Thursday, February 16, 2012

मैं जेल से लिंगा कोडोपी बोल रहा हूँ


तुमने मुझे धकेल दिया जेल की कोठरी के अँधेरे में,
क्योंकि राष्ट्रपति भवन के,
विशालकाय गणतंत्र के गुम्बद पर
चमचमाता हुआ प्रकाश पुंज,
मेरी ही जमीन छीनकर बनाये गये,
बिजलीघर में तैयार बिजली से दमदमाता है ,
मेरी आजादी को खतरा बताया गया,
गणतन्त्र के उस विशालकाय गुम्बद के
बल्ब की रौशनी के लिये,
पुलिस की कितनी लाठियां टूटी मुझपर,
अब याद नहीं,
मार खाते हुए रोने का विकल्प नहीं था मेरे सामने ,
क्योंकि मेरी आँखों के आंसू
ताड़मेटला गाँव में थाने से बलात्कार होकर लौटी
लड़की की कहानी सुनने के बाद,
बहकर समाप्त हो चुके थे,
सिर्फ खून उतर आया था मेरी आँखों में पुलिस से पिटते समय,
लोकतांत्रिक मर्यादाओं की रक्षा के लिये ,
सभ्य लोगों को जरूरी लगता है ,
हमे लगातार हमारी हैसियत का
अहसास कराते जाना,
और हमारी औरतों के शरीर में ,
तुम्हारे राष्ट्र का पौरुष,
और कंकड,पत्थर भर दिये जाना ,
उस रात तुमने मेरी बुआ सोनी सोरी को नहीं
अपने लोकतन्त्र को नंगा किया था थाने में,

मैं लडूंगा क्योंकि न लड़ने का विकल्प तुमने छीन लिया मुझसे,
मैं मरूँगा नहीं,
क्योंकि मुझे शपथ लगी है उन सबकी,
जिनकी इज्जत लूटी, जिनके घर जले ,
जिनके बच्चे मरे और वो रो न सके ,
हाथ मेरे अब जुडेंगे नही ,
गर्दन मेरी अब झुकेंगी नही,
जंग मेरी अब रुकेगी नहीं ,
मैं मरूँगा नहीं, लडूंगा मैं अब ,
हर पेंड़ की छाँव में, हर पहाड़ी पर
जंगल के हर मोड पर ,
तुम मुझे ही पाओगे,

तुम्हारी हर लाठी,
तुम्हारे लोकतन्त्र पर ही चली है ,
तुम्हारी हर गोली ने तुम्हारी ही संस्कृति को मारा है,
तुम्हारी हर जेल में तुम्हारा ही लोकतन्त्र कैद है ,
मैं ना पिटा हूँ, ना मरा हूँ और न कैदी ही हूँ,
मेरी बुआ की कोख से निकले पत्थर के नीचे,
दब गया है तुम्हारा गणतन्त्र, संविधान और लोकतन्त्र,
मेरी बुआ रोज पीटती है तुम्हें, सुबह से शाम तक,
देखो कितने अपमानित, पीड़ित और बेचारे दिख रहे हो तुम सब,
मैं और मेरी बुआ जेल से खिल्ली उड़ा रहे हैं तुम्हारी,

तुम हांफ रहे हो,
दम घुट रहा है तुम्हारे नकली लोकतन्त्र का,
मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं,
मैंने तुम्हारे ढोंग के मुखौटों को,
मक्कारी और शराफत की
नकाब को फाडकर फेंक दिया है और
तुम्हारा राष्ट्र, संस्कृति और लोकतन्त्र नंगा हो चुका है,
ताड़मेटला की उस बलात्कृत लड़की के सामने,

देखो मेरी आँखों में झांककर देखो
तुम्हें मेरी आँखों में गुस्सा और
मुझे तुम्हारी आँखों में घबराहट और
डर दिखाई दे रहा है ,

5 comments:

  1. इतना दर्द जायज है लोकतंत्र की अस्मिता हर पल नीलाम हो रही है और छत्तीसगढ़ की सरकार और सुप्रीम कोर्ट के जज इसकी दलाली कर रहे हैं ..

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  2. देखो मेरी आँखों में झांककर देखो
    तुम्हें मेरी आँखों में गुस्सा और
    मुझे तुम्हारी आँखों में घबराहट और
    डर दिखाई दे रहा है|
    यही सच है |

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    1. kavita nahi.......pighli hui aag si hai.....aisi kavita ke liye badhai dena uska makhol udana hai.....ye aag bas jalaye rakhiye

      -Kumar Pankaj

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  3. So sad to read this poem. But believe me, Kodopi, you will be remembered one day as a saviour of Dantewada... Your sacrifice will be remembered for generations to come.

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