Monday, January 16, 2012

फिर जला दिये गये आदिवासियों के गाँव


फिर जला दिये गये आदिवासियों के गाँव
इस उम्मीद में कि जमीन , नदी और पहाड़ को न बेचने की संस्कृति मर जायेगी ,
फिर वो राख उड़ी और जम गयी विजेताओं की संततियों के मस्तिष्क में ,
और उसने उन सब के मस्तिष्क को कुंद बना दिया ,
फिर श्रेष्ठ जातियों ने पढ़े कुछ प्राचीन श्लोक और सिद्ध किया कि वसुधा एक कुटुंब है ,
फिर पूरी वसुधा के सारे विजेता एक कुटुंब हो गये ,
फिर विजेताओं ने लिखे इतिहास ,
जिसमे कहीं नहीं थे
आदिवासी युवतियों की प्रेम कहानियाँ ,
युवकों के फौलादी बाजुओं की मछलियों की दास्तानें,
न नदियाँ थीं , न पहाड़ , न वसंत ,न मेला ,न चूड़ी ,

विजेताओं ने
बनाये भव्य स्मारक
इस युद्ध में शहीद हुए सिपाहियों के
जिसमे सिपाहियों के
नाक बहाते गरीब बच्चों का जाना मना था ,
फिर बुद्धिमान लोगों ने अनुमान लगाये ,
सांस्कृतिक विरासत की रक्षा को क्या क्या खतरे बाकी हैं अभी ,

कुछ सिरफिरों ने कोशिश की सर उठाने की ,
पर कुचल दिये गये,
इतने महान देश के लोकतंत्र से टकराना मजाक है क्या ?
लोकतंत्र की रक्षा में सारी श्रेष्ठ जातियां एक हो गयीं ,
बागी बुरी तरह मारे गये,
कुछ भी तो नहीं था उनकी तरफ ,
न धर्म
न संस्कृति ,
न राजनीति ,
कुछ जंगलियों के समर्थन से
क्रांति करने चले थे ,

कुछ निष्पक्ष लोगों ने ,
विश्लेषण प्रस्तुत किये
राष्ट्र के सम्मुख जिसमे
ऐसा आभास दिया गया था
कि ये क्रांति को भी अच्छी तरह समझते हैं
पर असल में इन्होने ही तो बताये थे
बागियों के खात्मे के गुर
विजेताओं को ,

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