Tuesday, October 2, 2012

बुद्ध होते होते रह गया वह

बुद्ध होते होते रह गया वह
सत्य का पूर्ण भान था उसे 
बोलता था तो लगता था 
सत्य स्वयं अपने रहस्य खोल रहा हो 

पर अपने बच्चों और बीबी का पेट भरने के लिये 
उसे अपने प्रवचन छोड़ कर एक नौकरी करनी पडी

उसके पिता सम्राट तो थे नहीं 
कि वह भी आधी रात को अपने बच्चों 
और पत्नी को सोता छोड़ 
निकल जाता महल और 
राज पाट छोड़ कर 

अपने घर छोड़ने के बाद 
पत्नी का दुसरे के घरों में बर्तन मांजता 
और बेटियों की भावी दुर्दशा की कल्पना से 
रुक जाता था वह 

और जिसने राज पाट ना छोड़ा हो 
उस गरीब का प्रवचन किसे आकर्षित करताअ है भला 

वाह  जानता था 
संसार कष्ट मय है 
और वर्तमान क्षण में जागना और ठहर जाना क्या होता है 
वह पूर्ण बुद्ध था 
शुद्ध था 

परन्तु 
जो पत्नी उस पर पूरा भरोसा करती थी 
और उसकी बेटियाँ जो पिता को 
अपना आदर्श मानती थीं 
उन सब को धोखा देकर 
किसी बुद्धत्व की प्राप्ति ने उसे कभी भी 
आकर्षित नहीं किया 

इस लिये वह भी 
अन्य अबुद्धों की भांती 
जीता रहा जीवन को 
वैसे ही 
जैसा कि प्रकृति ने 
उसके जीने के लिये निश्चित किया है 

वह जीता रहा 
भय आहार मैथुन निद्रा 
के प्राकृतिक 
गुणों के साथ 

बिलकुल वैसे ही जैसे इस सृष्टि में 
एक पेड़ 
एक चिड़िया 
या एक मनुष्य 
जीता है 

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