Tuesday, March 8, 2011

"कैसे कैसे माओवादी"? - हिमांशु कुमार



विनायक तो सरकारी नज़रों में इसलिए  नक्सली हो गए क्यों कि उन्होंने 'माओवादी के पत्र किसी को ले जाकर दिए' ! परन्तु सरकार ने एक बार अपना अपराध छिपाने की कोशिश के तहत मुझे भी नक्सलियों का इलाज कराने का इल्ज़ाम लगा कर  फंसाने की कोशिश की थी! ऐसी ही एक मज़ेदार घटना बताता हूँ! 
         एक बार अख़बार में छपा की "बैलाडीला स्थित एस्सार के पाइप लाइन प्लांट के पास पुलिस ने दो नक्सलियों को एक एन्काउन्टर में  मार गिराया है ! " परन्तु आस पास के ग्रामीणों का कहना था की पुलिस गप्प मार रही है !  नंदनी सुन्दर भी दंतेवाडा आयी हुई थीं ! हम दोनों ने घटना  की सच्चाई जानने का फैसला किया ! और पूछते हुए उनके गाँव पहुंचे ! गाँव वालों ने बताया की असली कहानी यह है की खेती का मौसम हो रहा है और इस समय सभी आदिवासी अपने पशुओं को हल चलाने के लिए ढूँढते हैं! चार गाँव वाले अपने जानवर ढूंढ कर वापस लौट रहे थे! फ़ोर्स गश्त पर थी पुलिस ने अँधेरे में इन लोगों को देख कर गोली चला दी! दो लोग वही म़र गए! बाकी के दो लोगों  में से एक की जांघ में और दूसरे की बाजू में गोली लगी ! पुलिस ने फटाफट बयान दे दिया की उसने दो नक्सलियों को मार गिराया है ! बाकी बचे दोनों घायलों को पुलिस ने चुपचाप किरंदुल के सरकारी अस्पताल ले जाकर फर्स्ट ऐड करा कर घर भगा दिया ! 
   मैंने और नंदिनी ने ग्रामीणों के इस बयान की तस्दीक करने का फैसला किया और बताया की हम दोनों घायलों से मिलना चाहते हैं ! गाँव वाले हमें उनके घर ले गए ! गाँव वालों का विवरण बिलकुल सच था सच्चाई हमारे सामने पडी कराह रही थी! दोनों आदिवासियों के घावों से मवाद बह रहा था ! दोनों के पास किरंदुल के सरकारी अस्पताल में इलाज होने के सबूत के तौर पर वहां का परचा भी मौजूद था! हमने दोनों की ओर से दो पत्र बनाये! घटना का विवरण देते हुए जाँच की मांग करते हुए एक एस पी के नाम और दूसरा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नाम पर !  शाम होने लगी थी हमने गाँव वालों से दोनों  घायलों को अगले दिन दंतेवाडा लाने का आग्रह किया ! गाँव वाले अगले दिन दोनों को चारपाई पर डाल कर सरपंच को साथ में ले कर दंतेवाडा पहुँच गए ! हमने पत्रकारों को बुलाया और कहा की भाई इनकी भी सुन लो! अखबारों ने दोनों  घायलों का बोला हुआ भी छाप दिया! अब पुलिस घबराई ! ये घायल आदिवासी हमारे आश्रम में सपरिवार रह रहे थे और हमारे कार्यकर्ता इनको रोज़ अस्पताल ले जाकर मरहम पट्टी करा कर वापिस आश्रम ले आते थे! एक दिन मैं कहीं से लौटा तो आश्रम में सारे कार्यकर्ता एक जगह खड़े होकर कुछ चर्चा कर रहे थे ! पता चला थोड़ी देर पहले आदिवासियों की तरह लूंगी पहन कर एक आदमी आश्रम में आया था और दोनों घायल आदिवासी कहाँ हैं पूछ रहा था और कह रहा कि मैं इनका भाई हूँ और इन्हें घर ले जाने आया हूँ ! परन्तु उनमें से एक की पत्नी वहीं थी उसने गोंडी भाषा मैं बताया की ये तो थाने का पुलिस वाला साहब है , हमारा भाई नहीं है! कार्यकर्ताओं ने उससे कहा की अभी हिमांशु जी नहीं हैं आप थोड़ी देर में आना ! और एक कार्यकर्ता  उसके पीछे गया तो सचमुच थोड़ी दूर पर हथियारबंद लोगों से भरी पुलिस की एक जीप जंगल में छिप कर खड़ी की गयी थी !  इसके बाद हमारे एक पत्रकार मित्र ने कहा की वो इन दोनों को  वो बिलासपुर हाईकोर्ट  तक ले जायेंगे और इनके विषय में एक रिट दायर करेंगे ! मैं तैयार हो गया दोनों आदिवासियों को उन्हें साथ ले जाने दिया ! वो रायपुर गए वहां एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता ने उनसे कहा की इस मामले को वो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने ले जायेंगे और कोर्ट में ले जाने से न्याय मिलने में बहुत समय लग जायेगा ! और वो पत्रकार बंधू उन्हें वहीं से वापिस ले आये और सीधे उन्हें उन के गाँव पहुंचा दिया ! पुलिस तो सूंघ ही रही थी ! उसने दोनों को पूछताछ के बहाने थाने बुलाया और फरार नक्सलियों का फर्जी केस बना कर दोनों को जेल में डाल दिया! दोनों निर्दोष आदिवासी आज भी जेल में हैं! 
   मेरा आश्रम टूटने के बाद दंतेवाडा के एस पी मुझसे बोले की हिमांशु जी आपका आश्रम तो हमने इसलिए तोडा की आप वहाँ फरार नक्सलियों को रख कर इलाज कराते थे! मैंने कहा आप मुझ पर केस करिए मैं अदालत में किरंदुल अस्पताल की पर्चियां पेश करूंगा, जिसमें आपने उन्हें फर्स्ट ऐड करा कर घर जाने दिया था! क्या पुलिस नक्सलियों का फर्स्ट ऐड भी कराती है? और फिर उन्हें आराम से घर भी जाने देती है ? एस पी साहब चुप हो गए ! और इस मामले में भी हम बाकी सारे मामलों की तरह उन दोनों निर्दोषों को कोई न्याय नहीं दिलवा पाए! अलबत्ता हमने  उन बेचारे आदिवासियों की मुसीबतें और भी  ज्यादा बढ़ा दीं !

2 comments:

  1. " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.upkhabar.in

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  2. हिमांशु जी ,
    आपको ब्लाग पर देखकर सचमुच बहुत अच्छा लगा .आप से कभी मिला नहीं पर आपको खूब पढ़ा और सुना है. आपके विचारों से काफी प्रभावित हूँ.
    आपने अपने आपको एक हारा हुआ योद्धा माना है , यह देखकर दुखी हो रहा हूँ. अभी आपके जैसे लोगो की जरूरत है , हम सबको.

    मै पेशे से एक युवा सर्जन हूँ और आप ही के जैसे विचार है मेरे. मेरा ई मेल आई डी है -drprab@gmail.com.

    भरपूर शुभेच्छाओं के साथ.
    प्रभात

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