बुद्ध होते होते रह गया वह
सत्य का पूर्ण भान था उसे
बोलता था तो लगता था
सत्य स्वयं अपने रहस्य खोल रहा हो
पर अपने बच्चों और बीबी का पेट भरने के लिये
उसे अपने प्रवचन छोड़ कर एक नौकरी करनी पडी
उसके पिता सम्राट तो थे नहीं
कि वह भी आधी रात को अपने बच्चों
और पत्नी को सोता छोड़
निकल जाता महल और
राज पाट छोड़ कर
अपने घर छोड़ने के बाद
पत्नी का दुसरे के घरों में बर्तन मांजता
और बेटियों की भावी दुर्दशा की कल्पना से
रुक जाता था वह
और जिसने राज पाट ना छोड़ा हो
उस गरीब का प्रवचन किसे आकर्षित करताअ है भला
वाह जानता था
संसार कष्ट मय है
और वर्तमान क्षण में जागना और ठहर जाना क्या होता है
वह पूर्ण बुद्ध था
शुद्ध था
परन्तु
जो पत्नी उस पर पूरा भरोसा करती थी
और उसकी बेटियाँ जो पिता को
अपना आदर्श मानती थीं
उन सब को धोखा देकर
किसी बुद्धत्व की प्राप्ति ने उसे कभी भी
आकर्षित नहीं किया
इस लिये वह भी
अन्य अबुद्धों की भांती
जीता रहा जीवन को
वैसे ही
जैसा कि प्रकृति ने
उसके जीने के लिये निश्चित किया है
वह जीता रहा
भय आहार मैथुन निद्रा
के प्राकृतिक
गुणों के साथ
बिलकुल वैसे ही जैसे इस सृष्टि में
एक पेड़
एक चिड़िया
या एक मनुष्य
जीता है
सुंदर, यथार्थ रचना।
ReplyDeleteअति सुन्दर
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