें प्रकृति का अंग नहीं बल्कि प्रकृति का मालिक मानने को जायज़ करार देती है,
इस से हम संसाधनों का बराबर बंटवारा,
अगली पीढी के लिये संसाधनों की रक्षा,
सुख का बराबर वितरण जैसे सारे सामजिक नियमों को मानने से बच जाते हैं,
यह विकास, असामाजिक, असभ्य, क्रूर और अतार्किक है, इसे आप किसी भी तर्क से सही सिद्ध कर ही नहीं सकते,
इस तरह के विकास से हिंसा और प्रकृति का विनाश ही निकलेगा,
इस तरह का विकास इंसानी नस्ल को ही समाप्त कर देगा,
मैंने लिख दिया है ताकि सनद रहे,

यह दौर बीत जाएगा

यह ऐसा समय है जब समाज इंसानियत और तर्क की बात करने वाले हार रहे हैं और पूंजीवादी युद्धवादी राष्ट्रवादी तेज़ी से सारी दुनिया में अपने पैर पसारते जा रहे हैं,
ये ऐसा समय भी है जब सारी दुनिया को एक मानने वाले बेईज्ज़त किये जा रहे हैं और अपने मुल्क को महान बनाने के नारे लगाने वाले लोग सत्ता के सर पर बैठ गए हैं,
ये वो दौर है जब इंसानियत की बात, सहनशीलता और तर्कशीलता भयानक षड्यंत्र से जुड़े शब्द माने जा रहे हैं,
दूसरों का ख्याल किये बिना अपना ऐश ओ आराम बढ़ाते जाने को विकास मान लिया गया है,
ऐसे समय में कौन सी राजनीति लोकप्रिय होगी आप खुद सोचिये ?
एक इंसान आपसे कहता है कि तुम्हारा धर्म सबसे अच्छा है
तुम्हारी जाति सबसे ऊंची है
ऐय्याशी से जीना और किसी बात की परवाह ना करना सबसे अच्छा जीवन है
आओ अपने प्रतिद्वंदी धर्म वाले को मार दें,
आओ पड़ोसी मुल्क को मज़ा चखा दें,
दूसरी तरफ दूसरा इंसान आपसे कहता है कि सिर्फ आपका धर्म सबसे अच्छा नहीं है
बल्कि दुनिया के सभी धर्म एक जैसे हैं
और सभी धर्म पुराने और अधूरे हैं
इंसान को नई जानकारियों और खोजों से खुद के दिमाग को तरोताजा बनाने में लगे रहना चाहिए ,
वह आपसे यह भी कहता है कि जाति एक अन्याय है
और आपकी ऊंची हैसियत असल में इक ज़ुल्म है
जिसे आपको तुरंत छोड़ना पड़ेगा,
वह इंसान यह भी कहता है कि आपकी ज़रुरत के लिए तो प्रकृति के पास है,
लेकिन किसी की भी ऐयाशी के लिए प्रकृति के पास संसाधन नहीं है,
प्रकृति ने सब कुछ सबके लिए बराबर दिया है,
और अगर आप दुसरे से ज्यादा के मालिक बनने की कोशिश करेंगे तो आप दुसरे के हिस्से का छीन लेंगे,
और इससे युद्ध होगा,
इसलिए सादगी से रहिये,
तो आप पहले वाले इंसान को वोट देंगे या दुसरे वाले इंसान को ?
ज़ाहिर है आप पहले वाले इंसान को वोट देंगे,
लेकिन वह इंसान आपको नकली धर्म दे रहा है,
वह आपकी पृथ्वी को नष्ट कर देगा,
वह दुनिया को युद्ध की तरफ ले जाएगा,
लेकिन आप उसे ही पसंद कर रहे हैं,
क्योंकि वह आपको खुश कर रहा है,
जबकि दूसरा इंसान आपकी अय्याशियाँ कम कर के आपको दूसरों के लिए जीना सिखा रहा है,
दूसरा इंसान पूरी दुनिया की बात बता रहा है,
लेकिन आप दुसरे इंसान को वोट कतई नहीं देंगे,
इरोम शर्मिला इसीलिये हारी,
सोनी सोरी, मेधा पाटेकर, दयामनी बारला इसीलिये हारी,
आंबेडकर साहब इसीलिये हारे,
राम मनोहर लोहिया हारे,
सुकरात को ज़हर पीना पड़ा,
जीसस को सूली गांधी को गोली इसीलिये मिली,
जबकि हत्यारे, दंगाई, बलात्कारी लाखों वोटों से जीते,
आप अपना आजका सुख चाहते हैं,
आपको समाज को आगे ले जाने वाले विचारों को आगे बढाने की फ़िक्र नहीं है,
आप दुनिया के भूखों औए पर्यावरण के लिए अपनी अय्याशी में कटौती के लिए तैयार नहीं हैं,
यही वजह है सभी अच्छी विचारधाराओं की हार की,
और मक्कारों और लुटेरों की जीत की,
ए दुनिया को बेहतर बनाने वाले मेरे साथियों,
ज़रा भी मायूस ना होना,
तुम हारे नहीं हो,
न कभी हारोगे,
तुम में से होकर दुनिया की बेहतरी की उम्मीद बहती है,
इसे बहने देना,
यह उम्मीद तुम में से गुज़र कर नयी नस्लों तक का सफर करेगी,
ये दुनिया गर बचेगी,
तो उसे बचाने की कोशिश करने वालों में तुम शुमार होगे,
इसी में सबर है कि हम इसे बिगाड़ने वालों में शामिल नहीं हैं

कौन सी राजनीति आपको चाहिए ?

राजनीति दो तरह की हो सकती है,
पहली असली राजनीति,
असली राजनीति का मतलब है जनता की समस्याओं को दूर करने वाली राजनीति,
जैसे रोज़गार, शिक्षा, मजदूरों को शोषण से मुक्ति, किसान की बेहतरी, महिलाओं की समानता, जाति, सम्प्रदायवाद से समाज को मुक्त करने की राजनीति वगैरह,
एक दूसरी राजनीति होती है मूर्ख बनाने वाली राजनीति,
उस राजनीति में किसी एक धर्म की इज्ज़त के नाम की राजनीति होती है,
कुछ जातियों की श्रेष्ठता को आधार बना लिया जाता है, फर्जी राष्ट्रवाद के नारे लगाए जाते हैं, काल्पनिक दुश्मन खोजे जाते हैं, फालतू में नफरत फैलाई जाती है, सेना के नाम पर उत्तेजना का निर्माण किया जाता है, कुछ सम्प्रदायों को दुश्मन घोषित किया जाता है,
पहली वाली राजनीति से समाज की प्रगति होती है, जीवन सुखमय होता जाता है,
लेकिन दूसरी वाली राजनीति से समाज में भय, नफरत और हिंसा बढ़ती ही जाती है,
दूसरी वाली राजनीति में लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दे पर काम नहीं होता सिर्फ जुमले छोड़े जाते हैं,
दूसरी वाली राजनीति का एक लक्षण यह है कि इसमें धीरे धीरे कट्टरपन बढ़ता जाता है, नए गुंडे पुराने गुंडों को उदारवादी बता कर सत्ता अपने हाथ में लेते जाते हैं, और धीरे धीरे पूरी तरह मूर्ख और क्रूर नेता सबसे बड़ा बन जाता है,
इसके बाद इस राजनीति का निश्चित अंत होता है,
क्योंकि हिंसा तो नाशकारी है ही, यह आग तो सभी को जलाती है,
मान लीजिये भारत में संघ की मनमानी चलने दी जाय तो ये ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेंगे ?
ये मुसलमानों ईसाईयों, कम्युनिस्टों, सेक्युलर बुद्धिजीवियों, को मिलाकर मार ही तो डालेंगे ?
बुरे से बुरे हाल में ये भारत में आठ दस करोड़ लोगों को मार डालेंगे,
लेकिन उससे ना तो दुनिया से मुसलमान समाप्त होंगे ना इसाई, ना कम्युनिस्ट विचारधारा समाप्त होगी ना ही नए बुद्धीजीवी पैदा होने बंद हो जायेंगे,
लेकिन उसके बाद हिंदुत्व की राजनीति ज़रूर हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी,
उसके बाद भारत ज़रूर दुनिया के अन्य सभी देशों की तरह ठीक से अपना काम काज करता रहेगा,
हिटलर ने यही तो किया था,
उसने खुद को आर्य कहा और अपनी नस्ल को दुनिया की सबसे श्रेष्ठ नस्ल घोषित किया,
इसके बाद हिटलर ने यहूदियों को अपने देश के लिए समस्या घोषित किया,
हिटलर ने एक करोड़ बीस लाख औरतों बच्चों जवानों बूढों को घरों से निकाल निकाल कर बड़े बड़े घरों में बंद कर के ज़हरीली गैस छोड़ दी,
उसने भी सिर्फ यहूदियों को नहीं मारा, बल्कि कम्युनिस्टों, बुद्धिजीवियों, उदारवादियों, विरोधियों, समलैंगिकों सबको मारा,
अंत में हिटलर ने खुद को गोली मार ली,
हिटलर के देश जर्मनी के दो टुकड़े हो गए थे,
आज भी हिटलर के देश के लोग हिटलर का नाम लेने में हिचकिचाते हैं,
और अगर नाम लेते हैं तो शर्म और नफरत के साथ लेते हैं,
अगर भारत में भी साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद की नकली राजनीति इसी तरह बढ़ेगी,
तो यह अपने अंत की और ही जा रही है यह निश्चित है,
भाजपा राजनीति के जिस रास्ते पर बढ़ रही है वह ज्यादा दूर तक नहीं ले जाता,
थोड़े ही दिन में इस तरह की राजनीति का खुद ही अंत हो जाता है,
अपनी चिता में जलकर एक नया भारत निकलेगा
ये ज़रूर है कि वह राजनैतिक तौर पर एक राष्ट्र बचेगा या सभी प्रान्त नए राष्ट्र बन जायेंगे यह नहीं कहा जा सकता,

हिंसा के कारणों की खोज

आज जो नक्सली हैं वो एक दिन मर जायेंगे . आज जो पुलिस हैं वो भी मर जायेंगे .
आज जो अमीर हैं वो भी मर जायेंगे . आज जो गरीब हैं वो भी मर जायेंगे .
फिर से नए बच्चे जन्म लेंगे . उनमे से फिर कुछ बच्चे जन्म से ही गरीब होंगे . उनमे से कुछ बच्चे जन्म से ही अमीर होंगे . उनमे से कुछ बच्चे नक्सली बनेंगे . कुछ बच्चे पुलिस बनेंगे .
और ये हिंसा इसी तरह चलती रहेगी .
क्या आप इस हिंसा को समाप्त करना चाहते हैं ?
तो क्या आपने एक वैज्ञानिक की तरह इन हिंसा के कारणों की खोज करने की कोशिश करी है ?
क्योंकि अगर आप हिंसा के कारणों को ही नहीं जानते तो उसका इलाज कैसे जानेंगे ?
हो सकता है हिंसा के कारणों के विश्लेषण के परिणाम आपकी पसंद के ना हों .
लेकिन वैज्ञानिक तो ये नहीं सोचता कि मैं अपनी शोध के किसी निष्कर्ष को तब स्वीकार करूँगा जब वो मेरी पसंद का होगा .
इसी तरह सच खोजते समय आपकी पसंद और नापसंद का कोई महत्व ही नहीं है .
जैसे अगर आप बड़ी जात के हैं, पैसे वाले हैं और शहर में रहते हैं तो आप पुलिस के पक्ष में ही बात सुनना चाहते हैं .
लेकिन अगर आपका जनम बस्तर के एक गाँव में हुआ है और आपका घर जला दिया गया है आपकी बहन से बलात्कार हुआ है आपके भाई को पुलिस ने मार दिया है तो आप पुलिस के खिलाफ ही सोचेंने को मजबूर होंगे .
आपका जन्म हिंदू के घर में होगा तो आप मुसलमान को नापसंद करेंगे .
आपका जन्म मुसलमान के घर में होगा तो आप हिंदू को नापसंद करेंगे .
ध्यान से देखिये हमारी सोच हमारी परिस्थिति में से निकल रही है .
इसलिए आप भी अब ध्यान दीजिए कि कहीं आप की भी सोच पर भी तो आपकी जाति सम्प्रदाय और आर्थिक वर्ग का प्रभाव तो नहीं है ?
क्योंकि इन सब से से आज़ाद होकर एक वैज्ञानिक की तरह सोचना ही आपको सच्चा चिंतक और विश्लेषक बना सकता है .
सच को भी आप तभी समझ सकेंगे .
इसलिए अगर आप को हिंसा की समस्या का समाधान करना है
तो अपनी जाति, सम्प्रदाय और आर्थिक वर्ग के खोल से बाहर आकर सोचना शुरू कीजिये .
हिंसा की समस्या की सच्ची समझ ही हमें सच्चे समाधान तक पहुंचा सकती है .
नेताओं के पिछलग्गू मत बनिए , उनके विश्लेषण स्वीकार मत कीजिये. अपनी बुद्धी का इस्तेमाल कीजिये . जागरूक नागरिक बनिए . समाज को हिंसा मुक्त बनाइये .
आने वाली पीढ़ियों को एक अच्छी दुनिया देकर जाइए .

Monday, December 5, 2016

प्रदूषण


ऐसा कीजिये, पहले तो किसानों की ज़मीनें छीन कर कारखाने लगाइये ,
आदिवासियों का जंगल काट डालिये ,
खूब सारी कारें खरीदिये,
अलमारियां भर के कपड़े, महंगी शराबें, महंगे परफ्यूम, एयर कंडीशन्ड घर बढ़ाते जाइये ,
जो भी कोई सादगी, ज़रूरत भर उपभोग, मानवाधिकार, जंगल की रक्षा की बात करे ,
उसे नक्सली कह कर जेल में डाल दीजिये, गुप्तांगों में पत्थर भरवा दीजिये, और पत्थर भरने वाले को राष्ट्रपति से इनाम दिलवा दीजिये,
हराम की कमाई से खूब सारे पटाखे खरीदिये,
जो पटाखें ना जलाने की अपील करें उसे हिन्दु विरोधी कह कर गालियां बकिये,
फिर जब हवा में ज़हर घुल जाये , बच्चे सांस ना ले पा रहे हों ,
तो केजरीवाल को गालियां बकिये,
आप की दुर्गति के जिम्मेदार आप खुद हैं ,
हम तो कब से बोल रहे हैं और मार खा रहे हैं ,

आंख मूंद कर चलना अधर्म है

मेरे परदादा का नाम बिहारी लाल शर्मा था,
वो उत्तर प्रदेश में महर्षि दयानन्द के प्रथम शिष्य थे ,
महर्षि दयानन्द मुजफ्फर नगर मे हमारे घर मे ठहरते थे ,
उत्तर प्रदेश आर्य समाज भवन लखनऊ मे लगी संगमरमर की तख्ती पर हमारे परदादा का नाम सबसे ऊपर लिखा हुआ है,
हमारे घर पर नियमित हवन होता था ,
इस सब के बावजूद मैं कहता हूँ ,
कि हवन करने से वायु प्रदूषण कम नहीं होता ,
हवन करने से वातावरण शुद्ध नहीं होता ,
बल्कि आग मे कुछ भी जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ,
मैं चाहता हूँ मैं सच्चाई और विज्ञान को जानूं ,
सच्चाई को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके बाप दादा क्या मानते थे ,
सत्य ही धर्म है ,
पुरानी लकीर पर आंख मूंद कर चलना अधर्म है ,

नंदिनी


नन्दिनी सुन्दर से मैं सन 2005 में पहली बार मिला था ,
नन्दिनी सुंदर दन्तेवाड़ा में हमारे आश्रम में आती रहती थीं,
मैं और मेरी पत्नी और हमारे आदिवासी साथी आश्रम बना कर काम कर रहे थे ,
सरकार ने सलवा जुडुम अभियान चलाया था ,
सरकार ने साढ़े छ्ह सौ गांव जला दिये थे ,
सैकड़ों आदिवासी महिलाओं से सरकारी फौजों ने बलात्कार किये थे ,
हज़ारों निर्दोष आदिवासी मार डाले गये थे ,
हज़ारों बेगुनाह आदिवासी स्त्री पुरुषों को जेलों में ठूंस दिया गया था,
नन्दिनी ने पहले बस्तर के आदिवासियों पर शोध करी थी ,
आदिवासियों पर इस सरकारी हमले के खिलाफ नन्दिनी ने आवाज़ उठाई ,
सुप्रीम कोर्ट में सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया ,
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कदम को संविधान विरोधी बताया ,
सलवा जुडुम को बन्द करना पड़ा ,
अभी केस चल ही रहा था ,
पुलिस ने फिर से तीन गांवों को जला दिया ,
सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराई ,
सीबीआई ने कहा आग पुलिस ने लगाई ,
उस समय वहां का पुलिस अधीक्षक कल्लूरी था ,
खुद को फंसता देख कल्लूरी ने चाल खेली ,
एक गांव में एक हत्या हुई ,
पुलिस नें उस मामले में नन्दिनी और उनके साथी कार्यकर्ताओं के नाम पर रिपोर्ट लिख कर मारे गये व्यक्ति की पत्नी का दस्तखत करवा लिया ,
कल्लूरी इस तरह के कामों में बहुत बदनाम है ,
कल्लूरी ने ही सोनी सोरी के चेहरे पर कैमिकल अटैक करवाया था ,
एक बार पहले भी पुलिस ने नन्दिनी को फंसाने की कोशिश करी थी ,
पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा ने पत्रकारों को बुला कर एक फोटो दिखाया था,
उस फोटो में नन्दिनी को नक्सली ड्रेस में नक्सली समूह के साथ दिखाया था,
नन्दिनी ने एसपी राहुल शर्मा को कानूनी चुनौती दी थी,
एसपी राहुल शर्मा ने नन्दिनी से लिखित माफी मांगी थी ,
एक बार पुलिस थाने में नन्दिनी का कैमरा छीन लिया गया था,
जो कई महीने बाद वापिस मिला था ,
पुलिस आवाज़ उठाने वालों पर कैसे हमला करती है यह आप समझ सकते हैं,
सोचिये बस्तर के आदिवासियों को यह पुलिस कैसे फर्जी मामलों में फंसाती होगी ?

मोदी हिन्दुओं का नेता

आप आज़ाद हैं इसलिए आप किसी को भी अपना नेता मान सकते हैं .
मोदी को भी मान सकते हैं .
लेकिन सोचिये अगर आपके साथ रहने वाले मुसलमान भी दो हज़ार हिंदुओं को मारने वाले किसी मुसलमान को जान बूझ कर अपना नेता चुन लें और उसे अपना शेर नेता ,और उसके भाषणों को शेर का गरजना और उसे वीर नेता कहने लगें तो आप के मन में मुसलमानों के बारे में कैसा भाव आयेगा ?
ईमानदारी की बात तो यही है कि हमने मोदी को मुसलमानों को सबक सिखाने की उसकी योग्यता के कारण ही अपना वीर नेता माना है .
हिंदुओं द्वारा मोदी को अपना नेता मान लेने से मुसलमानों के मन में हिंदुओं के प्रति डर और संदेह नहीं पैदा होगा क्या ?
भारत में पच्चीस करोड मुसलमान हैं . इन्हें ना तो आप भारत से भगा सकते हैं ना ही इन्हें डरा कर रख सकते हैं .
मोदी जैसे व्यक्ति को अपना नेता चुनना हिंदुओं के बारे में मुसलमानों के मन में दूरी ही पैदा कर रहा है .
भारत एक नया देश है . इसकी एकता और अखंडता इसके सभी समुदायों के मिल कर प्रेम से रहने पर ही निर्भर करेगी .
कोई एक समुदाय अगर दुसरे समुदायों को डरा कर रखने की कोशिश करेगा तो देश टूट भी सकता है .
इसे एक रखने की जिम्मेदारी तो सभी की है . ऐसा नहीं हो सकता कि आप तलवारें हाथ में लेकर नंगा नाच नाचें और मुसलमान इस देश को एक रखने के लिए आपसे पिटते ही रहें .
अभी भी वख्त है .

मूर्ख प्रजाति



एक बाबा का पूरे पेज का विज्ञापन अखबार में छ्पा है ,
उसमें कुछ लोगों के नाम से किन्हीं " ब्रह्म ऋषि कुमारस्वामी" के चमत्कारों का प्रचार किया गया है ,
इसमें बाबा के आशीर्वाद से परीक्षा में पास होने से लेकर कब्ज़ ठीक होने तक के चमत्कारों का दावा किया गया है ,
इन बाबा जी की प्रशंसा में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और हिमाचल के महाभ्रष्ट मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा कहे गये वक्तव्य छापे गये हैं ,
भारत का संविधान कहता है राज्य अपने नागरिकों में वैज्ञानिक समझ बढ़ाने के लिये काम करेगा ,
जादू टोने से बीमारियां ठीक करने का दावा करना कानूनी अपराध है ,
लेकिन अगर अपराधी की प्रशंसा भारत का प्रधानमंत्री ही करेगा ,
तो उस अपराधी को कौन रोक सकता है ?
हिन्दुओं तुम्हें धर्म की आड़ में महामूर्ख बनाया जा रहा है ,
इससे तुम्हारा या तुम्हारी सन्तानों का भला नहीं हो रहा ,
बल्कि तुम्हारी सन्तानों को बेवकूफ, नफरती और क्रूर बनाया जा रहा है ,
तुम्हारे दुश्मन मुसलमान, इसाई या कम्युनिस्ट नहीं है ,
तुम्हारे और तुम्हारी सन्तानों के असली दुश्मन ये धर्मगुरू और साम्प्रदायिक नेता हैं ,
आंखें खोलो ,
खुद को दुनिया की मूर्ख प्रजाति सिद्ध मत करो ,

युद्ध का विरोध

भाजपा का चुनाव जीतने का नोटबन्दी का यह हथकण्डा फेल होगा ,
चुनाव जीतने के लिये भाजपा के पास दो हथकण्डे बचेंगे ,
पाकिस्तान से युद्ध या हिन्दु मुस्लिम दंगा,
लेकिन जो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को पसंद करने वाले लोग हैं ,
उनके लिये समाज को बचाने के लिये कुछ करने का सही समय है,
अगर समाज को तोड़ने वाली इस पार्टी का कोई विकल्प नहीं है ,
तो अब आप ही विकल्प बन जाइये ,
अपने शहर में दो मुद्दों पर जनमत बनाइये ,
युद्ध नहीं शान्ति,
सभी लोगों के बीच एकता ,
यह सन्देश बच्चों और युवाओं के द्वारा हवा में फैलाने का काम करना है ,
स्कूल कालेजों में इन दो विषयों पर निबन्ध लेखन और चित्र बनाने की प्रतियोगितायें आयोजित करिये,
पहले लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष लोगों और संगठनों की बैठक बुलाइये ,
सामने खड़ी चुनौती और अपनी रणनीति का प्रस्ताव रखिये ,
समय देने वाले , दौड़भाग करने वाले ,
गाड़ी, पर्चे छपाई , बैनर ,पुरस्कार की व्यवस्था करने वाले लोगों को सहमत कीजिये ,
बड़े स्कूल , कालेजों में युद्ध के क्या नुकसान होते हैं और एकता के क्या लाभ हैं , विषयों पर निबन्ध और पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता करवाइये ,
हर स्कूल और कालेज में से 1O सबसे अच्छे निबंध और पोस्टर चुन लीजिये ,
शहर के मैदान में सभी प्रतिभागियों को बुलाइये ,
सभी धर्मनिरपेक्ष , प्रगतिशील , संस्था , संगठनों , राजनैतिक पार्टियों के लोगों को बुलाइये ,
बच्चों के बनाये पोस्टरों की प्रदर्शनी लगाइये ,
कुछ चुनिंदा निबंधों को मंच पर बच्चों से पढ़वाइये,
युद्ध का शैतानी अर्थशास्त्र समझाइये ,
युद्ध विरोधी नारे लगाइये,
साम्प्रदायिक राजनीति के षडयंत्र पर बोलने के लिये वक्ताओं से काहिये ,
धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में नारे लगाइये,
कला जत्था , या गीत गाने वाले साथियों से गीत व नाटक करवाइये,
संभव हो तो युद्ध विरोधी और सर्वधर्म समभाव समर्थक जलूस निकालिये,
इस सब की मीडिया कवरेज करवाइये,
सोशल मीडिया पर जम कर फोटो, वीडियो फैलाइये,
माहौल बदल दीजिये ,
इतने जोश से काम कीजिये की समाज को तोड़ने वाली ताकतें अकेली पड़ जायें ,
आप अगर चाहे तो इस तरह के कार्यक्रमों में बाहर से जाने पहचाने कार्यकर्ताओं को भी बुला सकते है,
मैं तो आने के लिये एक पैर पर तैयार हूँ ,
ये वख्त घर में बैठने का नहीं है ,

लुत्फ़ उठाइए

जिंदगी छोटी है
आप किसे मारना चाहते हैं ?
जिस से आप नफरत करते हैं या डरते हैं ,
नफरत का स्थान आपके भीतर आपके दिमाग में है ,
आप अपने भीतर से उस इंसान को बाहर करना चाहते हैं ,
इसलिये आप उसे मारकर खुद को उस डर और नफरत से मुक्ति चाहते हैं ,
लेकिन जब आप उसे मारते हैं तो आपको उसके लिये ,
बहुत अधिक नफरत अपने दिमाग में पैदा करनी पड़ती है ,
जिस नफरत और डर से आप छुटकारा चाहते थे अब वह आपके भीतर और भी बढ़ गया है ,
आप जिस से डरते हैं उसी से नफरत करते हैं ,
अगर आप चींटी से नहीं डरते तो आप उस से नफरत भी नहीं करते ,
लेकिन अगर आपको चींटी से डर लगता है तो आपको चींटियों से नफरत हो जायेगी,
और आप चींटी को देखते ही उसे मार देंगे
आपका शत्रु भी आपसे डरता है,
इसलिये आप पर हमला करता है ,
अगर आप अपने शत्रु के प्रति अपना डर निकाल दें तो आपकी नफरत भी समाप्त हो जायेगी ,
अक्सर डर गलतफहमियों पर आधारित होता है ,
गलतफहमियां आपसी सम्पर्क के अभाव से पैदा होती हैं ,
पाकिस्तान आपसे डरता है इसलिये आपसे नफरत करता है ,
आप पकिस्तान से डरते हैं इसलिये आप उस से नफरत करते हैं ,
इसलिये समस्या डर और नफरत है
यही आपके असली शत्रु हैं ,
इसलिये मारना तो इनको पड़ेगा,
आप यदि एक दूसरे देशों के लोगों को मारेंगे तो ,
डर और भी बढ़ेगा,
नफरत भी बढ़ेगी
फिर फिर आप और भी हत्याएं करना चाहेंगे
और आप हमेशा इस नफरत डर और हत्या के कीचड में फंसे रहेंगे,
इस में आपको एक दूसरे का एक दूसरे के लिये ,
प्यार
सहानुभूति
जिज्ञासा
कभी दिखाई नहीं देगी ,
देखिये दोनों देशों के बुज़ुर्ग एक दूसरे से
मिलना और बात करना चाहते हैं
देखिये दोनों देशों के बच्चे एक दूसरे के साथ खेलना चाहते हैं
देखिये दोनों देशों के नौजवान लड़के लड़कियां एक दूसरे के साथ दोस्ती और मुहब्बत करना चाहते हैं
दोस्ती को मौका दीजिए
मुहब्बत को मौका दीजिए
शांति को मौका दीजिए
सामने वाले से उम्मीद मत कीजिये
खुद शुरुआत कीजिये
जिंदगी छोटी है
बेकार के कामों में मत गंवाइए
इसका लुत्फ़ उठाइए
जिंदगी एक नियामत लगेगी

नोटबन्दी और आदिवासी

नोटबन्दी के द्वारा आदिवासियों की कमर तोड़ने की भाजपा की कोशिश ,
बस्तर में आदिवासियों की ज़मीनें हड़पने के लिये सरकार लगातार गांव पर हमले करती है ,
अब आदिवासियों को आर्थिक तौर पर कमज़ोर करने के लिये ,
भाजपा सरकार उनकी छोटी- मोटी जमा पूँजी छीनने हड़पने में लग गई है ,
आदिवासी महुआ , तेंदु पत्ता , मुर्गी, या बकरी बेच कर ,
या मज़दूरी का थोड़ा बहुत पैसा बचा कर अपने पास रखते हैं ,
आदिवासियों के बैंक खाते नहीं हैं ,
आदिवासियों के राशन कार्ड , वोटर कार्ड सरकार ने पहले ही जला दिये थे,
ऐसी हालत में आदिवासी किसी बैंक खाता वाले किसी परिचित या रिश्तेदार के खाते में मिलकर पैसा जमा कराने की कोशिश कर रहे हैं ,
पुलिस आकर आदिवासियों को पकड़ रही है ,
पुलिस कहती है कि यह पैसा तुम्हें नक्सलवादियों नें दिया है ,
बारसूर के निकट गांव की चार आदिवासी महिलाओं को मात्र साठ हजार रूपये की वजह से दो दिन तक थाने में अवैध हिरासत में रखा गया है,
पिछले चार दिनों में ग्यारह आदिवासियों की हत्या पुलिस ने कर दी है ,
आदिवासियों की हत्या के बाद पुलिस का आईजी कल्लूरी दावा करता है कि ये लोग नक्सली थे और अपना छिपा हुआ पैसा निकाल रहे थे,
अनेकों गांवों पर पिछले कुछ दिनों से लगातार हमला कर रही है ,
आदिवासी पुलिस की फायरिंग से बचने के लिये जंगल में भागते हैं ,
तो पुलिस कहती है कि देखो नक्सलवादी अपना छिपा हुआ पैसा निकाल रहे हैं ,
नोटबन्दी के माहौल का फायदा भाजपा आदिवासियों पर ताजा हमले कर के उठा रही है ,
ताकि आदिवासी समुदाय की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ दी जाय ,
जिससे आदिवासी लम्बे समय तक सरकार से लड़ने की ताकत ना जुटा पायें ,
लेकिन ऐसा होने नहीं दिया जायेगा ,
हम सभी लोकतांत्रिक लोग आदिवासियों के संघर्ष में उनके साथ रहेंगे ,
और सरकार के मंसूबों को हमेशा की तरह इस बार भी विफल कर देंगे ,

ये रही हकीकत

धन शब्द धान से बना है
पहले जो किसान मेहनत करके ज़्यादा धान उगा लेता था उसे धनवान कहते थे।
बाद में मुद्रा अर्थात पैसे का अविष्कार हुआ।
पैसे को वस्तुओं या सेवा के बदले लिया दिया जाने लगा.
तब से माना जाने ;लगा कि पैसा वस्तुओं का प्रतिनिधि है।
वस्तुओं की कीमत पैसे से नापी जाती है।
जैसे पहले एक रूपये में दस किलो अनाज आता था।
अब डेढ़ सौ रूपये में दस किलो अनाज आता है।
तो अनाज की कीमत बढ़ गयी
या कहिये कि पैसे की कीमत गिर गयी
तो असल में पैसे की कीमत गिरने से
अनाज की कीमत बढ़ गयी
किसी चीज़ की कीमत तब घटती है जब उसकी मात्रा ज़्यादा बढ़ जाती है
जैसे पैसे की मात्रा ज़्यादा हो गयी
तो पैसे की कीमत घट गयी
परिणाम स्वरूप वस्तुओं का मोल बढ़ गया
इसे ही आप महंगाई कहते हैं
इसे अर्थशास्त्र में मुद्रा स्फीति कहा जाता हैं
अर्थात वस्तुओं और सेवाओं के मुकाबले मुद्रा का ज़्यादा हो जाना
मान लीजिए मेरे पास सौ करोड़ रूपये हैं
मैंने सुबह बैंक में फोन करके सौ करोड़ रुपयों के शेयर्स खरीद लिए
शाम को मैंने दस प्रतिशत बढे हुए रेट पर वो शेयर बेच दिए
शाम तक मेरे पास दस करोड़ रूपये का मुनाफा आ गया
इस मामले में मैंने ना तो किसी वस्तु का उत्पादन किया ना ही किसी सेवा का उत्पादन किया
लेकिन मेरे पास दस करोड़ रूपये बढ़ गए।
पैसे मेरे बैंक में ही हैं
अब मैं चेक से उन पैसों से अनाज भी खरीद सकता हूँ
मैं अनाज मंडी में खरीदे गए सारे अनाज को खरीद लेता हूँ
बाजार में बिक्री के लिए अनाज नहीं जाने देता
इससे अनाज की मांग बढ़ जाती है
इससे अनाज की कीमत बढ़ जाती है
अनाज की कीमत दस करोड़ एक दिन में कमाने वाले के लिए नुकसानदायक नहीं है
लेकिन सौ रुपया रोज़ कमाने वाले मजदूर के लिए नुकसानदायक होगी
अनाज उगाने वाले किसान को ज़्यादा पैसा मिलेगा
लेकिन चूंकि पैसे की कीमत तो गिर ही चुकी है
इसलिए उसे उस पैसे की बदले में कम सामान मिलेगा
तो पूंजी बैठे बैठे
पैसे को बढ़ाने की ताकत किसी के हाथ में दे देती है
उसका पैसा तेज़ी से बढ़ता जाता है
लेकिन मेहनत करने वाले मजदूर
या मेहनत से उत्पादन करने वाले किसान
का पैसा तेज़ी से नहीं बढ़ता
इसलिए यह तबका इस अर्थव्यवस्था में गरीब बन जाता है
शेयर खरीदने के लिए मुझे बैंक क़र्ज़ देता है
मैं चाहूँ कितनी ही कंपनियां बना सकता हूँ।
मैं चाहूँ तो अपनी ही कम्पनी के शेयर भी खरीद सकता हूँ।
बैंक में किसान और मजदूर का भी पैसा जमा है।
किसान और मजदूर के बैंक में जमा पैसे से मैं अपनी ही कंपनी के शेयर खरीदता हूँ
खुद ही उनके रेट बढाता हूँ
खुद ही मुनाफ़ा कमाता हूँ
और मेरे पास पैसा बढ़ता जाता है
उधर किसान का अनाज नहीं बढ़ रहा
इसलिए उसके पास पैसा भी नहीं बढ़ेगा
मैं इस पैसे से नेता अफसर और पुलिस को खरीद लूँगा
मैं इस पैसे से अपना कारखाना लगाने के लिए किसान की ज़मीन पुलिस के दम पर छीन लूँगा
अब मेरे पास बिना काम किये रोज़ करोड़ों रूपये आते जायेंगे
अब सरकार पुलिस और जेल अदालत मेरे बिना मेहनत से कमाए हुए धन की सुरक्षा करेगी
जो गरीब इस तरह से मेरे धन कमाने को गलत मानेगा
उसे सरकार जेल में डाल देगी
अब नौजवानों को रोज़गार मेरे ही कारखाने या दफ्तर में मिलेगा
अब कालेज में नौजवानों को वही पढ़ाया जाएगा जिसकी मुझे ज़रूरत होगी
अब नौजवान मेरी सेवा करने के लिए पढेंगे
अब बच्चों की शिक्षा मेरे कहे अनुसार चलेगी
मैं टीवी के चैनल भी खरीद लूँगा
अब टीवी आपको मेरा सामान खरीदने के लिए प्रेरित करेंगे
मैं शापिंग मॉल भी खरीद लूँगा
मैं छोटी दुकाने बंद करवा दूंगा
अब आप मेरे ही कारखाने या दफ्तर में काम करेंगे
और मेरे ही शापिंग मॉल में जाकर खरीदारी करेंगे
मैं ही एक हाथ से आपको पैसे दूंगा
और दूसरे हाथ से पैसे ले लूँगा
आप दिन भर मेरे लिए काम करेंगे
अब आप मेरे गुलाम हो जायेंगे
अब मैं आपकी जिंदगी का मालिक बन जाऊँगा
अब मैं करोड़ों लोगों की जिंदगी का मालिक बन जाऊँगा
अब आपको वहाँ रहना पड़ेगा जहां मेरा आफिस या कारखाना है
आपके रहने की जगह मैं निर्धारित करूँगा
आपको मैं उतनी ही तनख्वाह दूंगा जिसमे आपका परिवार जी सके
आप अपनी बेसहारा बुआ मौसी या माता पिता को अपने साथ नहीं रख पायेंगे
तो आपके परिवार का साइज़ भी मैं तय करूँगा
अब आप मेरे लिए काम करते हैं
आपके बच्चे मेरे लिए पढते हैं
आप मेरी पसंद की जगह पर रहते हैं
अब मैं जिस पार्टी को चाहे टीवी की मदद से आपके सामने
महान पार्टी के रूप में पेश कर देता हूँ
आप उसे वोट भी दे देते हैं
मैं साम्प्रदायिकता का इस्तेमाल करके आपको मेरे लिए फायदे मंद पार्टी को वोट देने के लिए मजबूर करता हूँ
मैं अफ्रीका में अलग अलग कबीलों को आपस में लड़वाता हूँ
मैं भारत में अलग अलग संप्रदायों को लड़वाता हूँ
और फिर बड़े कबीले की तरफ मिल कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेता हूँ
भारत में अभी बड़ा कबीला हिंदू है
इसलिए मैं हिंदुओं की साम्प्रदायिकता को भड़का कर अपने गुलाम नेता को सत्ता में बैठा देता हूँ
पाकिस्तान में मैं मुसलमान साम्प्रदायिकता को भडकाता हूँ
क्योंकि पाकिस्तान में बड़ा कबीला मुसलमान हैं
ये रही हकीकत आपकी
राजनीति
साम्प्रदायिकता
अर्थव्यवस्था
शिक्षा व्यवस्था
और विकास की

भक्त

मैं धर्मनिरपेक्ष हूँ
भक्त - तू सिकुलर है, जा पाकिस्तान,
मैं समता के पक्ष में हूँ
भक्त- तू कम्युनिस्ट है, रूस और बंगाल में क्या कर लिया तुम लोगों ने ? जाओ चीन जाओ ,
मैं न्याय के पक्ष में हूँ ,
भक्त- मतलब तू नक्सलवादी है ? तुम आतंकवादी हो , तुम्हें मारने के लिये तो आर्मी को भेज देना चाहिये ,
मैं बंधुता के पक्ष में हूं ,
भक्त - मतलब हम इसाइयों और मुल्लों को गले लगा लें ? वामियों सुधर जाओ ,
लेकिन मैं जिन बातों का पक्षधर हूँ वह सब तो संविधान की प्रस्तावना में लिखा हुआ है ?
भक्त - ओह संविधान ? यानी तू अम्बेडकरवादी है ? अबे तुम लोगों के आरक्षण की वजह से आज हमारी ये हालत है ၊
तो यह है आम भाजपा समर्थक की समझ ၊
आइये एक बार फिर से ध्यान से पढ़ें संविधान का पहला पन्ना :
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न
समाजवादी
पंथनिरपेक्ष
लोकतंत्रात्मक गणराज्य
बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार,
अभिव्यक्ति,
विश्वास
धर्म और उपासना
की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की
समता
प्राप्त कराने के लिए
तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता
सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद्‌द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

अंबेडकर


अंबेडकर साहब अगर आज होते तो वह क्या कर रहे होते ?
कुछ संभावित जवाब यह हो सकते हैं ,
अंबेडकर साहब आज होते तो दलितों पर होने वाले हमलों के खिलाफ आन्दोलन कर रहे होते ,
इसके साथ साथ अंबेडकर साहब वकील भी थे ,
तो अम्बेडकर साहब अदालतों में दलितों पर होने वाले हमलों के मुकदमे लड़ रहे होते ,
और दलितों की बस्तियां जलने वालों को ,
और दलितों के सामूहिक हत्याकांड करने वाले लोगों को अदालतें ठीक वैसे ही बरी कर रही होतीं ,
जैसे अदालतों नें लक्ष्मनपुर बाथे, बथानी टोला और हाशिमपुरा के आरोपियों को बरी कर दिया है ,
ऐसे में अंबेडकर साहब अपने बनाये हुए संविधान, अदालतों और चुनावों का महिमा गान कर रहे होते ,
या पीड़ित लोगों के साथ मिल कर पूरे ढाँचे को बदलने की बातचीत का हिस्सा बने होते ?
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अंबेडकर साहब ने कहा था कि अगर हमने जल्द ही आर्थिक और राजनैतिक न्याय को भारत के करोड़ों लोगों के लिए हकीकत नहीं बनाया ,
तो लोग इस संविधान को जला देंगे ,
बाबा साहब एक क्रन्तिकारी थे ,
उन्होंने मन्दिर प्रवेश का कार्यक्रम नहीं किया ,
उन्होंने महाड़ के तालाब के पानी पर सबके अधिकार का आन्दोलन किया ,
अंबेडकर साहब को इस अन्यायी और पूंजीवादी व्यवस्था के रक्षक के रूप में खड़ा करने का काम भारत के परम्परागत शासक वर्ग ने किया ,
जिसमें पूंजीपति, बड़े भू मालिक सवर्ण सम्पत्तिवान सत्ताधारी वर्ग शामिल थे ,
संविधान को इस व्यवस्था के प्रतीक के रूप में दिखाया गया ,
और अंबेडकर साहब को सीने से संविधान चिपकाए हुए पुतले लगा दिए गए ,
अंबेडकर साहब के पुतले कब दिखाई पड़ने शुरू हुए ?
1971 के बाद अंबेडकर साहब के पुतले दिखाए देने शुरू हुए ,
असल में यह नक्सली आन्दोलन के जवाब में हुई कार्यवाही थी,
1967 में नक्सली आन्दोलन को कांग्रेस नें बुरी तरह कुचला था ,
नक्सली आन्दोलन में एक समय में दलितों की भागीदारी का प्रतिशत 80% था ,
यह दलितों के लम्बे समय की उपेक्षा और अत्याचारों का परिणाम था ,
आज़ाद भारत में गोडसे के बाद पहली फांसी दो दलित किसानों को हुई थी ,
इन किसानों पर आरोप था कि उन्होंने ज़मींदार को मार डाला था ,
दलितों और आदिवासियों के एक हो जाने से मौजूदा व्यवस्था को बदलने के लिए वैकल्पिक राजनैतिक आन्दोलन के बहुत मज़बूत हो जाने का खतरा खड़ा हो गया था ,
दलितों को व्यवस्था विरोध के आन्दोलन से अलग करने के लिए अंबेडकर साहब को व्यवस्था के समर्थक के रूप में पेश किया गया ,
आज भी बहुत सारे दलित चिन्तक मानते हैं की दलित युवाओं का एकमात्र लक्ष्य सरकारी नौकरी पा लेना है ,
जबकि अंबेडकर साहब को सबसे ज्यादा निराशा इसी पढ़े लिखे वर्ग से थी ,
जो नौकरी पाने के बाद अपने समुदाय को भूल जाते हैं और अन्याय करने वाली व्यवस्था के सेवक बन जाते हैं ,
अंबेडकर साहब को और ज्यादा पढ़े जाने और समझे जाने की ज़रुरत है ,

मुख्य सचिव को सम्मन


बस्तर के आईजी कल्लूरी और
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को सम्मन मिला ,
दोनों भाग खड़े हुए ,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ऐसी की तैसी ,
पहले पुलिस ने आदिवासियों के गांव जलाये ,
लड़कियों के साथ बलात्कार किये,
आदिवासियों का कत्ल किये ,
मैने मामला बाहर निकाला ,
लिंगा कोड़ोपी ने वीडियो बनाये ,
सीबीआई की टीम जांच करने गई तो पुलिस ने सीबीआई पर हमला किया,
नन्दिनी सुन्दर ने मामला कोर्ट मे उठाया,
सोनी सोरी ने मैदानी लड़ाई लड़ी ,
सरकार ने लिंगा कोड़ोपी को जेल में डाला ,
सोनी के मूंह पर तेज़ाब डाला ,
नन्दिनी सुन्दरी के ऊपर कत्ल का केस बना दिया ,
पुलिस और सरकार की बदमाशी देख कर ,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस आईजी कल्लूरी और छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को समन भेज कर बुलाया,
लेकिन दोनों भाग खड़े हुए ,
आईजी कल्लूरी बीमारी का बहाना बना कर विशाखापटनम के फाइव स्टार प्राइवेट हस्पताल में भर्ती हो गये ,
मुख्य सचिव अमेरिका चले गये ,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अब मूंह देख रहा है ,
ये लोग हमें देशद्रोही कहते हैं ,
और खुद कानून और संविधान को जूते की नोक पर रखते हैं ,
राष्ट्रवाद सिर्फ अपने काले कारनामों को छिपाने का पर्दा है इन लोगों के लिये ,
लेकिन हम छोड़ेगे नहीं ,
संविधान के तले तो तुम्हें आना ही पड़ेगा ,

भविष्य के निर्माता


बस अड्डे से फोन पर अपनी बेटी से मैंने पूछा कि कहाँ हो अभी ?
बेटी की आवाज़ में कुछ नया उत्साह था,
बोली, पापा अभी मैं खेल कर घर आ रही थी तो रास्ते में खड्ड में एक छोटा सा पिल्ला पानी में गिरा हुआ था,
मैं उसे घर ले आयी हूँ, वो ठण्ड से काँप रहा है,
घर पहुँचने से पहले ही मैंने कल्पना कर ली थी कि मेरी बेटी उस पिल्ले को आज अपनी रजाई के अंदर सुलाने की जिद करेगी,
और मैं उसके इजाज़त मांगने से पहले उसकी इस मांग को पूरा करने का निर्णय ले चुका था,
घर आया तो मेरी बेटी ने अपना तौलिया उस पिल्ले को लपेटा हुआ था और वह जनाब सोफे पर बैठ कर दूध नोश फरमा रहे थे,
मैंने हीटर निकाला और उसके पास चालू कर दिया, पिल्ले ने थोड़ी देर में कांपना बंद कर दिया,
बच्चों की इस तरह की आदतें मेरे इस विश्वास को पक्का करती हैं कि इंसान मूल रूप में अच्छा ही होता है,
हमारी तथाकथित सभ्यता और संस्कृति इंसान को खराब बनाते हैं,
बच्चे जिस तरह कुत्ते, बिल्लियों, और चिड़ियों के साथ प्यार से पेश आते हैं वह मेरे इस दावे का सबसे साफ़ सबूत है ,
एक दूसरा वाकया,
कल एक नौजवान का फोन आया,
वह स्कूल में पढाता है,
नाटक भी लिखता है,
उसने बस्तर के आदिवासियों पर एक नाटक लिखा,
उस नौजवान के नाटक को पुरस्कार मिला,
पुरस्कार देने वाली संस्था का नाम है टाटा फाउंडेशन,
इनाम लेते समय उस नौजवान नें कहा की मैं आपको इस पुरस्कार के लिए कोई धन्यवाद नहीं दूंगा,
क्योंकि आप के ही बिजनेस संस्थान आदिवासियों की ज़मीनें छीन रहे हैं,
कल मुझे फोन पर उस नौजवान नें कहा कि सर मैं इनाम में मिले डेढ़ लाख का एक भी पैसा अपने लिए इस्तेमाल नहीं करूंगा,
आप ऐसे आदिवासियों के मामले मुझे बताइये जिनका इलाज बिना पैसे के ना हो पा रहा हो,
हांलाकि वह नौजवान चाहता तो इस पैसे से मोटर साईकिल या कोई कैमरा खरीद सकता था,
लेकिन उसने इसे बीमार आदिवासियों को देने का फैसला किया,
इंसानियत में हमारा विश्वास ऐसे नौजवान और बच्चे पक्का कर देते हैं,
साम्प्रदायिकता, जातिवाद और गरीबों की लूट ही हमारा भविष्य नहीं है,
भविष्य के निर्माता ये उम्मीदों से भरे करोड़ों बच्चे और नौजवान भी हैं,
इंसानियत में उम्मीद मत हारिये,

हमारा धर्म क्या है ?

हमारा धर्म क्या है ?
सारे इंसानी समाज का धर्म यह है की दुनिया को तकलीफ से मुक्त बनाया जाय ,
दुःख से मुक्त यानी ?
कोई भूखा न रहे , कोई बिना इलाज न मरे , किसी को बेईज्ज़त ना किया जाय , किसी के साथ शारीरिक हिंसा ना हो , सभी इंसानों की इज्ज़त , अधिकार और अवसर बराबर हों ,
क्या ऐसा मानना कम्युनिस्ट विचारधारा है ?
नहीं बिलकुल नहीं ? सभी धर्म बराबरी की बात कहते हैं ?
सभी धर्म दुःख से मुक्ति की बात कहते हैं .
लेकिन ऐसी कोशिश तो रूस चीन और दुसरे कम्युनिस्ट देशों में फेल हो चुकी है .
तो क्या हुआ ?
अगर एक बार कोई प्रयोग फेल हुआ तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि दुनिया में अब कभी भी इंसानी समाज को दुखों से मुक्त करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ,
ठीक है तो इस तरह की दुनिया बनाने में बाधा क्या है ?
आँखें खोल कर अपने आस पास देखिये इंसानी समाज को दुःखी रखने वाली चीज़ें दिखाई देनी शुरू हो जायेंगी ,
बल्कि बाहर भी मत देखिये ,
अपने भीतर देखिये संसार को दुखी बनाने वाली आपको अपने भीतर मिल जायेंगी
आप मानते हैं कि कुछ लोग जन्म से छोटी ज़ात के होते हैं और कुछ लोग ऊंची ज़ात के होते हैं ,
आप मानते हैं कि आपके धर्म के अलावा दुसरे धर्म वाले वहशी और बेवकूफ होते हैं ,
आप मानते हैं कि आपका देश सबसे अच्छा है और पड़ोसी राष्ट्र सबसे खराब है ,
आप मानते हैं कि मेहनत करने वालों का गरीब रहना ठीक है ,
और आपका सिर्फ कम्प्यूटर चला कर या फोन पर आफिस के कुछ फोन करके लाखों रुपया कमा लेना न्यायोचित है ,
आप ऐसा क्यों सोचते हैं ?
असल में आप हमेशा खुद को ठीक मानते हैं ,
जैसे अगर आप हिन्दू हैं तो आप मुसलमानों को गलत मानते हैं ,
आप अगर सवर्ण हैं तो आप मानते हैं की दलितों नें आरक्षण के बल पर सवर्णों के अधिकार छीन लिए हैं ,
अगर आप भारतीय हैं तो आप पकिस्तान को गलत और उसे अपने देश का दुश्मन मानते हैं ,
लेकिन सच किसी ख़ास परिस्थिति में होने के कारण बदलता नहीं हैं ,
सच को अपनी परिस्थिति से हट कर तभी समझा जा सकता है जब आप को वैज्ञानिक ढंग से किसी मुद्दे का परिक्षण करना आता हो ,
जैसे समाज शास्त्र की पुस्तक होती है ,
वह जाति व्यवस्था के बारे में वैज्ञानिक ढंग से बतायेगी,
क्या आप भी उसी तरह से जाति व्यवस्था के बारे में अपने सवर्ण पूर्वग्रहों से आज़ाद होकर सोच सकते हैं ?
इसी तरह साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद के बारे में वैज्ञानिक ढंग से सोचने की आदत डालनी पड़ेगी ,
यही तरीका है दुनिया को तकलीफों से मुक्त करने का ,
लेकिन दुनिया के ज़्यादातर लोग गलत ढंग से सोचने की आदत डाल चुके हैं,
वो खुद की परिस्थिति के मुताबिक दुनिया को मानते हैं ,
वो अपने अलावा दूसरों से नफरत करते हैं ,झगड़े करते हैं युद्ध करते हैं , हथियार बनाते हैं ,
आपके राजनेता आपकी गलत तरीके से सोचने की कमजोरी का फायदा उठाते हैं
वो आपको युद्ध के लिए भड़काते हैं , आपमें नकली राष्ट्रभक्ति पैदा करने के भाषण देते हैं ,
ज्यादातर जगहों पर बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़का कर सत्ता पर कब्ज़ा किया जाता है ,
ऐसा भारत में भी होता है , पकिस्तान में भी होता है , अफ्रीका में भी होता है , और अमेरिका में भी इस बार यही खेल खेला गया है ,
क्या इस सब को समझना इतना कठिन है ?
थोड़ी देर के लिए अपने आप को अपनी परिस्थिति वाली सोच से आज़ाद कर के सोचिये ,
जैसे आप मुसलमान हैं तो थोड़ी देर हिन्दू की जगह खड़े होकर सोचिये ,
भारतीय हैं तो खुद को पाकिस्तानी मान कर सोचिये ,
अमीर हैं तो खुद को मजदूर की जगह रख कर सोचिये ,
आप को सच का थोडा प्रकाश मिलने लगेगा ,
आप जिन लोगों को मानवाधिकार कार्यकर्ता कह कर गालियाँ देते हैं वे लोग बस यही तो करते हैं ,
वे खुद को आदिवासी की या दलित की या अल्पसंख्यक की जगह रख कर सोचते हैं ,
लेकिन चूंकि मानवाधिकार कार्यकर्ता आपके समूह के स्वार्थ से अलग न्याय की बात करते हैं
तो आप कहते हैं कि ये मानवाधिकार कार्यकर्ता विदेशी एजेंट हैं और देशद्रोही हैं या कम्युनिस्ट हैं ,
असली बात यह है कि आपको खुशी देने वाली बातें कर के जो लोग आपको दुसरे धर्म वालों से या पड़ोसी देश के खिलाफ बातें कर के सत्ता प्राप्त कर रहे हैं ,
वे लोग आपके बच्चों के लिए एक खतरनाक दुनिया बना रहे हैं ,
एक ऐसी दुनिया जो हथियारों से भरी हो ,
जिसमें लोग एक दुसरे से नफरत करते हों ,
जहां अमीर अपने मुनाफे के लिए हवा समुन्दर और पानी में ज़हर घोलने के लिए आज़ाद हों ,
क्या आप अपने बच्चों को ऐसी दुनिया देकर मरना चाहते हैं ?
हम आपसे कम्युनिस्ट बन जाने के लिए नहीं कह रहे ,
हम चाहते हैं आप खुद सोचें कि इस दुनिया की समस्या क्या है ?
और उनका इलाज क्या है ?