Saturday, October 8, 2011

काश कि मैंने बस्तर ना देखा होता ,


काश कि मैंने बस्तर ना देखा होता
तो मैं भी राष्ट्र की मुख्य धारा का एक विश्वसनीय नागरिक होता ,
फिर मैं भी क्रिकेट की ये वाली, या वो वाली टीम के जीतने या हारने की राष्ट्रीय समस्या पर शर्तें लगाता हुआ पूरी शाम ऐश से बिताता ,
और चर्चा करता टी वी सिरिअलों की सास बहु की शह और मात के गंभीर मुद्दे पर ,
शर्त लगाता अपनी पत्नी से कि देख लेना इस बार बहू ही जीतेगी ,

लेकिन बस्तर से लौटने के बाद मैं अजीब और खतरनाक बातें करने लगा हूँ ,
मेरे रिश्तेदार मेरे पहुंचते ही आपस में इशारे कर के बारी बारी से उठ कर चले जाते हैं ,
क्यों कि मेरी बातों में होते हैं आदिवासियों के जले हुए घर ,
अपमानित आदिवासी बच्चियां ,
"देश का विकास कर रही अच्छी सरकार" के भयानक क्रूर कर्म,
मेरी बातों में होते हैं करतम जोगा, सुखनाथ ओयामी , मदकम हिडमे,
और पोंजेर गाँव में कुल्हाड़ी से काट दिए गए महुआ बीनते छह आदिवासियों के खून से लथपथ शव ,

क्या कोई मुझे फिर से मुझे कोई फिर से एक अच्छा नागरिक बना सकता है ?
जो टी वी , क्रिकेट और फिल्मो जैसी सभ्य बातें करे ,
असभ्य आदिवासियों, बराबरी, विकास के समान बंटवारे जैसी बातें बिलकुल ना करे ,

2 comments:

  1. काश मैं बस्तर देख पाता…देखूंगा…और तब कहूंगा कि सभ्य कैसे बनेंगे आप…

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  2. chndan ji apne ass pass hi jara dhyan se najren ghuma ke dekh lije bastar nahi to navjat baster to najar aa hi jayega.

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